राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने जलियांवाला बाग के शहीदों को दी श्रद्धांजलि
नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग नरसंहार के सौ साल पूरे होने पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट संदेश में कहा है, ‘100 वर्ष पहले आज ही के दिन हमारे प्यारे स्वाधीनता सेनानी जलियांवाला बाग में शहीद हुए थे। वह भीषण नरसंहार सभ्यता पर कलंक है। बलिदान का वह दिन भारत कभी नहीं भूल सकता। उनकी पावन स्मृति में जलियांवाला बाग के अमर बलिदानियों को हमारी श्रद्धांजलि।’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 साल पूरे होने पर आज राष्ट्र उस दिन हुए शहीदों को श्रद्धांजलि देता है। उनकी वीरता और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उनकी स्मृति हमें उस भारत के निर्माण के लिए और भी अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है जिस पर उन्हें गर्व होगा।’ उल्लेखनीय है कि 03 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा पर ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने गोली चलवाकर सैकड़ों निर्दोष पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या करवा दी थी।
शहीदों के स्मृति में डाक टिकट और सिक्का जारी अमृतसर। देश आज जलियांवाला बाग़ के शहीदों को श्र्द्धांजलि दे रहा है। इसे लेकर अमृतसर में एक समारोह किया जा रहा है , जिसमे देश के उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू भी विशेष रूप से पुहंच रहे है। वे शहीदों की स्मृति में एक डाक टिकट और सिक्का भी जारी करेंगे। जबकि आज सुबह देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने एक ट्वीट करके जलियांवाला बाग़ के शहीदों को श्र्द्धांजलि दी। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि ये कत्लेआम ब्रिटेन सरकार पर एक दाग है आज से ठीक 100 वर्ष पूर्व अमृतसर में जलियाँवाला बाग में में 13 अप्रैल , 1919 लप रौलट एक्ट का विरोध करने के लिए हो रही एक सभा में जनरल डायर नाम के अंग्रेज अधिकारी ने अकारण ही सभा में गोलियां चलवा कर सैकड़ें लोगो को मौत के घाट उतार दिया था।
राज्य के रिकॉर्ड में जलियांवाला बाग़ कांड में मौत का शिकार हुए लोगों की संख्या 379 दर्ज़ है। जबकि जिला प्रशाशन के कार्यालय में शहीद हुए लोगों की संख्यां 484 है। तब कांग्रेस द्वारा पडतालिया कमेटी से तैयार करवाई सूची में शहीदों की संख्या 1000 से अधिक थी। अर्थात 100 वर्षों में अभी तक ये भी तय नहीं हो पाया है कि शहीदों की वास्तविक संख्या कितनी थी। माना जाता है कि जलियाँवाला बाग की घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत माना गया। हालांकि देश में चुनाव अचार सहिंता लागु है ,परन्तु इसके बावजूद शहीद परिवारों के सदस्य ज्ञापन देने के लिए यहाँ आये हुए है। शहीद परिवारों की नाराज़गी है कि 100 वर्षों के बाद भी जलियाँवाला बाग के शहीदों को सरकार ने शहीदों का दर्ज़ा नहीं दिया गया।
आज़ादी की कीमत कभी भी नहीं भूलनी चाहिए: राहुल गाँधी
अमृतसर। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने ट्वीट करके कहा है कि आज़ादी की कीमत कभी भी नहीं भूलनी चाहिए। वे उन भारतीय लोगों को सलाम करते है जिन्होंने आज़ादी के लिए अपना वो सब कुछ दे दिया , जो -जो भी उनके पास था। जलियांवाला बाग़ में 100 वर्ष पूर्व शहीद हुए लोगों को श्रधांजलि देने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी जलियांवाला बाग़ में शनिवार सुबह ही पुहंचे। उनके साथ पंजाब के मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ -साथ मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू , पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ , सुखजिंदर सिंह रंधावा मंत्री थे। इस मौके पुलिस की टुकड़ी द्वारा शहीदों को सलामी दी गई है। शहीदों को श्र्द्धांजलि देने के बाद राहुल गाँधी 8 . 38 सुबह वापिस लौट गए। उन्होंने मीडिया से भी कोई बात नहीं की, परन्तु उन्होंने बाद में इसी बाबत ट्वीट किया। माना जा रहा है कि चुनाव अचार सहिंता राहुल गाँधी ने मीडिया से बात करने से किनारा किया। । राहुल गाँधी शुक्रवार रात को ही अमृतसर पुहंच गए थे। रात को स्वर्ण मंदिर में माथा टेका।
