काशीपुर। धार्मिक कार्यक्रमों या त्योहारों में देश में विभिन्न स्थानों से भले ही धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने की खबरें मिलती हों, लेकिन काशीपुर में दो सगी हिंदू बहनों ने धार्मिक सौहार्द की एक नई मिसाल पेश की है। दोनों बहनों ने ईदगाह के निर्माण के लिए अपने दिवंगत पिता की आखिरी इच्छा को पूरा करते हुए करीब चार बीघा जमीन दान कर दी है।
हिंदू बहनों ने पेश की धार्मिक सौहार्द की मिसाल
ऊधमसिंहनगर जिले के काशीपुर में दो सगी बहनों ने अपनी चार बीघा जमीन ईदगाह निर्माण के लिए दान कर दी। बहनों ने अपने पिता की आखिरी इच्छा को पूरा करने के लिए उनके देहांत के 19 साल बाद जमीन दान की है। ईदगाह कमेटी के प्रमुख हसीन खान ने बताया कि जमीन का कब्जा ले लिया गया है। दोनों बहनों ने अपने दिवंगत पिता की आखिरी इच्छा को पूरा करने के लिए जमीन दान में दी है। ईदगाह कमेटी ने जमीन पर कब्जे के बाद चारदीवारी बना रही है।
ईदगाह के निर्माण के लिए दान दी चार बीघा जमीन
हसीन खान ने बताया कि हिंदू बहनों द्वारा जमीन दान करना बहुत ही उम्दा फैसला है, वो भी उस समय, जब देश में सांप्रदायिक उन्माद फैला हुआ है। काशीपुर में बड़े गुरुद्वारे के पीछे ढेला नदी के पास बेलजूड़ी गांव में ईदगाह है। ईदगाह पर करीब 20 हजार मुस्लिमों ने ईद के मौके पर नमाज अदा की थी। कटोराताल कॉलोनी में रहने वाले दिवंगत लाला ब्रिजानंद प्रसाद रस्तोगी की जमीन ईदगाह के पास थी और वो सभी धर्मों को बराबरी का दर्जा देते थे।
19 वर्ष बाद पूरी की दिवंगत पिता की आखिरी इच्छा
वह जमीन ईदगाह को दान करना चाहते थे, ताकि दोनों धर्मों में सौहार्द बना रहे, लेकिन जमीन दान करने से पहले ही 2003 में उनका देहांत हो गया था। अपने देहांत से पहले रस्तोगी ने भाईयों और बहनों के बीच जमीनों का बंटवारा किया था, लेकिन जो जमीन वह ईदगाह के लिए दान करना चाहते थे, वो दोनों बहनों के हिस्से में आई थी। अब सरोज रस्तोगी और अनिता रस्तोगी ने अपने दिवंगत पिता की आखिरी इच्छा को पूरा करते हुए जमीन ईदगाह के लिए दान कर दी है। सरोज मेरठ, जबकि अनिता अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहती हैं। 19 साल के बाद काशीपुर वापस आकर उन्होंने ईदगाह प्रमुख से मिलकर अपने दिवंगत पिता कि इच्छा के मुताबिक राजस्व अधिकारियों की मौजूदगी में जमीन की पैमाइश के बाद जमीन दान कर दी।
कुछ खास नहीं किया, बस पिता की इच्छा को किया पूरा
62 साल की सरोज रस्तोगी कहती हैं कि उन्होंने कुछ भी खास नहीं किया, बस अपने पिता की आखिरी इच्छा को पूरा किया है। उनके पिता का बहुत बड़ा दिल था और वह सभी धर्मों की पूरी इज्जत करते थे। वह कहती हैं कि जमीनों के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है और इसे बेचकर अच्छी रकम भी जुटाई जा सकती थी, लेकिन उनके पिता की आखिरी इच्छा के आगे कुछ भी नहीं है। इसलिए हम दोनों बहनों ने जमीन दान करने का फैसला लिया। हम लोग दान की गई जमीन पर सालों से नमाज अदा करते आ रहे हैं। रस्तोगी परिवार ने दिल बड़ा दिखाते हुए खुद आगे आकर जमीन दान करने की इच्छा जाहिर कर जमीन दान की। अब हम लोग बिना किसी रुकावट के खास मौकों पर जमीन पर नमाज अदा कर सकते हैं।
दोनों बहनों ने इच्छा जाहिर की है कि उनके पिता के नाम का जमीन पर शिलापट लगाया जाए, जिसे पूरा किया जाएगा। किसी दूसरे धर्म के लिए जमीन दान देना यह अन्य धर्मों के प्रति सम्मान दिखाने का यह एक बेहतरीन उदाहरण है। हमारा समुदाय रस्तोगी परिवार के योगदान को कभी नहीं भूलेगा। यह दो धार्मिक समुदायों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव को मजबूत करेगा।