लखीमपुर खीरी।
लखीमपुर खीरी जिले में ऐसा अनोखा शिव मंदिर है, जहां भगवान भोलेनाथ मेंढक की पीठ पर विराजमान हैं। ओयल कस्बे में मंडूक तंत्र और श्रीयंत्र के आधार पर निर्मित यह शिव मंदिर अपनी अनूठी और अद्भुत वास्तु संरचना के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण ओयल स्टेट के तत्कालीन शासकों ने कराया था। मंदिर की वास्तु संरचना अपनी विशेष शैली के कारण लोगों का मनमोह लेती है।
लखीमपुर खीरी ही नहीं हिमालय की तलहटी में बसा पूरा तराई क्षेत्र शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था। यह क्षेत्र 11वीं सदी से 19वीं सदी तक चाहमान शासकों के आधीन रहा। चाहमान वंशी ओयल स्टेट के तत्कालीन शासक राजा बख्त सिंह ने करीब दो सौ साल पहले प्राकृतिक दैवीय आपदाओं से अपनी प्रजा की रक्षा के लिए इस मंडूक तंत्र और श्री यंत्र पर आधारित इस अनोखे मंदिर का निर्माण शुरू कराया था। मंदिर राजा बख्त सिंह के उत्तराधिकारी राजा अनिरुद्ध सिंह के समय में बन कर पूरा हुआ और देखते ही देखते यह पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया।
इस शिव मंदिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी। मुख्य मंदिर एक विशालकाय मेंढक की पीठ पर बना हुआ है। मेंढक का मुंह उत्तर की ओर है। पिछला हिस्सा दक्षिण की ओर और दो पैर पूर्व दिशा में और दो पैर पश्चिम की दिशा में दिखाई देते हैं। शिवलिंग पर अर्पित किया जाने वाला जल नलिकाओं के जरिए मेंढक के मुंह से निकलता है।
मेंढक की पीठ पर काफी ऊंचा अष्टकोणीय चबूतरा है। गर्भ गृह में पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। इस अष्टकोणीय चबूतरे का आकार श्री यंत्र जैसा है। सबसे ऊपर गर्भ गृह है। गर्भ गृह में सफेद संगमरमर का करीब तीन फिट ऊंचा अरघा है। जिस पर नर्मदेश्वर शिवलिंग स्थापित है। अरघे पर सहस्त्रदल कमल की आकृति बनी हुई है। गर्भगृह का द्वार पूरब की ओर है। गर्भगृह के बाहर परिक्रमा पथ भी बना है।
मुख्य मंदिर के शिखर पर कलश के अलावा गायों का झुंड, अर्धचंद्र है। मंदिर की दीवारों पर योगी-योगिनियों के चित्र बने हुए हैं। मंदिर परिसर में चारों कोनों पर चार और मंदिर बने हैं लेकिन उसमें कोई देव प्रतिमा स्थापित नहीं है। मंदिर परिसर की पूरी संरचना एक पंचायत जैसी प्रतीत होती है। मंदिर के चबूतरे से होकर पश्चिम की ओर एक छोटा द्वार भी है। बताते हैं कि यह द्वार राजपरिवार के लोगों के लिए था, यहां से राजमहल तक सुरंग मार्ग था जो अब बंद हो गया है। मंदिर में मुख्य द्वार उत्तर की दिशा में हैं।
आम तौर से शिव मंदिरों में शिव के वाहन नंदी की मूर्ति बैठी मुद्रा में स्थापित होती है लेकिन ओयल के इस अद्भुत मेंढक शिव मंदिर में नंदी की प्रतिमा खड़ी मुद्रा में स्थापित है। बताया जाता है कि ओयल का मेंढक शिव मंदिर एकलौता ऐसा शिव मंदिर है, जहां नंदी खड़ी मुद्रा में स्थापित हैं। यह इस मंदिर की एक बड़ी विशेषता है। मंदिर की देखरेख और रखरखाव का काम ओयल राजपरिवार के लोग करते हैं।
तंत्र विद्या के अनुसार मेंढक सुख समृद्धि का प्रतीक है। इसलिए दीपावली के मौके पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। भगवान शिव के साथ मेंढक की भी पूजा करते हैं। नवविवाहित जोड़े भी स्वस्थ संतान की कामना से यहां दर्शन पूजन के लिए आते हैं। मेंढक मंदिर में दीपावली के अलावा महाशिवरात्रि पर भी भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती हैं। दीपावली और महाशिवरात्रि पर यहां का नजारा देखने लायक होता है। मान्यता है कि मंदिर में पूजा करने पर हर किसी की मनोकामना पूरी होती है और विशेष फलों की प्राप्ति होती है।