इस बार दीपावली के दो दिन बाद भाई दूज रहेगी। वजह, अमावस्या का दो दिन होना। 12 को दिवाली मनेगी और अगले दिन सोमवती अमावस्या रहेगी। फिर गोवर्धन पूजा और 15 को भाई दूज रहेगी। इस तरह दीपावली उत्सव 5 की बजाय 6 दिनों का रहेगा। 10 नवंबर को दीपोत्सव की शुरुआत 4 राजयोग में हो रही है। जो धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलेगा। इस उत्सव में हर दिन अलग-अलग देवताओं का पूजन होगा।
पहला पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी यानी धनतेरस को कुबेर पूजन से शुरू होगा और भाई दूज को मृत्यु के देवता यमराज के दीपदान तक चलेगा। ज्योतिषियों का कहना है कि धनतेरस 10 नवंबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन तेरस तिथि दोपहर करीब 12.35 पर शुरू होगी और अगली दोपहर 2 बजे तक रहेगी। रूप चतुर्दशी 11 को मनेगी। इस दिन चौदस तिथि दोपहर 2 बजे से शुरू होगी और अगली दोपहर 2.40 तक रहेगी।
12 नवंबर, रविवार को दीपावली मनेगी। दोपहर ढाई बजे बाद अमावस्या शुरू होगी जो सोमवार को दोपहर 3 बजे तक रहेगी। आधे दिन से ज्यादा समय तक अमावस होने के कारण 13 को गोवर्धन पूजा नहीं होगी बल्कि 14 को होगी। 15 को भाई दूज मनेगी।
एक तिथि दो दिन तक, ऐसा क्यों ?
अंग्रेजी कैंलेंडर की तारीखों और तिथियों में तालमेल नहीं बैठ पाने की वजह से कोई भी त्योहार दो दिन तक रहता है। ये तालमेल क्यों नहीं बन पाता है, इसे समझते हैं। चंद्रमा जब पृथ्वी के चक्कर लगाते हुए 12 डिग्री की दूरी तय करता है तो इसमें लगने वाले समय को तिथि कहते हैं। इस तरह आगे बढ़ते हुए एक चक्कर (360 डिग्री) पूरा करने में कुल 30 तिथियां बनती हैं। इनमें 15 शुक्ल पक्ष की और 15 कृष्ण पक्ष की होती हैं। पृथ्वी, सूर्य के चक्कर लगाती है, पृथ्वी का उपग्रह होने के कारण चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर लगाता है।
इस ग्राफिक्स से समझें कि पृथ्वी के चक्कर लगाते हुए चंद्रमा कैसे 29.5 दिन में 360 डिग्री का सफर तय करता है।
इस एक चक्कर यानी लूनर साइकल पूरा करने में चंद्रमा को 29 दिन और 12 घंटे लगते हैं, लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर का एक महीना कभी 30 तो कभी 31 दिन का होता है। इस एक चक्कर यानी लूनर साइकल पूरा करने में चंद्रमा को 29 दिन और 12 घंटे लगते हैं, लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर का एक महीना कभी 30 तो कभी 31 दिन का होता है। इस कारण चांद्र मास और अंग्रेजी महीने में करीब 2 से ढाई दिन का अंतर हो जाता है। इसी वजह से अंग्रेजी तारीखों से तिथियों का तालमेल नहीं बैठ पाता।
धनतेरस, 10 नवंबर, शुक्रवार
धन्वंतरि पूजन के साथ दीपदान की शुरुआत
इस दिन आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि की पूजा की जाएगी। इसी दिन से दीप जलाने की शुरुआत होगी और पांच दिनों तक जलाए जाएंगे। परंपरा के चलते इस दिन सोना-चांदी, बर्तन और हर तरह की खरीदारी की जाएगी। माना जाता है इस दिन खरीदी चीजें अक्षय सुख और समृद्धि देने वाली होती हैं।
दीपावली, 12 नवंबर, रविवार
महालक्ष्मी-गणेश और विष्णु पूजन
अथर्ववेद में लिखा है कि जल, अन्न और सारे सुख देने वाली पृथ्वी माता को ही दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी के रूप में पूजते हैं। कार्तिक अमावस्या के अंधेरे को उजाले में बदलने के लिए दीपदान किया जाता है। अंधेरे से प्रकाश की तरफ जाने वाले सनातन धर्म में प्रदोष काल में यानी शाम के समय देवी लक्ष्मी के साथ गणपति, सरस्वती, कुबेर और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
सोमवती अमावस्या, 13 नवंबर, सोमवार
स्नान-दान और पितृ पूजन
सोमवार को सूर्योदय के वक्त अमावस्या तिथि होने से ये शुभ योग बनता है। इसे स्नान-दान का पर्व भी कहते हैं। इस संयोग में तीर्थ स्नान करने और जरूरतमंद लोगों को दान देने से अक्षय पुण्य मिलता है, यानी वो कभी खत्म नहीं होता। कार्तिक महीने की अमावस्या होने से ये पितरों की पूजा का भी पर्व रहेगा। जिसमें श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाने का जिक्र ग्रंथों में किया है।
गोवर्धन पूजा, 14 नवंबर, मंगलवार
श्रीकृष्ण पूजन और अन्नकूट प्रसाद
पुराणों की कथा के मुताबिक श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमंड तोड़ने और ब्रज के लोगों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठा लिया था। इसके बाद गांव वालों ने श्रीकृष्ण को कई तरह के पकवान बनाकर खिलाए। तब से इस दिन श्रीकृष्ण के साथ गोवर्धन पूजा की जाती है। इसके बाद भगवान को 56 भोग लगाकर प्रसाद बांटते हैं।
भाईदूज ,15 नवंबर, बुधवार
यम और यमुना की तरह भाई-बहन का त्योहार
भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन करने के लिए बुलाया था। ये ही वजह है कि आज भी कई लोग इस परंपरा के चलते बहन के घर खाना खाने जाते हैं। इसके बाद बहन यमराज से भाई की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हुए तिलक लगाती है।