DRDO ने भारतीय सैनिकों के लिए तैयार की ‘कार्बाइन गन’, एक मिनट में सैकड़ों दुश्मनों को करेगी ढेर

भारत लगातार रक्षा क्षेत्र में एक के बाद एक इतिहास रचते हुए दुश्मनों को धूल चटाने वाले देसी हथियारों का निर्माण कर रहा है.. और इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है DRDO. हाल ही में ऐसे कई खतरनाक हथियारों को विकसित किया है. जो चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों को एक झटके में ही तबाह करके रख देंगे. कुछ दिन पहले ही DRDO की ओर से बनाई गई ATAGS हॉवित्जर नाम की विश्व की सबसे बड़ी तोप को सेना में शामिल किया था. जो 48 किलोमीटर तक सटीक निशाना लगाकर दुश्मन को नेस्तनाबूत करने में सक्षम है. तो वहीं दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए डीआरडीओ ने अचूक मारक क्षमता वाली कार्बाइन के फाइनल ट्रायल को भी पूरा कर लिया है जो सभी मानकों पर खरी उतरी है… और अब ये सेना के उपयोग के लिए हर तरह से तैयार है. जिससे रक्षा क्षेत्र में भारत के हाथ और मजबूत हो गए हैं.

DRDO की ओर से बनाई गई ये कार्बाइन सेना के इस्तेमाल के लिए अब बिल्कुल तैयार है. इस कार्बाइन का पहला मकसद बिना किसी दुर्घटना के टारगेट को निष्क्रिय करना है. जानकारी के मुताबिक, DRDO ने इसे JVPC यानी जॉइंट वेन्चर प्रोटेक्टिव कार्बाइन नाम दिया है. ये कार्बाइन सबसे पहले पुरानी हो चुकी 9 एमएम कार्बाइन को रिप्लेस करेगी. इसके अलावा सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेस जैसे CRPF और BSF को भी आधुनिक हथियार मुहैया कराएगी.

इस कार्बाइन को DRDO की पुणे लैब और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ने मिलकर बनाया है. सबसे बड़ी बात इस आधुनिक हथियार ने पहले ही Ministry of Home Affairs ट्रायल्स को पूरा कर लिया है. JVPC एक गैस चालित सेमी ऑटोमेटिक हथियार है. कार्बाइन का बैरल राइफल से छोटा होता है. इसे भारतीय सेना जनरल स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट के आधार पर तैयार किया गया था.

ये कार्बाइन गैस ऑपरेटेड 5.56 x 30 एमएम हथियार है. JVPC को कभी कभी मॉडर्न सब मशीन कार्बाइन भी कहा जाता है जो हर मिनट 700 राउंड फायर कर सकती है. कार्बाइन एक ऐसा हथियार है, जिसमें राइफल की तुलना में छोटा बैरल होता है. इसे भारतीय सेना के जवानों की आवश्यकताओं के हिसाब से डिजाइन किया गया है जिससे वो दुश्मनों को पटखनी दे सकें

JVPC को पुणे की DRDO फैसेलिटी और कानपुर की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ने मिलकर तैयार किया है. इस कार्बाइन का निर्माण SAF यानि स्मॉल आर्म्स फैक्टरी कानपुर में किया जाएगा. इसके लिए गोलियां पुणे की एम्यूशन फैक्टरी में तैयार होंगी.

1980 के आखिर में ARDE ने 5.56 x 45 mm क्षमता के हथियारों को बनाना शुरू किया था. इसे INSAS यानी इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम नाम दिया गया. इस तरह के हथियारों में रायफल और लाइट मशीनगन यानी LMG भी शामिल थी. INSAS पर कई तरह के टेस्ट किए गए. कई तरह के वातावरण में इनको इस्तेमाल किया गया और 1994 में लॉन्च किया गया.

INSAS तकनीक से बने हथियार में कुछ गंभीर खामियां रहीं लेकिन ये हथियार अभी भी आर्म्ड फोर्सेस की ओर से इस्तेमाल किए जाते हैं. हालांकि सशस्त्र दल कुछ अन्य विदेशी और देसी स्मॉल आर्म्स का इस्तेमाल भी करते हैं. INSAS की तकनीक पुरानी है. INSAS हथियारों में कार्बाइन भी शामिल थी मगर इसको विकसित नहीं किया गया था. लेकिन अब भारत ने ठान लिया है कि हर चीज को आत्मनिर्भर भारत के तहत विकसित करके दुश्मनों को खाक में मिलाना है.. देश और दुनिया की..

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