मित्रों जैसा की हम सभी जानते हैं की गरुड़ पुराण में मनुष्य के जन्म और मृत्यु के रहस्य के बारे में बताया गया है। गरुड़ पुराण में बताया गया है की मृत्यु ही काल यानि की समय है।और जब मृत्यु का समय निकट आता है तो जीवात्मा से प्राण और देह का वियोग हो जाता है। हरेक मनुष्य के जन्म और मृत्यु का समय निश्चित होता है जिसे पूरा करने के बाद ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह पुनः दूसरे शरीर को धारण करता है। परन्तु अब यहाँ ये सवाल उठता की जब किसी मनुष्य की अकाल मृत्यु हो जाती है तो उस जीवत्मा का क्या होता है ? और अकाल मृत्यु किसे कहा जाता है ?
दोस्तों गरुड़ पुराण में बताया गया है की मनुष्य के जीवन का सात चक्र निश्चित है और यदि कोई मनुष्य इस चक्र को पूरा नहीं करता है अर्थात जो अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है उसे मृत्यु के बाद भी कई प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते है। परन्तु सबसे पहले ये जानना आवश्यक है की अकाल मृत्यु क्या होता है अर्थात किस तरह की मृत्यु को गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु की श्रेणी में रखा गया है।
गरुड़पुराण के सिंहावलोकन अध्याय में बताया गया है की यदि कोई प्राणी भूख से पीड़ित होकर मर जाता है या हिंसक प्राणी द्वारा मारा जाता है या फिर गले में फांसी का फंदा लगाने से जिसकी मृत्यु हो जाती है अथवा जो विष तथा अग्नी आदि से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है अथवा जिसकी मृत्यु जल में डूबने से हो जाती है या जो सर्प के काटने मर जाता है या जिसकी दुर्घटना या रोग के कारण मृत्यु हो जाती है वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है।लेकिन दोस्तों गरुड़ पुराण में आत्महत्या को सबसे निंदनीय और घृणित अकाल मृत्यु बताया गया है।
इतना ही नहीं भगवान विष्णु ने आत्महत्या को परमात्मा के अपमान करने के समान अपराध बताया है। साथ ही गरुड़ पुराण में विष्णु ने बताया है की जिस मनुष्य अथवा प्राणी की मृत्यु प्राकृतिक होती है वह तीन,दस,तेरह अथवा चालीस दिन के अंदर दूसरा शरीर धारण कर लेती है किन्तु जो व्यक्ति आत्महत्या जैसा घृणित अपराध करता है उस प्राणी की जीवात्मा पृथ्वी लोक पर तब तक भटकती रहती है जब तक वह प्रकृति के द्वारा निर्धारित अपने जीवन चक्र को पूरा नहीं कर लेता। ऐसी जीवात्मा को ना तो स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है और नाही नरकलोक की। जीवात्मा की इस अवस्था को अगति कहा जाता है।
इसलिए गरुड़ पुराण में बताया गया है की आत्महत्या करने वाली आत्मा अकाल मृत्यु को प्राप्त होने वाले सभी आत्माओं में सबसे कष्ट दायी अवस्था में पहुँच जाता है। और अकाल मृत्यु को प्राप्त करने वाली आत्मा अपनी तमाम इच्छाओं यानि भूख,प्यास,सम्भोग सुख राग, क्रोध,दोष,लोभ,वासना आदि की पूर्ती के लिए अन्धकार में तब तक भटकता रहता है जब तक की उसका परमात्मा द्वारा निर्धारित जीवनचक्र पूरा नहीं हो जाता।
