
जौनपुर : जब न्याय की उम्मीद हो, और वहीं अन्याय की आग बरसे तो सवाल उठता है कि आखिर सुरक्षित कौन है।
शंकरपुर गांव निवासी देवेश के साथ जो कुछ जलालपुर थाने में हुआ, वो पुलिसिया हैवानियत का ऐसा किस्सा है, जिसे सुनकर रूह कांप जाए।
देवेश थाने सिर्फ इतना जानने गया था कि उसके मामा के बेटे अमित को किस जुर्म में सुबह से पकड़ कर थाने में बैठाया गया है।
बस, इतना पूछना ही उसके लिए अभिशाप बन गया।
थाने में मौजूद दरोगा ने पहले गालियां बकीं, फिर एक के बाद एक थप्पड़, लात-घूंसे और पट्टों से बर्बर पिटाई शुरू कर दी।
मारपीट इतनी निर्दयी थी कि देवेश के कान से खून बहने लगा और आंखों में लहू जम गया। शरीर के कई हिस्सों पर चोटों के गहरे निशान पड़ गए।
देवेश की हालत देखकर ऐसा लग रहा था मानो उसे पुलिस ने इंसान नहीं, पंचिंग बैग समझ लिया हो।
घटना रविवार रात करीब 9 बजे की है। देवेश किसी तरह अपनी जान बचाकर थाने से भागा और तुरंत 1076 पुलिस हेल्पलाइन पर कॉल कर मदद की गुहार लगाई।
गंभीर हालत में परिजन उसे रेहटी सीएचसी ले गए, जहां से डॉक्टरों ने उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया।
यह मामला सिर्फ एक युवक की पिटाई नहीं है,
यह उस तंत्र की पोल खोलता है, जो वर्दी के पीछे बर्बरता छिपाए बैठा है।
अब सवाल सिर्फ इतना नहीं कि देवेश को क्यों मारा गया?
बल्कि यह भी है कि क्या अब थाने में सवाल पूछना भी गुनाह बन गया है?
क्या कानून की रखवाली के नाम पर लोगो की आवाज यूं ही कुचली जाती रहेगी?
आखिर कब रुकेगा पुलिस का यह कहर?
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