हिंदु धर्म में कार्तिक पूर्णिमा भारत का सबसे प्रमुख त्योहार माना जाता है इसे देव दीपावली भी कहा जाता है, जो 23 नवंबर को है। इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का बड़ा महत्व है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे महापर्व माना है।
क्या है महत्व?
क्यों कहते हैं त्रिपुरी पूर्णिमा?
मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासर का वध किया था. इसलिए इस तिथि को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है. दरअसल मान्यता है कि त्रिपुर ने एक लाख वर्ष तक प्रयाग में भारी तपस्या कर ब्रह्मा जी से मनुष्य और देवताओं के हाथों ना मारे जाने का वरदान हासिल किया था. इसके बाद भगवान शिव ने ही उसका वध कर संसार को उससे मुक्ति दिलाई थी. इसेक अलावा इस तिथि को गंगा दशहरा के नाम से भी जाना जाता है.
इस दिन क्या करें?
मान्यता है कि इस दिन इस चावल दान करना बेहद शुभ होता है. दअसल चावल का संबंध च्रंद से है इसलिए कहते हैं कि ये शुभ फल देता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन घर को साफ रखना चाहिए. इसी के साथ ही घर के दरवाजे पर रंगोली बनाना भी बहुत शुभ माना जाता है. इस कार्तिक पूर्णिमा को विशेष समृद्धि योग बन रहा है, इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाना बहुत शुभ होगा. डल चढ़ाने के बाद 108 बार ओम नम: शिवाय का जाप भी करें.
पूजा विधि
1. आप प्रातः काल शीघ्र उठकर सूर्य देव को जल अर्पित करें. जल में चावल और लाल फूल भी डालें.
2. सुबह स्नान के बाद घर के मुख्यद्वार पर अपने हाथों से आम के पत्तों का तोरण बनाकर बांधे.
3. सरसों का तेल, तिल, काले वस्त्र आदि किसी जरूरतमंद को दान करें.
4. सायं काल में तुलसी के पास दीपक जलाएं और उनकी परिक्रमा करें.
5. इस दिन ब्राह्मण के साथ ही अपनी बहन, बहन के लड़के, यानी भान्जे, बुआ के बेटे, मामा को भी दान स्वरूप कुछ देना चाहिए.
6. जब चंद्रोदय हो रहा हो, तो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी का आशीर्वाद मिलता है.
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व और इतिहास
अपने पहले अवतार में भगवान विष्णु ने मीन अर्थात मछली का रूप धारण किया था। भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा,प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों,अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इसी से सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हो सका था।
शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार कर दिया, जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव जी इन्हें त्रिपुरारी नाम दे दिया, जिसके चलते इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।
वहीं इसी दिन सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है।, क्योंकि इसी दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयाई सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर दान का महत्व
इस तरह यह दिन एक नहीं बल्कि कई वजहों से खास है। इस दिन गंगा-स्नान,दीपदान,अन्य दानों आदि का विशेष महत्त्व है। इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत महत्व है।क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है।
हिंदू धर्म के अनुसार, माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का पूजन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा की छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त
मन्त्रोजाप
वसंतबान्धव विभो शीतांशो स्वस्ति नः कुरू” चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।