राजनीति में भले ही पूर्व मंत्री अमरमणि पंडित हरिशंकर तिवारी को अपना गुरु मानते हों लेकिन असल मायने में पंडित हरिशंकर तिवारी आजीवन बेदाग रहे हैं। ठीक है कि हरिशंकर तिवारी और अमरमणि का आपराधिक पृष्ठभूमि रहा हो लेकिन पंडित हरिशंकर तिवारी का चरित्र आजीवन बेदाग और निष्कलंक रहा है। तो वहीं अमरमणि त्रिपाठी का राजनीति से काफी पुराना नाता रहा है, जिसके चलते यूपी के बाहुबली नेताओं में उनका नाम आता है, जिसका सीधा उदाहरण देखा जा सकता है कि यूपी की राजनीति में वो कभी सपा तो कभी बसपा का दामन थामते है अगर इस पार्टी में भी दिल नहीं लगा तो वे कमल के फूल के साथ रहकर सत्ता का सुख भोगते रहे।
आपको बता दें कि पूर्व मंत्री और यूपी के चर्चित कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजायाफ्ता पूर्वांचल के बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि आज जेल से रिहा हो रहे है। हत्याकांड मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे अमरमणि के अच्छे आचरण के चलते उन्हें समय से पहले ही रिहाई का आदेश जारी कर दिया गया है। बता दे कि अमरमणि त्रिपाठी 20 साल बाद जेल की सलाखों से आज बाहर निकल कर आ रहे है, लेकिन वो वक्त भी क्या वक्त था जब यूपी में उनके नाम से हर कोई कांप उठता था।
प्रदेश की राजनीति में सेक्स और सियासत का भूचाल ला देने वाले प्रकरण के प्रमुख किरदार अमरमणि रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जेल की सलाखों के पीछे सजा काट रहे अमरमणि को रिहाई का आदेश दे दिया है, जिसके चलते अमरमणि खुशी से झूम उठा। जबकि दूसरी तरफ मधुमिता शुक्ला के परिजनों ने उनकी रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
हरिशंकर तिवारी के खास होने का तमगा
यूपी की राजनीति में अमरमणि त्रिपाठी का राजनीतिक कद काफी मायने रखता है। वर्ष 1956 में जन्मे अमरमणि त्रिपाठी ने अपराध की दुनिया से राजनीति तक का सफर तय किया। अमरमणि की राजनीति में एंट्री से पहले ही उस पर हत्या, मारपीट, किडनैपिंग जैसे आरोप लग चुक थे। जैसे-जैसे अपराध का ग्राफ बढ़ता गया, अमरमणि के नाम की गूंज लखनऊ तक सुनाई देने लगी।
गोरखपुर में छात्र राजनीति चरम पर थी। इलाके पर वर्चस्व की लड़ाई में हर प्रभावशाली वर्ग किसी न किसी किनारे पर लगा हुआ था। ऐसे ही दौर में अमरमणि त्रिपाठी की एंट्री हुई। उसने हरिशंकर तिवारी का साथ देना शुरू किया। देखते ही देखते अमरमणि ने हरिशंकर तिवारी के खास होने का तमगा हासिल कर लिया।
कम्युनिस्ट पार्टी का भी समर्थन मिला
जानकारी के मुताबिक हरिशंकर तिवारी ने अमरमणि को राजनीति में होता देख 1980 के चुनाव में वीरेंद्र शाही के खिलाफ लक्ष्मीपुर सीट से उन्हें चुनावी मैदान में उतार दिया। फिर क्या अमरमणि को कम्युनिस्ट पार्टी का भी समर्थन मिला। लेकिन कहा जाता है कि जी जान से की गई मेहनत कभी खाली नहीं जाती, कुछ ऐसा ही वीरेंद्र शाही के साथ हुआ, उन्होंने फिर से चुनाव में कड़ी मेहनत कर के अपनी लक्ष्मीपुर सीट पर कब्जा जमा लिया और अमरमणि को चुनाव में हरा दिया। 1985 में फिर से वे लक्ष्मीपुर से चुनावी मैदान में उतरे, जिसके बाद भी उन्हें सफलता मिलने के बजाय एक बार फिर से उन्हें हार को गले लगाना पड़ा। महाराजगंज की लक्ष्मीपुर सीट वर्ष 2008 के परिसीमन के बाद नौतनवां कही जाने लगी।
भाजपा ने उन्हें पार्टी में आते ही मंत्री बना दिया
बताया जा रहा है कि राजनीती में काफी पकड़ होने के बाद भी आखिरकार अमरमणि त्रिपाठी को दो चुनावों में हार ही हासिल हुई, लेकिन इसके बाद भी अपनी जिंदगी में उन्होंने हार नहीं मानी, क्योंकि चुनावी हार के बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थामने में थोड़ा भी देर नहीं किया फिर क्या उन्होंने झटपट कांग्रेस पार्टी की सदस्यता हासिल कर ली। 1989 के चुनाव में उतरे और पहली बार कांग्रेस पार्टी से जीत हासिल की। अमरमणि त्रिपाठी पहली बार विधायक बने। हालांकि, वर्ष 1991 और 1993 के विधानसभा चुनाव में फिर अमरमणि हारे। वर्ष 1996 में एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर उतरे अमरमणि ने जीत हासिल की। हालांकि, तब यूपी में भाजपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनी। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता हासिल की। भाजपा ने उन्हें पार्टी में आते ही मंत्री बना दिया। बाद में वे पार्टी से निकाले गए, लेकिन पूर्वांचल में अमरमणि की धमक और पकड़ बढ़ती गई। अमरमणि राजनीतिक दलों की जरूरत बन गए। हर सरकार में उन्हें मंत्री बनाया जाने लगा।
अमरमणि का राजनीति करियर में दबदबा देखते हुए मुलायम सिंह ने उन्हें अपनी कैबिनेट में शामिल किया। इसी दौरान अमरमणि की लखीमपुर खीरी की वीर रस की जानी-मानी कवियत्री मधुमिता शुक्ला से पहचान बढ़ने लगी । फिर क्या, इनकी किसमत ने अमरमणि के साथ गजब का खेल खेला, जिसके चलते उनका बुरा दौर शुरू हो गया। 9 मई 2003 को लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में रहने वाली मधुमिता शुक्ला के घर में अचानक से दो बदमाश घुसकर मधुमिता पर फायरिंग कर उसकी हत्या कर दी, जिसका हत्यारा बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी को बनाया गया। इतना ही नहीं उसकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया था।
जानकारी के मुताबिक मृतक मधुमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके गर्भवती होने का जिक्र किया गया था। जिसका पूरा शक अमरमणि पर और भी गहरा गया। जिसके चलते वे और भी बुरी तरह से मुसीबतों की जंजाल में फंसते चले गए। सीबीआई की जांच में राजनीति से अपराध की दुनिया तक का सफर अपने कदमों में रखने वाले अमरमणि त्रिपाठी को आरोपी बनाया गया। कोर्ट में चार सालों तक केस चला। वर्ष 2007 में सजा का ऐलान किया गया। कोर्ट ने अमरमणि और मधुमणि को उम्र कैद की सजा सुनाई। फिलहाल अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि आज जेल से रिहा हो रहे है।