जलभराव और तालाब से गंबुसिया एफिन्स मछली नष्ट करेगी मच्छरों के लार्वा
प्रवीण पाण्ड़ेय/मुकेश चतुर्वेदी
मैनपुरी – संचारी रोगों पर नियंत्रण के लिए अब जिला प्रशासन मछली का सहारा ले रहा है। जलभराव के स्थानों और तालाबों में यह मछली डाली जा रही है। इसकी विशेषता है कि यह मछली मच्छरों के लार्वा को खाकर नष्ट कर देती है। जिले में इसकी खेप पहुँच गई है और मैनपुरी के तालाबों में इसको डालने का कार्य भी शुरू कर दिया गया है।
जिले में डेंगू और मलेरिया का प्रकोप बढ़ने की आशंका के चलते स्वास्थ्य विभाग अलर्ट दिखाई दे रहा है। कई मरीज भी डेंगू और मलेरिया के पाए गए हैं। इसके पीछे जलभराव एक बड़ा कारण माना जा रहा है। क्योंकि जलभराव में ही मच्छरों के लार्वा पनप रहा है। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने इसे खत्म करने की चुनौती के रूप में लिया है। इसी के चलते प्रशासन ने गैंबुसिया फिश मंगाई गई है।
यह मछली तालाब और अन्य ऐसे जलभराव के स्थानों पर डाली जा रही है, जहां जल निकासी करना संभव नहीं है। इस मछली की विशेषता यह है कि मच्छरों और उसके लार्वा को खाती है। इससे संचारी रोग नियंत्रण में मदद मिलती है। मछली लाने की जिम्मेदारी मुख्य विकास अधिकारी ने मत्स्य विभाग को सौंपी गई, जिसके बाद मत्स्य विभाग द्वारा मछली की खेप मैनपुरी मंगा दी गई है। मछली के जिले में पहुंचने ही तालाबों में इनको डालने का कार्य भी शुरू कर दिया गया। स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि इससे संचारी रोगों से लड़ने हेतु बड़ी सहायता मिलेगी।
ईशा प्रिया, मुख्य विकास अधिकारी
संचारी रोगों के नियंत्रण के लिए गैंबुसिया एफिन्स मछली मंगाई गई है। मछली की खेप मैनपुरी पहुँच गई है और जलभराव के स्थानों और तालाबों में उसे छुड़वाया भी का रहा है। जिससे संचारी रोग नियंत्रण में मदद मिलने की उम्मीद है।
क्यों पड़ी इन मछलियों की जरूरत
जिला मलेरिया अधिकारी एस. एन. सिंह का कहना है कि मच्छरों के लार्वा को मारने की दवा का छिड़काव किया है। लेकिन इनके ज्यादा इस्तेमाल से सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ने का खतरा रहता है। सेहत को नुकसान न हो, इसके लिए मछलियों की मदद ली जाएगी। इनसे कोई नुकसान नहीं होता। मत्स्य विभाग द्वारा मछलियां मंगाई गईं हैं, और मैनपुरी के तेरह तालाबों में इसको डाला भी गया है।
गंबूसिया मछली की क्या खासियत
गंबूसिया मछली साफ पानी में रहती है। वह जल की ऊपरी सतह पर रहती है, जहां मच्छर के लार्वा रहते हैं। गैंबूसिया को मच्छरों के लार्वा पसंद होते हैं। इसलिए ऐसे पानी में लार्वा पैदा होते ही यह उसको खा जाती है एक गंबूसिया मछली रोज सौ से तीन सौ लार्वा तक खा सकती है। इसलिए अपने लगभग 5 साल के जीवन काल में यह लाखों लार्वा खा सकती है। छोटे साइज के कारण इसे एक्वेरियम में भी पाला जा सकता है।