गोंडा। हिंदी विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है। भारतीय भाषाओं के साथ ही उन सबका नेतृत्व कर रही हिंदी भारतीय संस्कृति के अनूठेपन के साथ समूचे विश्व में फैलती जा रही है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत ने जिस तरह किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, उसी तरह भारतीय भाषाएं अपनी असीम विशेषताओं से ही दिग्दिगंत तक विस्तृत होती रहीं। उन्होंने आक्रामक भाव कभी नहीं अपनाया। ये विचार विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी विभाग एलबीएस डिग्री कॉलेज द्वारा आयोजित हिंदी का वैश्विक परिदृश्य विषयक विचार गोष्ठी में विभागाध्यक्ष प्रोण् शैलेंद्र नाथ मिश्र ने व्यक्त किए। उन्होंने अध्यक्षीय उद्बोधन में हिंदी की प्रकृति और संस्कृति पर प्रकाश डाला।
उन्होंने जानकारी दी कि हिंदी विभाग देवीपाटन मंडल के साहित्यकारों के साथ हिंदी एवं हिंदीतर क्षेत्र के साहित्यकारों पर शोध कार्य भी करवा रहा है। जिसमें दक्षिण भारत की डॉण् चिट्टि अन्नपूर्णा, डॉण् एसण् एण् मंजुनाथ सहित देशांतर नार्वे के सुरेश चंद्र शुक्ल, टोरंटो से प्रोफेसर रत्नाकर नारले, प्रोण् पुष्पिता अवस्थी, धर्मपाल महेंद्र जैन, तेजेंद्र शर्मा सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय साहित्यकार शामिल है। डॉण् विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से डॉण् संध्या सिंह और विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस के सचिव रह चुके प्रोफेसर विनोद मिश्र ने भी व्याख्यानमाला में मूल्यवान व्याख्यान दिया है।
हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर अच्युत शुक्ला ने साहित्य और सिनेमा के द्वारा हिंदी के प्रचार.प्रसार को विस्तार से प्रस्तुत किया उन्होंने बताया कि हिंदी सिनेमा ने हिंदी को अंतरराष्ट्रीय बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाया है,इसके साथ ही अन्य वाणिज्यिक कर्म से भी हिंदी फलती.फूलती रही है।एमए उत्तरार्द्ध हिंदी के विद्यार्थी पुष्कर बाबू ने कहा कि हिंदी दूब की तरह पूरी विनम्रता और हरीतिमा के साथ वसुधा.व्यापिनी हो रही है उन्होंने कहा कि 21 वीं सदी भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं विशेष रूप से हिंदी की है।