41 साल बाद भी खत्म नहीं हुआ है गैस त्रासदी का असर….न्याय अब तक अधूरा

2-3 दिसंबर 1984 की आधी रात को भोपाल में ऐसा दिल दहला देने वाला हादसा हुआ, जिसने पूरी मानवता को झकझोर दिया। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के प्लांट से रिसी जानलेवा मिथाइल आइसोसाइनाइट (एमआईसी) गैस ने पलक झपकते ही हजारों लोगों की सांसें रोक दीं। औद्योगिक इतिहास की इस सबसे भयावह दुर्घटना ने लाखों लोगों की जिंदगी तबाह कर दी। उस रात शुरू हुआ मौत का सिलसिला वर्षों तक चलता रहा, और आज 41 साल बाद भी इसके घाव हरे हैं।

हालांकि हाल के वर्षों में फैक्ट्री परिसर के जहरीले कचरे के निपटान का दावा किया गया है, लेकिन भोपाल और इसके पीड़ित आज भी त्रासदी के जहर से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सके हैं। हादसा इतना वीभत्स था कि हजारों शवों को सामूहिक रूप से दफनाना पड़ा, करीब दो हजार से अधिक जानवरों को नष्ट करना पड़ा और आस-पास की हरियाली मौत के साये में सूख गई।

विभिन्न शोध बताते हैं कि गैस प्रभावित इलाकों में कैंसर, फेफड़ों, किडनी और गले की बीमारियाँ अन्य क्षेत्रों की तुलना में 10 गुना अधिक पाई जाती हैं। टीबी और पक्षाघात के मरीजों की संख्या भी अत्यधिक है। पाँच लाख से भी ज़्यादा लोग इस ज़हरीले प्रभाव का शिकार हुए थे—हजारों वहीं मारे गए और जो बचे, वे लगातार गंभीर बीमारियों से संघर्ष करते हुए जीवन की लड़ाई लड़ रहे हैं। कई परिवार आज तक मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के जन्म की पीड़ा झेल रहे हैं।

सरकारी आँकड़े बताते हैं कि 3,787 लोगों की मौत हुई और 5,58,125 लोग प्रभावित हुए, जबकि एनजीओ और स्वतंत्र अनुमानों के अनुसार मौतों का वास्तविक आँकड़ा 10 से 15 हजार तक माना जाता है। दो हफ्तों के भीतर 8 हजार से अधिक मौतें होने के दावे भी हैं।

लापरवाही का परिणाम बना खौफनाक हादसा
1969 में स्थापित इस प्लांट में 1979 से एमआईसी आधारित कीटनाशक बनाने का कार्य शुरू हुआ। लेकिन 1984 तक सुरक्षा उपकरण खराब पड़े थे और सुरक्षा मानकों की अनदेखी लगातार हो रही थी। टैंक नंबर 610 में गैस आवश्यकता से अधिक भरी गई थी, और कूलिंग सिस्टम बिजली बचाने के नाम पर बंद कर दिया गया था। पानी मिलने से हुई रासायनिक प्रतिक्रिया ने टैंक के भीतर दबाव और तापमान बढ़ा दिया, जिससे सेफ्टी वाल्व उड़ गया और करीब 40 टन गैस वातावरण में फैल गई। देखते ही देखते मौत का बादल हवा के साथ फैलकर लोगों की नींद हमेशा के लिए छीन ले गया।

न्याय के नाम पर विडंबना
मुख्य आरोपी और यूसीआईएल के चेयरमैन वॉरेन एंडरसन को घटना के चार दिन बाद गिरफ्तार किया गया, लेकिन कुछ ही घंटों में मामूली जुर्माने पर रिहा कर दिया गया और वह अमेरिका भाग गया। वर्षों तक प्रत्यर्पण की मांग होती रही लेकिन विफल रही, और 29 सितंबर 2014 को उसकी मृत्यु हो गई—पीड़ितों को न्याय मिलने से पहले ही।

पीड़ा अभी भी जारी
पर्यावरण को पहुँची क्षति आज भी कायम है। भूजल में रासायनिक प्रदूषण की पुष्टि होने के बावजूद दशकों तक जहरीले अपशिष्ट के निपटान को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए। सरकारों की संवेदनहीनता और प्रशासनिक लापरवाही ने त्रासदी के दुष्परिणामों को और भयावह बना दिया।

सच यह है कि गैस के असर से शहर को कुछ घंटों में मुक्त घोषित कर दिया गया, लेकिन भोपाल 41 वर्षों बाद भी इस त्रासदी की सज़ा भुगत रहा है। मरने वालों की यादें, पीड़ितों की पीड़ा और जहरीली विरासत आज भी सवाल बनकर हवा में तैर रही है….

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