
12,000 करोड़ रुपये का यह सेक्टर वैश्विक बाजार दबाव का सामना कर रहा है, अगर इसे लंबे समय तक चलाना है तो सुधारों के साथ-साथ विदेशी निवेश करना महत्वपूर्ण हैIndia, 2025: आंध्र प्रदेश का तंबाकू क्षेत्र मुश्किल में है। पहले तंबाकू की एक कीमती वैरायटी, एचडी बर्ले की कीमत 230 रुपये प्रति किलोग्राम थी, जो अब घटकर सिर्फ 110–120 रुपये रह गई है। समस्या इतनी बढ़ गई है कि प्रकाशम, नेल्लोर और गुंटूर के किसान अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं। अगर विदेशी निवेश (एफडीआई) नहीं आई, तो तंबाकू उद्योग खतरे में पड़ सकता है। पर, यदि इस सेक्टर को एफडीआई मिल जाती है, तो किसानों की कमाई स्थायी रूप से बढ़ सकती है। यह सिर्फ अस्थायी नहीं, बल्कि एक गंभीर समस्या है जिसकी वजह से आंध्र प्रदेश की तंबाकू अर्थव्यवस्था रुक गई है।
आंध्र प्रदेश का तंबाकू उद्योग, भारत की कुछ कृषि निर्यात सफलताओं में से एक है जिसकी वार्षिक कीमत लगभग 12,000 करोड़ रुपये है। पर इस संकट ने इसकी नाजुकता को उजागर कर दिया है। आंध्र अब भी कोटा प्रबंधन और मामूली सब्सिडीज़ पर निर्भर है ताकि किसानों की आय स्थिर रहे, लेकिन ये उपाय अपर्याप्त हैं।
निर्यातक एम. वेंकटेश्वर राव का कहना है कि ‘‘तंबाकू की खेती और इसकी मार्केटिंग में जल्दी सुधार की जरूरत है। कुछ कंपनियों को संयुक्त उद्यम (जेवी) बनाने की इजाजत दी गई है, लेकिन बड़े सुधार अभी भी रुके हुए हैं। जब रक्षा जैसे संवेदनशील उद्योगों में विदेशी निवेश को मंजूरी दी गई है, तो तंबाकू, जो स्वास्थ्य पर असर डालता है और राजस्व कमा सकता है, उसे इससे क्यों रोका जा रहा है? विदेशी कंपनियों को यहां तंबाकू की प्रोसेसिंग करने या उत्पाद बनाने की अनुमति नहीं है। सरकार की तथाकथित खुली उद्योग नीति तंबाकू तक नहीं पहुंच रही है।’
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उन्होंने आगे बताया, ‘‘पिछले साल ब्राजील में बाढ़ के कारण तंबाकू की फसल कम हुई थी, और दूसरे देशों में भी उत्पादन घटा था। लेकिन इस साल वैश्विक स्तर पर पैदावार बढ़ी है। कोविड-19 के बाद मांग कम होने से बाजार सुस्त हो गया है, और निवेशक व खरीदार कम हो गए हैं। पहले कंपनियां ज्यादा कीमत देकर माल खरीदती थीं ताकि आपूर्ति और ग्राहक बने रहें। भारत में किसानों को मिलने वाली कीमत और निर्यातकों को मिलने वाली कीमत में बहुत अंतर है। पिछले साल बर्ले तंबाकू की मांग अच्छी थी, जिससे कीमतें बढ़ीं और इस साल किसानों ने तंबाकू की पैदावार में बढ़ोतरी की। लेकिन अब कीमतें कम होने से किसान बहुत ज्यादा निराश हैं।’’
अगले पांच सालों में, इस क्षेत्र को क्योरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाने, ट्रेसबिलिटी सिस्टम बनाने, सस्टेनेबिलिटी के सर्टिफिकेशन हासिल करने और प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) केंद्र स्थापित करने के लिए अनुमानित 1,500–2,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। इन सुधारों के बिना, अगले एक दशक में खासकर यूरोपीय संघ के ग्रीन डील जैसे स्थिरता नियमों के साथ, आंध्र प्रदेश का 25%एफसीवी निर्यात प्रमुख बाजारों से बाहर हो सकता है।
दूसरे देशों ने दिखाया है कि एफडीआई क्या हासिल कर सकता है। ब्राजील ने अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों के माध्यम से अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाया और वैश्विक स्थिरता मानकों को अपनाया, जिससे इसके किसान लगातार 15–20% ज्यादा कमाई कर रहे हैं। फिलीपींस ने एफडीआई द्वारा समर्थित संयुक्त उद्यमों का स्वागत करके अपने गिरते क्षेत्र को दोबारा उठाया। इन उद्यमों ने जलवायु-प्रतिरोधी बीज, मशीनीकरण और डिजिटल फार्म प्रबंधन उपकरण प्रदान किए।
इसके विपरीत, आंध्र ने एक सामान्य वस्तु का निर्यात जारी रखा है। एफडीआई केवल धन नहीं है; यह पूंजी, तकनीक, स्थायी विशेषज्ञता और पसंदीदा खरीदार तक पहुंच का एक पैकेज है। सही सुरक्षा उपायों के साथ, विदेशी साझेदारियां किसानों की आमदनी को स्थायी रूप से 20–25% तक बढ़ा सकती हैं और दुनिया भर में हो रहे तंबाकू के कारोबार में भविष्य में आंध्र की भूमिका को मजबूत कर सकती हैं।