तीन तलाक संबंधी ऐतिहासिक विधेयक लोकसभा से पारित, बिल के पक्ष में पड़े 245 वोट

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नई दिल्ली।। लोकसभा ने गुरुवार को ऐतिहासिक कदम उठाते हुए शादीशुदा मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से निजात दिलाने वाला मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018 पारित कर दिया।

सदन में चर्चा के बाद हुए मतदान में यह विधेयक 11 के मुकाबले 245 मतों से पारित हो गया।विपक्ष के सभी संशोधन भी खारिज कर दिए गए । विधेयक इस वर्ष 19 सितम्बर को जारी अध्यादेश के स्थान पर लाया गया था। लोकसभा ने तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने वाले विधेयक को एक वर्ष पहले भी पारित किया था जो इस समय राज्यसभा में लंबित है। सरकार की ओर से नया विधेयक पुराने विधेयक में तीन मुख्य संशोधन शामिल करते हुए लाया गया था।

नए विधेयक में प्रावधान है कि पति के खिलाफ केवल पीड़ित महिला और उसके रक्त संबंधी ही शिकायत दर्ज करा सकते हैं। पति को मजिस्ट्रेट जमानत दे सकता है बशर्ते पीड़ित महिला की सहमति हो। मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी सुलह भी कर सकते हैं। मत विभाजन के पहले कांग्रेस के नेतृत्व में लगभग समूचे विपक्ष ने सदन से बहिष्कार किया। विपक्ष के केवल गिने-चुने सदस्य ही सदन बैठे रहे जिन्हें विधेयक के विरोध में संशोधन पेश करने थे। उनके संशोधनों को सदन ने नामंजूर कर दिया। मतविभाजन के बाद अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने 11के मुकाबले 245 मतों से विधेयक के पारित होने की घोषणा की।

तकरीबन पांच घंटे चली चर्चा का उत्तर देते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह विधेयक किसी मजहब या समुदाय के खिलाफ नही है बल्कि यह मुस्लिम महिलाओं को न्याय और गरिमा दिलाने के उद्देश्य से लाया गया है। उन्होंने कहा कि विधेयक के पीछे कोई राजनीति नही है तथा यह मोदी सरकार के महिलाओं को न्याय और गरिमा दिलाने के उद्देश्य से प्रेरित है। विधेयक में दंड के प्रावधान की हिमायत करते हुए उन्होंने कहा कि संसद द्वारा बनाए गए बलात्कार विरोधी, दहेज विरोधी, घरेलू हिंसा और महिला उत्पीड़न विरोधी कानूनों में सजा का प्रावधान है। अपराधों को रोकने के लिए दंड की व्यवस्था प्रभावी सिद्ध होती है इसीलिए एकतरफा तरीके से तलाक देने वाले व्यक्ति के लिए सजा का प्रावधान किया गया है।

कानून मंत्री ने विपक्ष के इन तर्कों का खंडन किया कि तीन तलाक को गैर कानूनी करार देते समय उच्चतम न्यायालय ने कानून बनाने के लिए संसद को कोई निर्देश नहीं दिया था। उन्होंने कहा कि पांच सदस्यीय उच्चतम न्यायालय की पीठ के दो न्यायाधीशों ने कानून बनाने के पक्ष में फैसला सुनाया था। एक तीसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति कूरियन ने भी कहा था कि जो चीज कुरान में गलत मानी गई है वह कानून में सही कैसे हो सकती है। इसी फैसले के अनुरुप सरकार विधेयक के रुप में कानून बना रही है। साथ ही उन्होंने कहा कि संसद अपने आप में संप्रभु है तथा किसी भी मुद्दे पर कानून बनाने के लिए अधिकृत है। कानून की गैरमौजूदगी के कारण अब तक पुलिस को यह अधिकार नही था कि वह पीड़ित महिला की शिकायत का संज्ञान लेते हुए दोषी पति के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सके।

