हर साल चौबीस एकादशियाँ होती हैं, जिसमें से आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार यह बेहद महत्वपूर्ण महीना होता है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी 23 जुलाई, सोमवार को पड़ रही है। यह एकादशी सूर्य के मिथुन राशि में आने की वजह से होती है। इसी दिन से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है।
इस दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा करने चले जाते हैं। उसके बाद वह लगभग चार महीने बाद उठते हैं, जब सूर्य देव तुला राशि में प्रवेश कर जाते हैं। इस बीच सभी तरह के शुभ कार्य जैसे विवाह, उपनयन संस्कार, यज्ञ, गोदान, गृहप्रवेश आदि पर रोक लगा दी जाती है।
जब 4 महीने बाद विष्णु जी निद्रा पूरी कर के उठते हैं तब वह दुबारा से सृष्टि का संचालन अपने हाथों में ले लेते हैं। आइये जानते हैं क्या है देवों के सोने की कथा और कब तक नहीं होंगे शुभ काम…
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य को मारा गया था। उसी दिन की शुरुआत से लेकर के भगवान विष्णु चार महीने तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं। उसके बाद भगवान कार्तिक शुक्ल एकादशी में वापस जागते हैं। हमारे पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान विष्णु ने दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे।
भगवान ने पहले पग में पूरी धरती, आकाश और सभी दिशाओं को ढंक लिया। तभी बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर विष्णु जी का पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें।
बलि के बंधन में बंधा देख लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने की जिद की। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4-4 महीने सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं।