संगत न हो परेशान, अब्दुल रऊफ ने खोल दिए घर के दरवाजे -सांप्रदायिकता की मिसाल पेश करते हुए घर को बनाया गुरुद्वारा का जोड़ाघर

लियाकत मंसूरी

मेरठ। सदियों पुराने मेरठ शहर का ऐतिहासिक महत्व काफी अलग है। इस जिले में सभी धर्मों और पंथों के मानने वाले लोग हैं। सभी एक दूसरे के धर्म का आदर करते हैं और पंथों को भी मानते हैं। महानगर के पूर्वा फैयाज अली स्थित गुरुद्वारा ऐसे ही सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। जिसे देखकर हर कोई दंग हो जाता है। इस गुरुद्वारे में होने वाले आयोजनों पर यहां की मिली जुली हिंदू-मुस्लिम और सिंख आबादी आपसी सौहार्द्र और सहयोग की मिसाल बन जाती है। केसरगंज जैसे सघन इलाके में जिस जगह गुरुद्वारा है, उसके आसपास का इलाका मुस्लिम बाहुल्य है। गुरुद्वारे में प्रवेश के लिए मात्र एक तंग गली है। इसी से होकर एक बार में केवल एक व्यक्ति ही प्रवेश कर गुरुद्वारा तक पहुंचता है। ऐसे में गुरुद्वारे में आने वाली संगत के लिए पास में ही रहने वाले अब्दुल रऊफ ने अपने घर के दरवाजे खोल दिए। अब्दुल ने अपने घर में जूता घर बना दिया है। श्रद्धालु यहीं पर जूते-चप्पल उतारते हैं। गली में वाहन खड़े होने से आवागमन बाधित न हो, इसके लिए दुपहिया वाहन भी अब्दुल अपने घर के अहाते में खड़ा करवा लेते हैं। जब तक संगतों का आना-जाना लगा रहता है अब्दुल रऊफ उसी जगह बैठकर जोड़ों की रखवाली करते रहते हैं। 68 साल के हैं अब्दुल रऊफ की उम्र 68 वर्ष की हो गई है। उन्होंने बताया कि गुरुद्वारा उनके सामने बना है। वह बचपन से वहां आते-जाते रहे हैं। अक्सर लंगर भी छकते हैं। गुरुद्वारे में सजे विशेष दीवान की सजावट भी नदीम उर्फ राजा ने फूलों और रंगीन चुनरी से की है।

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