जलियांवाला बाग नरसंहार ने हिला दी थी ब्रिटिश शासन की नींव : संघ
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने शनिवार को पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग नरसंहार के सौ साल पूरे होने पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए उनके बलिदान को याद किया। संघ ने सरकार्यवाह सुरेश (भैयाजी) जोशी का अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में गत माह दिए वक्तव्य को सोशल मीडिया पर साझा किया है। इसमें उन्होंने कहा है, ”भारत के स्वाधीनता संघर्ष के इतिहास में वैशाखी के पवित्र दिन 13 अप्रैल 1919 को हुआ अमृतसर का जलियांवाला बाग हत्याकांड क्रूर तथा वीभत्स घटना थी। इस नरसंहार ने न केवल भारत के जनमानस को उद्धेलित, कुपित तथा आंदोलित किया, अपितु ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। ”भारतीयों के विरोध के बावजूद रोलेट एक्ट का काला कानून पारित कर दिया गया। इस कानून का सर्वदूर विरोध हुआ। अमृतसर के दो बड़े नेताओं डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सतपाल की गिरफ्तारी का समाचार फैलते ही जनता में रोष की लहर व्याप्त हो गई। जनरल डायर ने सभी बैठकों, जुलूसों और सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया। उसके आदेश की अवहेलना करके 13 अप्रैल को सभा आयोजित की गई। इस सभा में प्रतिबंधों के बावजूद 20 हजार से अधिक लोग जलियांवाला बाग में एकत्र हो गए।
जनरल डायर ने सभास्थल के एकमेव मार्ग को अवरुद्ध कर बिना चेतावनी दिए भीड़ पर सीधे गोलियां चलाने का आदेश दिया। चारों ओर हाहाकार मच गया, सैंकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। ”इस वीभत्स हत्याकांड ने सारे देश में अंग्रेज शासन के विरुद्ध तीव्र रोष एवं प्रतिरोध का निर्माण किया। कुछ दिन बाद ही रविन्द्रनाथ ठाकुर ने प्रतिवाद में नाईटहुड की उपाधि लौटाई। सरदार भगत सिंह ने वहां की रक्तरंजित मिट्टी उठाकर स्वाधीनता का संकल्प लिया और उसे अपने घर ले गए। इस कांड के प्रत्यक्षदर्शी ऊधम सिंह ने 21 वर्ष बाद 1940 में इंग्लैंड जाकर एक समारोह में ले. गवर्नर ओ’डायर को गोलियों से भून दिया। जलियांवाला बाग सभी देशभक्तों के लिए एक प्रेरणादायी तीर्थ बन गया और इस घटना से प्रेरणा प्राप्त कर हजारों लोग स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघर्ष एवं बलिदान के मार्ग पर बढ़ गए। ”जलियांवाला बाग की ऐतिहासिक घटना का यह शताब्दी वर्ष है। हम सबका यह कर्तव्य है कि बलिदान की यह अमरगाथा देश के हर कोने तक पहुंचे। हम सम्पूर्ण समाज से यह आह्वान करते हैं कि इस ऐतिहासिक अवसर पर अधिकाधिक कार्यक्रमों का आयोजन कर इन पंक्तियों को सार्थक करें- तुमने दिया देश को जीवन, देश तुम्हें क्या देगा? अपनी आग तेज रखने को, नाम तुम्हारा लेगा।
ब्रिटिश उच्चायुक्त ने जलियांवाला बाग़ कांड को शर्मनाक बताया।
अमृतसर: ब्रिटिश उच्चायुक्त डोमिनिक अस्किथ ने आज सुबह अमृतसर में जलियांवाला बाग़ में पुहंच कर शहीदों को श्र्द्धांजलि दी। उन्होंने जलियांवाला बाग़ कांड को शर्मनाक बताया। उन्होंने इस घटना पर खेद भी प्रकट दिया। परन्तु उन्होंने ब्रिटिश सरकार की तरफ से इस घटना को लेकर माफ़ी नहीं मांगी गई। शुक्रवार देर शाम को पंजाब में मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अमृतसर में इस घटना के 100 वर्ष पूरा होने पर कैंडल मार्च किया और मांग की कि ब्रितानवी सरकार को इस घटना के लिए माफ़ी मांगने चाहिए। उनके साथ पंजाब के राज्यपाल वी पी सिंह बदनोर भी थे। काबिले जिक्र है कि ब्रितानवी संसद में भी इस घटना को लेकर अफ़सोस तो प्रकट किया गया , परन्तु माफ़ी मांगने से गुरेज किया।