
हर साल जब बादल फटते हैं और नदियाँ उफनती हैं, तो उत्तराखंड की वादियां कराह उठती हैं. पहाड़ों से उतरती बरसाती धाराएं जब तबाही बनकर गांवों और रास्तों को निगलने लगती हैं, तब समझ आता है कि प्रकृति का रौद्र रूप कितना भयावह हो सकता है. उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ या चमोली. हर बार कहीं न कहीं एक नया नाम जुड़ता है उस लिस्ट में, जहां जिंदगी अचानक मौत के मुहाने पर खड़ी हो जाती है. आखिर क्यों इतनी खतरनाक होती हैं ये बरसाती नदियां? क्या सिर्फ बारिश ज़िम्मेदार है या कुछ और भी?
यही सवाल आज भी उत्तरकाशी के ताज़ा क्लाउडबर्स्ट हादसे के बाद लोगों के ज़हन में है. आज उत्तरकाशी का धराली गांव मृत्युलोग बन जैसा दिखाई दे रहा है. ऐसे में कई सवाल उठ रहा है कि सरकार उत्तराकाशी के लोगों को कैसे बचाएंगी?

उत्तराखंड की नदियां मानसून में अत्यंत खतरनाक हो जाती हैं. यहां की तेज़ पहाड़ी ढलान, गहरी घाटियां और कमजोर चट्टानें जब भारी बारिश से टकराती हैं तो नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है और वे उफान पर आ जाती हैं. इससे बाढ़, भूस्खलन और जलप्रलय जैसी तबाहियां होती हैं, जो लोगों के जीवन और संपत्ति के लिए गंभीर खतरा बन जाती हैं.
बारिश के दौरान नदियों का प्रवाह इतना तेज़ हो जाता है कि उन्हें नियंत्रण में रखना मुश्किल हो जाता है. इसमें बादल फटने की घटनाएं बड़ी भूमिका निभाती हैं, जहां सीमित समय में अत्यधिक बारिश होती है. अनियोजित निर्माण, वनों की कटाई और हाइड्रोपावर परियोजनाओं ने पहाड़ों की स्थिरता कम कर आपदाओं की आशंका बढ़ा दी है.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित खीरगंगा नदी भी पहाड़ी इलाकों में बादल फटने के कारण खतरनाक बन गई है. धराली के पास हाल ही में खीरगंगा में बादल फटने से अचानक बाढ़ आई, जिससे कई मकान, होटल और होमस्टे बह गए; चार लोगों की मौत हुई और कई लोगों के लापता होने की खबर बताई जा रही है. फिलहाल राहत एवं बचाव के लिए प्रशासन, सेना और विशेष बल एक्टिव हैं. धराली, जो चारधाम यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव है, खीरगंगा के किनारे होने के कारण इस तरह के प्राकृतिक खतरों का सामना करता है.
हर साल भारी बारिश के कारण अलकनंदा, मंदाकिनी, काली और अन्य नदियां उफान पर आ जाती हैं, जिससे नदी किनारे बसे इलाकों में बाढ़ आ जाती है और जनजीवन प्रभावित होता है. इसलिए प्रशासन समय-समय पर रेड अलर्ट जारी करता है और लोगों को सतर्क रहने की सलाह देता है. इस संवेदनशील भौगोलिक क्षेत्र में बचाव और सुरक्षा के कड़े उपाय आवश्यक हैं. सतर्कता, सुरक्षित स्थानों पर रहना और प्रभावी आपदा प्रबंधन से ही नुकसान को कम किया जा सकता है.