विशेषज्ञों ने अवैध तम्बाकू व्यापार पर अंकुश लगाने के लिए अंतर-क्षेत्रीय, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और तकनीक आधारित ट्रैकिंग एवं प्रवर्तन का किया आह्वान

मनीला में हाल ही में आयोजित शिखर सम्मेलन, ‘कॉम्बैटिंग इलिसिट ट्रेड इन साउथईस्ट एशिया: खतरे से निपटने के लिए सीमा-पार और क्षेत्रीय रणनीतियाँ’, में दक्षिण-पूर्व एशिया के विशेषज्ञों ने अवैध तंबाकू व्यापार के बढ़ते खतरे पर जोर दिया। यह एक ऐसी चुनौती है जो भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को कमजोर कर रही है और सरकारी राजस्व को नुकसान पहुँचा रही है। सस्ते दाम, अलग-अलग कर दरें और कमजोर कानून लागू करने के कारण अवैध तंबाकू का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में हर साल करीब 500 अरब अवैध सिगरेट की खपत होती हैं, जो कुल तंबाकू उपयोग का 14-15% है। ये सिगरेट कर चोरी करती हैं और गुणवत्ता की जाँच से बच जाती हैं, जिससे सरकार को बड़ा आर्थिक नुकसान होता है और लोगों के स्वास्थ्य पर भी खतरा बढ़ता है।

फिलीपीन टोबैको इंस्‍टीट्यूट के प्रेसिडेंट जेरिको नोग्रालेस ने समस्या के बढ़ते पैमाने पर प्रकाश डाला, “फिलीपीन में, हर पाँच में से एक सिगरेट अवैध है, और महामारी के बाद इसमें तेजी से वृद्धि हुई है। फिर भी सरकारें अक्सर इस मुद्दे पर चर्चा से बचती हैं, कभी-कभी शर्मिंदगी के कारण ऐसा होता है। वैध निर्यात अन्य जगहों पर अवैध आयात को बढ़ावा दे सकता है, इसलिए यदि हम वास्तविक समाधान चाहते हैं तो हमें अवैध व्यापार के अस्तित्व के बारे में ईमानदारी से नीतियों को लेकर बातचीत करने की आवश्यकता है।”

कार्यक्रम के दौरान, फिलिप मॉरिस इंटरनेशनल के इलिसिट ट्रेड प्रिवेंशन (अवैध व्‍यापार रोकथाम) के हेड रॉडनी वैन डूरेन ने कहा, “अवैध तंबाकू न सिर्फ आर्थिक चिंता का विषय है, बल्कि यह एक स्वास्थ्य खतरा भी है। नकली सिगरेट में नियंत्रित उत्पादों की तुलना में 160% अधिक तार और 133% अधिक कार्बन मोनोऑक्साइड पाया गया है। भारत में, जहाँ लगभग 12 करोड़ लोग सिगरेट पीते हैं, हर चार में से एक सिगरेट अवैध है। उद्योग के अनुमानों से पता चलता है कि इससे प्रतिवर्ष 12,000–13,000 करोड़ रुपये (1.5–1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का उत्पाद शुल्क नुकसान होता है।”

उन्होंने आगे कहा, “भारत और विश्व स्तर पर अवैध तम्बाकू व्यापार के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है: नियामक निरीक्षण और उपभोक्ता वास्तविकताओं के बीच संतुलन, स्रोत और पारगमन देशों के साथ जी2जी सहयोग के साथ-साथ प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना, और मजबूत प्रवर्तन तंत्र। आगे का रास्ता केवल आपूर्ति को सीमित करने के बारे में नहीं है, बल्कि मांग को समझने और ऐसी प्रणालियों का निर्माण करने के बारे में है जो दोनों को संबोधित करती हैं।”

इन अनियंत्रित उत्पादों की किफायती कीमत, विशेष रूप से निम्न-आय और सीमावर्ती क्षेत्रों में, निरंतर मांग को बढ़ावा देती है। कुछ मामलों में, नियंत्रित, कम हानिकारक विकल्पों की अनुपस्थिति या निषेध ने अनजाने में उपभोक्ताओं को काले बाजार के उत्पादों की ओर धकेल दिया है। क्षेत्रीय गतिशीलता प्रवर्तन को और जटिल बनाती है। अवैध उत्पाद अक्सर एक क्षेत्र में वैध रूप से उत्पन्न होते हैं और फिर अन्य क्षेत्रों में तस्करी किए जाते हैं।

यूरोपीय-आसियान बिजनेस काउंसिल के एक्‍जीक्‍यूटिव डायरेक्‍टर क्रिस हम्फ्रे ने वर्तमान राजकोषीय और प्रवर्तन रणनीतियों के व्यावहारिक पुनर्मूल्यांकन की मांग की, “टैक्‍स के बहुत ज्यादा और जटिल नियम तस्करी को बहुत फायदेमंद बनाते हैं। अगर सही बौद्धिक संपदा कानून और उनका पालन नहीं हो, तो यह अवैध व्यापारियों को बढ़ावा देता है। प्रवर्तन भी संसाधनों की कमी और कम शुल्‍क के कारण सीमित है, जिससे ऐसे व्यापार करने वालों को रोकने में बहुत कम असर पड़ता है।”
विशेषज्ञों ने सहमति जताई कि एक तालमेल वाला दृष्टिकोण — जिसमें टैक्‍स रेशनलाइजेशन, सीमा-पार नियामक सामंजस्य, और प्रौद्योगिकी आधारित ट्रैकिंग और प्रवर्तन शामिल हैं – महत्वपूर्ण है। तत्काल सुधारों के बिना, अवैध तंबाकू व्यापार क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ और आर्थिक स्थिरता को और अधिक कमजोर करता रहेगा।

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