कानून बनने के बाद तीन तलाक की शिकार कोई भी महिला पुलिस थाने में गुहार कर सकती है। उन्होंने कहा कि विभिन्न पक्षों से सुझाव मिलने के बाद सरकार ने पुराने विधेयक में संशोधन करते हुए नया विधेयक पेश किया है। इसमें दोनों पक्षों में सुलह की व्यवस्था है तथा महिला की सहमति पर पति को जमानत मिलने का प्रावधान है। दोषी पति को सजा मुकद्दमे की सुनवाई होने के बाद ही मिलेगी। तलाकशुदा महिला औऱ उसके बच्चों को गुजारा भत्ता दिए जाने के संबंध में उन्होंने कहा कि यह मजिस्ट्रेट के विवेकाधिकार पर निर्भर होगा। पति की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही मजिस्ट्रेट गुजारे भत्ते की धनराशि तय करेगा।

यह पूरा काम न्याय की समुचित प्रक्रिया का पालन करते हुए मजिस्ट्रेट द्वारा ही किया जाएगा। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि दंडात्मक व्यवस्था अपराध को रोकने में प्रभावी सिद्ध होती है। यही कारण है कि सितम्बर में अध्यादेश जारी होने के बाद तीन तलाक के मामलों में कमी आई है। कानून मंत्री ने मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने की पहल की गूंज अब इस्लामी देशों में भी हो रही है। पाकिस्तान की इस्लामी कानून परिषद ने भारत की इस पहल को अपने देश के लिए भी एक अच्छी सीख करार दिया है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उन्हें आशा थी कि विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष की ओर से कोई ठोस सुझाव आएगा लेकिन ऐसा नही हुआ।

यह विडंबना है कि विपक्षी सदस्य तीन तलाक को गलत मानते हैं लेकिन दंड की व्यवस्था का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को न्याय और गरिमा दिलाने के लिए संसद में उठाए जा रहे आज के प्रयास से इसका कद भी ऊंचा हुआ है। विधेयक पारित होने से पहले सदन में रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एमके प्रेमचंद्रन, एआईएमआईएम के असद्दुदीन ओवैसी और बीजू जनता दल के भर्तृहरि माहताब के संशोधनों को नामंजूर कर दिया। जिसमें दोषी पति के लिए दंड का प्रावधान था।

चर्चा के दौरान समूचे विपक्ष ने विधेयक को संसद की संयुक्त संसदीय समिति को सौंपे जाने की मांग की। कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे सहित विपक्ष का कहना था की यह विधेयक बहुत महत्वपूर्ण है तथा इसे संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं। पूरे मसले पर संयुक्त प्रवर समिति को विचार करना चाहिए तथा 15 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट सदन को सौंपनी चाहिए। सरकार ने प्रवर समिति की मांग को नामंजूर करते हुए कहा कि इस प्रकरण में तात्कालिक कार्रवाई की जाने की जरुरत है जिसके मद्देनजर अध्यादेश जारी किया गया था और अब विधेयक लाया गया है।

तीन तलाक बिल से मुस्लिमों का कोई लेना देना नहीं- आजम खान

समाजवादी पार्टी (सपा) के पूर्व मंत्री व वरिष्ठ नेता आजम खान ने गुरुवार को तीन तलाक को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि इस बिल से मुसलमानों का कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि मुसलमान कुरान और हदीस के अनुसार चलता है। इसमें पूरी प्रक्रिया दी गयी है। ऐसे में हमारे लिए कुरान के अलावा कोई कानून मान्य नहीं है। तलाक के मामले में हिंदुस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया के मुसलमान कुरान के कानून को मानते हैं।सपा नेता ने कहा कि पहले सरकार उन महिलाओं को न्याय दिलाए। जिन्हें उनके शोहरों ने स्वीकार नहीं किया। उन्हें न्याय दिलाए जिन्हें गुजरात और अन्य जगह के दंगों में मार दिया था। कुरान के कानून के अलावा किसी कानून को मान्य नहीं है। हिन्दुस्तान के मुसलमान सिर्फ कुरान के कानून को ही मानते हैं।

