
महिलाएं, देश की आधी आबादी हैं, और उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करना समाज का प्रमुख कर्तव्य है। मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए, सरकार मासिक धर्म स्वच्छता योजना (एमएचएस) के माध्यम से जरूरी नीतिगत सुधार और प्रावधान प्रदान कर रही है, जो मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों पर करों को कम करने या समाप्त करने, गुणवत्ता मानकों को लागू करने और महिलाओं की इन उत्पादों तक सुविधाजनक और आसान पहुंच का लक्ष्य रखती है।
पहले मासिक धर्म जैसे मौलिक और प्राकृतिक शारीरिक क्रिया के बारे में सार्वजनिक तौर पर बातचीत की कल्पना करना भी मुश्किल था, लेकिन आज गैर सरकारी संगठन, एसएचजी और मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों के निर्माता समाज को लगातार मासिक धर्म और इसकी फायदों के बारे में लगातार जागरूक कर रहे हैं। मासिक धर्म के बारे में सार्वजनिक संवाद शुरू करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है, जो कि समय की भी मांग है। यह मासिक धर्म और पीरियड्स से जुड़े विभिन्न सामाजिक मिथकों को तोड़ने में भी मदद करता है।
शहरी भारत में, चर्चाओं और पहलों ने महिलाओं को कपड़ा-लत्ता का उपयोग करने से लेकर सैनिटरी नैपकिन, टैम्पोन, कपड़े के पैड, मेंस्ट्रुअल डिस्कस और मेंस्ट्रुअल कप्स सहित विभिन्न प्रकार के स्वस्थ और स्वच्छ विकल्पों को चुनने में मदद की है। इन उत्पादों ने महिलाओं को चेहरे पर मुस्कान लाने के बहुत सारे कारण दिए हैं क्योंकि ये उपयोग में आसान, आसानी से डिस्पोज किए जाने योग्य और सुविधाजनक है।
हालांकि, इन उत्पादों की आसान उपलब्धता और शहरी क्षेत्रों में उनकी अत्यधिक लोकप्रियता के साथ, सैनिटी पैड आदि के वेस्ट के निपटान नगर निगमों और पालिकाओं के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है। हमारे देश में हर महीने अनुमानित 1 अरब सैनिटरी पैड का निपटान किया जाता है। अकेले बेंगलुरु जैसा शहर एक दिन में 90 टन सैनिटरी नैपकिन वेस्ट पैदा करता है! स्वच्छ, पर्यावरण के अनुकूल तरीके से इनका निपटान एक ऐसी समस्या है जिसे तुरंत आधार पर हल किए जाने की आवश्यकता है।
किसी भी अन्य कचरे की तरह, सैनिटरी पैड का कचरा लैंडफिल में जाकर डम्प हो जाता है। इस्तेमाल किए गए सैनिटरी नैपकिन के इस विशाल ढेर को निपटाने के लिए इनसिनरेशन (भट्टी में जलाना) एक आसान विकल्प है। हालांकि, सुपर एब्जॉर्बेंट पॉलिमर (एसएपी) जो एक नैपकिन में प्रमुख मैटीरियल है, जिससे इसका निर्माण किया जाता है, जलाने के दौरान माइक्रो-प्लास्टिक में टूट जाता है क्योंकि यह मिट्टी, पानी और हवा को डीग्रेड और दूषित करता है। इससे निकलने वाले जहरीले रसायन / जहरीले धुएं जैसे डाइऑक्सिन, फुरॉन और अन्य कार्सिनोजेनिक कम्पोनेंट्स जानवरों और मनुष्यों की फूड चेन में भी प्रवेश कर सकते हैं।
मेंस्ट्रुअल हेल्थ एलायंस इंडिया के अनुसार, एक नैपकिन को सड़ कर नष्ट होने में 500 से 800 साल लगते हैं और इस तरह पर्यावरण पर इसका प्रभाव बहुत अधिक होता है। इसलिए उत्पाद के लाइफ-साइकिल के हर पहलू में, कच्चे माल की पसंद से लेकर इनोवेशंस को डिजाइन करने तक, सस्टेनेबिलिटी- पर्यावरण पर उत्पाद के निगेटिव प्रभाव को कम करना- हमारा पहला लक्ष्य होना चाहिए।
दूसरी ओर, इनसे पैदा होने वाले कचरे को हम सभी के लिए अपने स्तर पर प्रबंधित करने की भी जरूरत है। घरों में महिलाएं पीरियड्स के दौरान उपयोग किए गए उत्पादों को अक्सर घरेलू कचरे में ही फेंक देती हैं। पब्लिक टॉयलट्स में भी अक्सर उनको बहा दिया जाता है और अक्सर इस कारण से वे जाम भी हो जाते हैं। हम सभी इन परिणामों को जानकर भी अंजान बने रहते हैं। इससे कई अन्य समस्याएं पैदा होती हैं।
