विभागीय मगरमछों को नियंत्रित करने के लिए मत्स्य विभाग में बैठेगा अब डीजी

लखनऊ। प्रदेश के अब एक और विभाग में महानिदेशक बैठेगा। हालांकि इस महानिदेशक पद पर भी सीनियर आईएएस ही बैठेगा। योगीराज में शिक्षा विभाग की दो बड़ी शाखाएं अर्थात प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा को समेकित कर महानिदेशक बिठाए जाने के बाद अब मत्स्य विभाग में यह बड़ा काम हुआ है।

इस नए पद के सृजन के लिए शासन के मत्स्य उत्पादन अनुभाग से गुरुवार को कार्यालय ज्ञाप जारी हो गया। प्रमुख सचिव के. रविंद्र नायक के हस्ताक्षर से जारी इस कार्यालय ज्ञाप में कहा गया है कि विभाग की केंद्र व राज्य सरकारों की वित्त पोषित योजनाओं के समेकित संचालन, वित्तीय नियंत्रण, प्रबंधन के साथ-साथ मानव संसाधनों का अभीष्टतम उपयोग किए जाने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के सचिव स्तर के अथवा सुपर टाइम स्केल स्तर के अधिकारी को तैनात किए जाने का निर्णय लिया गया है।

इस नियुक्ति के और क्या-क्या बने आधार

ज्ञात में कहा गया है कि मत्स्य निदेशालय, मत्स्य विकास निगम, मत्स्य जीवी सहकारी संघ व मत्स्य पालक विकास अभिकरणों के बीच समन्वय और संपर्क का स्तर अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। इन सभी के मध्य प्रभावी समन्वय, प्रशासनिक नियंत्रण, पर्यवेक्षण एवं समेकित डेटा विश्लेषण की समस्या बनी रहती थी।

महानिदेशक मत्स्य के क्या-क्या होंगे अधिकार

महानिदेशक को निदेशालय पर कार्यकारी, प्रशासनिक व वित्तीय नियंत्रण के अधिकार रखने के साथ निदेशालय, मत्स्य विकास निगम, मत्स्यजीवी संघ पर भी प्रशासनिक समन्वय व पर्यवेक्षणीय दायित्वों का निर्वहन करना होगा। साथ ही, लाभार्थीपरक योजनाओं का प्रभावी पर्यवेक्षण का भी दायित्व होगा। वास्तव में विभाग के कर्मियों के लिए वार्षिक गोपनीय प्रविष्टियों के लिए निदेशक के प्रस्ताव, संयुक्त निदेशक व उपनिदेशक के समीक्षक और सहायक निदेशक के स्वीकारता अधिकारी होंगे।

निदेशक मत्स्य की विवादित नियुक्ति को डीजी नियुक्ति से ढांकने की कोशिश!

कहा जा रहा है कि वर्तमान निदेशक मत्स्य एसएस रहमानी की नियुक्ति से ही विभाग बेपटरी और विवादित होता जा रहा था। रहमानी को निदेशक बनाए जाने के लिए राज्य लोक सेवा आयोग की अनुमति के बगैर प्रोन्नति नियमावली में कैबिनेट से संशोधन करवा लिया गया था।

जबकि वास्तव में निदेशक बनने के लिए संयुक्त निदेशक पद पर 7 वर्ष की पूरी सेवा होनी चाहिए थी लेकिन रहमानी की सेवा लगभग एक साल की थी। रहमानी को लाभ देने के लिए प्रोन्नति नियमावली में संशोधन कर इस शर्त को हटाकर संयुक्त निदेशक या उपनिदेशक पद पर 10 साल की सेवा होने का नियम जोड़ दिया गया था। इस वजह से रहमानी निदेशक पद पर स्थाई रूप से आसीन हो गए लेकिन विभागीय योजनाओं में लचर प्रदर्शन के साथ उनके व्यवहार को लेकर कई अधिकारियों व कर्मचारियों में बढ़ता रोष विभागीय मंत्री डॉ संजय निषाद भी के लिए भी मुश्किलें पैदा करता दिख रहा था। अब डीजी की नियुक्ति को डैमेज कंट्रोल की तरह विभागीय कर्मी देख रहे हैं।

निदेशालय पर दिखी कहीं खुशी तो कहीं गम

गुरुवार को ऑफिस मेमो की प्रति जैसे ही निदेशालय पहुंची। वैसे ही, अधिसंख्य कर्मचारी झूम उठे। व्हाट्सएप से एक दूसरे को संदेश भेज कर बधाईयों का दौर शुरू हो गया लेकिन कुछ लोगों में वरिष्ठ आईएएस की स्थाई तैनाती निदेशालय में होने के इस आदेश का खौफ भी दिखा। देर शाम चर्चा उड़ी कि डीजी की नियुक्ति होने से पहले ही विभिन्न ऑफिस उपकरण, कंप्यूटर आदि की अधिक से अधिक खरीद तत्काल कर ली जाए अन्यथा सीनियर आईएएस के नियंत्रण में अब मनमानी नहीं हो पाएगी।

वर्जन
क्या बोले मंत्री जी जब देर रात जब दैनिक भास्कर ने मंत्री संजय निषाद से संपर्क साधा तो उन्होंने कहा की क्या वास्तव में फैसला हो गया। मैंने तो डीजी के प्रस्ताव पर पुनः विचार के लिए लिखा था।

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