आजम खान ने कहा, ‘जो लोग इस्लामिक शरह के ऐतबार के तहत तलाक नहीं लेते वो तलाक नहीं माना जाता। तलाक पर कानून बने या न बने अल्लाह के कानून से बड़ा कोई कानून नहीं है।’ पर्सनल ला है कैसे तलाक देगा’ यह हमारा मजहबी मामला है। वहीं योगी सरकार के तीन मंत्रियों के निजी सचिवों के स्टिंग ऑपरेशन के सवाल पर आजम खांन ने कहा, ‘सब जानते हैं कि देश का खजाना किसने लूटा। स्टिंग का कोई फायदा नहीं है। जिस दिन सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इंसाफ मांगा था, उसी दिन पूरे देश को सड़कों पर आ जाना चाहिए था। गौरतलब है कि तीन तलाक की प्रथा पर रोक लगाने के मकसद से लाया गया विधेयक गुरुवार को लोकसभा में पेश किया जाना था, लेकिन हंगामे के चलते सदन की कार्यवाही स्थगित हो गई।

इंसानियत व नारी गरिमा के लिए है तीन तलाक संबंधी विधेयकः रविशंकर प्रसाद

। शादीशुदा मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से निजात दिलाने संबंधी विधेयक पर गुरुवार को लोकसभा में चर्चा शुरू हो गई है। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018 को सदन में चर्चा के लिए पेश करते हुए कहा कि यह विधेयक किसी धर्म, संप्रदाय के खिलाफ नहीं बल्कि नारी सम्मान और उसकी गरिमा के लिए है।

उन करोड़ों बहनों को उनका अधिकार दिलाने के लिए है जो तीन तलाक की तलवार के नीचे जीवन यापन कर रही हैं। प्रसाद ने कहा कि यह विधेयक इंसानियत के लिए है। विधेयक पहले भी लोकसभा में चर्चा के बाद पारित हो चुका है किंतु राज्यसभा में यह कुछ कारणों से अटक गया। उस वक्त विपक्ष के सदस्यों ने विधेयक को लेकर कुछ सुझाव दिए थे, जिनका इस नए विधेयक में ख्याल रखा गया है। केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018 में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के मामले को गैर जमानती अपराध माना गया है लेकिन इस नए विधेयक में अब न्यायाधीश के पास पीड़ित का पक्ष सुनने के बाद सुलह कराने और जमानत देने का अधिकार होगा।

नए विधेयक में किए गए संशोधनों के अनुसार मुकदमे से पहले पीड़ित का पक्ष सुनकर न्यायाधीश आरोपित को जमानत दे सकता है। इसके अलावा अब पीड़ित, उससे खून का रिश्ता रखने वाले और शादी के बाद बने उसके संबंधी ही पुलिस में मामला दर्ज करा स। संशोधित विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि न्यायाधीश के पास पति-पत्नी के बीच समझौता कराकर उनकी शादी बरकरार रखने का अधिकार होगा । इसके साथ ही एक बार में तीन तलाक की पीड़ित महिला मुआवजे का अधिकार दिया गया है। प्रसाद ने सदन से आग्रह किया कि वह इस विधेयक पर चर्चा करें और उनके जो भी सुझाव उचित होंगे उस पर सरकार गंभीरता से विचार करेगी। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार तीन तलाक से संबंधित विधेयक पहले भी संसद में पेश कर चुकी है। लोकसभा से पारित होने के बाद वह विधेयक राज्यसभा में रुका पड़ा है।

राज्यसभा में उक्त विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है और विपक्ष विधेयक के कुछ प्रावधानों को लेकर आपत्ति जताई थी। इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने विपक्ष की ओर से सुझाए गए कुछ संशोधनों को स्वीकार करते हुए गत सितम्बर माह में तीन तलाक को गैरकानूनी बताते हुए एक अध्यादेश जारी किया था। यह अध्यादेश अभी अस्तित्व में है। सरकार ने इस अध्यादेश के आधार पर ही आधारित एक नया विधेयक शीतकालीन सत्र में लोकसभा में पेश किया है।

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