मूल तौर पर कचरा प्रबंधन के लिए स्रोत पर कचरा अलग अलग करना पहला बड़ा समाधान है। मासिक धर्म के कचरे को अलग करना हर घर की जिम्मेदारी है। हालांकि, यह कदम केवल एक शुरुआत है और मेंस्ट्रुअल वेस्ट के सही निपटारे का संपूर्ण समाधान नहीं है। जहरीले मासिक धर्म कचरे के उत्पादन को कम करना ही एकमात्र उपयोगी समाधान है।
शुरूआती स्तर पर ही बदलाव
पर्यावरणीय प्रभाव और कॉर्पाेरेट सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति ईमानदार जागरूकता के हिस्से के रूप में, मासिक धर्म स्वच्छता क्षेत्र में निर्माताओं को पर्यावरण के अनुकूल सैनिटरी नैपकिन के निर्माण के तरीकों और साधनों की तलाश करनी चाहिए।
मेंस्ट्रुअल हाईजीन को लेकर हालात को बदलने के लिए पर्यावरण के अनुकूल कच्चा माल पेट्रोलियम आधारित कच्चे माल की जगह ले सकते हैं। इसके अलावा, निर्माता सैनिटरी नैपकिन के लिए बायोडिग्रेडेबल डिस्पोजेबल कवर की पेशकश करके इनकी सस्टेनेबिलिटी की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
सस्टेनेबल और रिन्यूएबल मैटीरियल्स से सैनिटरी पैड का निर्माण और उन्हें देश/दुनिया के कोने-कोने में महिलाओं के लिए सुलभ बनाने से एक स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करने में सफलता मिलेगी।
मुख्य बात यह है कि मेंस्ट्रुअल हाईजीन उत्पादों का उपयोग कैसे किया जाता है। मासिक धर्म के दौरान व्यक्तिगत स्वच्छता की अनदेखी के कारण प्रजनन अंगों में होने वाले संक्रमण के बारे में लड़कियों और महिलाओं को बहुत कम या कोई जानकारी नहीं है।
जागरूकता स्तर का निर्माण
पर्यावरण के अनुकूल सैनिटरी नैपकिन के निर्माण की दिशा में प्रयास करने के अलावा, जो बड़ी संख्या में महिलाओं के लिए सस्ती भी हैं, निर्माताओं को मासिक धर्म के बारे में शिक्षा और जागरूकता निर्माण की दिशा में गतिविधियों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में महिला समुदाय को सशक्त बनाने में खुद को सक्रिय रूप से शामिल करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। मेंस्ट्रुअल हाईजीन प्रबंधन, घरों में शौचालयों का महत्व, हाथ धोना, खराब स्वच्छता का सीधा संबंध प्रजनन प्रक्रिया से संबंधित रोग से भी है और इस बारे में सावधान रहने की जरूरत है।
लड़कियों और महिलाओं को इस्तेमाल किए गए मेंस्ट्रुअल उत्पादों को खुले में फेंकने या उन्हें शौचालय में फ्लश करने के परिणामों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। शौचालय में उचित ढक्कन वाले कूड़ेदान रखे जाने चाहिए। यदि संभव हो तो स्कूलों और सामुदायिक स्तरों पर इनसिरेटर्स स्थापित किए जाने चाहिए। मासिक धर्म के संबंध में अज्ञानता, गलत धारणाएं, असुरक्षित व्यवहार और मां और बच्चे की निरक्षरता कई समस्याओं का मूल कारण है। इसलिए, स्कूली स्तर पर किशोरों को सुरक्षित और स्वास्थ्यकर व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करने की बहुत आवश्यकता है।
मासिक धर्म, यानि मेंस्ट्रुअल हाईजीन और मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के बारे में मिथक और पूर्वाग्रह, विशेष रूप से भारतीय समाज में मौजूद हैं और इसलिए सार्वजनिक मंचों और प्लेटफार्मों पर इनको लेकर जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए।
सैनिटरी नैपकिन का मुफ्त वितरण, मेंस्ट्रुअल हाईजीन और इसके निपटान के बारे में महिलाओं और लड़कियों को शिक्षित करना, विभिन्न प्रकार के किफायती और सस्टेनेबल मेंस्ट्रुअल हाईजीन उत्पादों, मेडिकल चैकअप कैम्पों और अन्य पहलों के बारे में जानकारी का प्रसार मेंस्ट्रुअल हाईजीन क्षेत्र में काम करने वाले बिजनेसेज द्वारा किया जाना चाहिए।