परन्तु अब यहाँ ये सवाल उठता है की किसी भी प्राणी की अकाल मृत्यु क्यों होती है तो दोस्तों मैं आपको बता दूँ की इसका भी वर्णन गरुड़ पुराण में किया गया है जिसके अनुसार जब विधाता द्वारा निश्चित की गयी मृत्यु प्राणी के पास आती है तो शीघ्र ही उसे लेकर मृत्युलोक से चली जाती है। प्राचीन काल से ही वेद का यह कथन है की मनुष्य सौ वर्ष तक जीवित रहता है,किन्तु जो व्यक्ति निन्दित कर्म करता है वह शीघ्र ही विनष्ट हो जाता है,जो वेदों का ज्ञान न होने के कारण वंश परम्परा के सदाचार का पालन नहीं करता है,जो आलस्य वश कर्म का परित्याग कर देता है,जो सदैव त्याज्य कर्म को सम्मान देता है,जो जिस-किसी घर में भोजन कर लेता है और जो परस्त्री में अनुरक्त रहता है,इसी प्रकार के अन्य महादोषों से मनुष्य की आयु क्षीण हो जाती है। श्रद्धाहीन,अपवित्र, नास्तिक,मंगल का परित्याग करनेवाले,परद्रोही,असत्यवादी ब्राह्मण की मृत्यु अकाल में ही यमलोक ले जाती है।
प्रजा की रक्षा न करनेवाला,धर्माचरण से हीन,क्रूर,व्यसनी,मुर्ख,वेदानुशासन से पृथक और प्रजापीड़क क्षत्रिय यम का शासन प्राप्त होता है। ऐसे दोषी ब्राह्मण एवं क्षत्रिय मृत्यु के वशीभूत हो जाते हैं और यम-यातना को प्राप्त करते हैं। जो अपने कर्मो का परित्याग तथा जितने मुख्य आचरण हैं,उनका परित्याग करता है और दूसरे के कर्म में निरत रहता है वह निश्चित ही अकाल मृत्यु को प्राप्त करता है। और जो शूद्र द्विज-सेवा के बिना अन्य कर्म करता है,वह भी निश्चित समय से पहले यमलोक जाता है। ये तो हो गयी अकाल मृत्यु और उससे मिलने वाली कष्टों की बात चलिए अब जानते हैं की अकाल मृत्यु के बाद कौन सी आत्मा किस योनि में भटकती रहती है।
गरुड़ पुराण में बताया गया है की जो पुरुष अकाल मृत्यु को प्राप्त करता है तो वह भूत,प्रेत,पिशाच,कुष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, बेताल या क्षेत्रपाल योनि में भटकता रहता है जब की कोई स्त्री अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है तो वह भी इसी तरह की योनि में भटकती रहती है लेकिन उसे अलग-अलग नामो से जाना जाता है। जैसे कि यदि कोई नवयुवती स्त्री या प्रसूता अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है तो वह चुड़ैल बन जाती है वहीँ जब किसी कुंवारी कन्या की अकाल मृत्यु हो जाती है तो उसे देवी योनि में भटकना पड़ता है।
इन सबके अलावे गरुड़पुराण में अकालमृत्यु के कारणों से मृत आत्मा के शांति हेतु कई तरह के उपाय बताये गए हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है की अकाल मृत्यु को प्राप्त करने वाले आत्मा हेतु उनके परिवार जनो को नदी या तालाब में तर्पण करना करना चाहिए साथ ही मृत आत्मा की इच्छा की पूर्ती के लिए पिंडदान अथवा सतकर्म जैसे दान पुण्य अथवा गीता का पाठ करवाना चाहिए। ये कार्य कम से कम तीन वर्षों तक चलते रहने चाहिए। साथ ही वर्षी आने पर भूखे ब्राह्मणो,बालको को भोजन भी कराना चाहिए। ताकि मृत आत्मा को जल्द से जल्द मुक्ति मिल सके।
वैसे दुर्घटना,रोग या अन्य किसी भी प्रकार की अकाल मृत्यु को रोकना तो हम इंसानो के वश में तो नहीं लेकिन आत्महत्या को हम रोक सकते है। जब भी आपके मन में आत्महत्या करने का ख्याल आये तो उससे पहले उससे जुड़े परिणाम को अवश्य जान लें क्यूंकि अकसर लोग यही सोचकर आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं की उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन अज्ञानता के कारण वो ये नहीं जानते हैं की मृत्यु के बाद उन्हें वर्तमान में हो रहे कष्टों से ज्यादा ही कष्ट भोगना पड़ेगा।