ढीली निगरानी और लापरवाही का नतीजा: देशभर में बढ़ रहे बस हादसे, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

-यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बस सुरक्षा के मानक बहुत सख्त
नई दिल्ली । दो दर्दनाक बस अग्निकांड की घटनाओं ने फिर सड़क परिवहन की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आंध्र प्रदेश के कुरनूल में 24 अक्टूबर को हुई बस दुर्घटना में 20 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 14 अक्टूबर को राजस्थान के थईयात गांव में 26 यात्री काल के गाल में समा गए थे। इस तरह सिर्फ एक हफ्ते में 41 लोगों की मौत के साथ बस सुरक्षा मानकों की स्थिति पर बहस छिड़ गई है।

जानकारी के मुताबिक 2013 से अब तक भारत में सात बड़ी बस आग की घटनाओं में 130 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इन हादसों की वजह न केवल तकनीकी खामियां हैं, बल्कि ढीली निगरानी, कमजोर नियमों का पालन और बस ऑपरेटरों की लापरवाही भी बड़ी जिम्मेदार है। मामूली टक्करें भी बड़ी आग का रूप ले सकती हैं, क्योंकि अधिकांश बसों का रखरखाव बेहद खराब है।

फैक्टरी डिजाइन से छेड़छाड़ करते हुए बसों में चार्जिंग पॉइंट, सजावटी लाइटिंग और इनवर्टर जोड़ दिए जाते हैं, जिससे वायरिंग ओवरलोड होकर जल जाती है। स्लीपर बसों में पर्दे, गद्दे और सिंथेटिक पैनल जैसी सामग्री आग को तेजी से फैलाती है। ज्यादातर बसों में छत के हैच या आपात दरवाजे या तो बंद होते हैं या मौजूद ही नहीं होते। नियमों के मुताबिक अग्निशामक यंत्र जरूरी हैं, लेकिन अक्सर ये खाली होते हैं या चालक दल को उनका उपयोग करना नहीं आता।

रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर निजी बसें एक ही चालक द्वारा रातभर चलाई जाती हैं और इनमें स्पीड गवर्नर नहीं होते। सुरक्षा जोखिमों के बावजूद ज्यादातर यात्री निजी बसों को चुनते हैं क्योंकि सरकारी बस सेवाएं घट रही हैं। 2022 में इंटरसिटी सरकारी बसों की संख्या 1,01,908 थी, जो 2025 में घटकर 97,165 रह गई। इलेक्ट्रिक बसों की डिलीवरी में देरी और पुराने वाहनों की सेवानिवृत्ति ने यह कमी और बढ़ा दी। नतीजतन, निजी क्षेत्र ने यह जगह भर दी है, लेकिन उद्योग बेहद खंडित है। करीब 78 फीसदी ऑपरेटरों के पास पांच से कम बसें हैं।

बता दें यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बस सुरक्षा के मानक बेहद सख्त हैं। यूरोपीय संघ में लंबी दूरी की बसों में कई आपातकालीन निकास, अग्निरोधी सामग्री और इंजन-कम्पार्टमेंट अग्निशमन प्रणाली अनिवार्य हैं। अमेरिका में हर बस में स्पष्ट लेबलिंग के साथ त्वरित-निकास खिड़कियां और छत के हैच होते हैं जिनका नियमित निरीक्षण किया जाता है। ऑस्ट्रेलिया में राज्य नियामक हर बस में इंजन-बे अग्निशमन प्रणाली लागू हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में भी आपातकालीन सुरक्षा मानकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाने की जरूरत है। अग्निरोधी सामग्री, आपातकालीन निकासों की अनिवार्यता और ड्राइवर प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। जब तक सुरक्षा उपायों को सख्ती से लागू नहीं किया जाएगा और नियामक संस्थाएं बस ऑपरेटरों को जवाबदेह नहीं ठहराएंगी, तब तक भारत की सड़कें यात्रियों के लिए ‘चलते-फिरते खतरे’ बनी रहेंगी।

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