लोहिया छोड़ अब सपा का आंबेडकर पर फोकस

-दलित दीपावली के साथ अब आंबेडकर वाहिनी का गठन करेगी सपा
-आंबेडकर के महिमा मंडन में श्यामाप्रसाद और दीनदयाल पीछे छूटे
-दलितों का मसीहा बनने की सपा और भाजपा में गलाकाट स्पर्धा
-सपा भाजपा की कवायद से बसपा की बढ़ रही दुश्वारियां

योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। दलितों को रिझाने और उनका मसीहा बनने की इस समय सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और मुख्यविपक्षी दल समाजवादी पार्टी में गलाकाट स्पर्धा चल रही है। इसको लेकर दलितों की राजनीति पर टिकी बहुजन समाज पार्टी के पेशानी पर बल डाल दिया है। हाल ही में समाजवादी पार्टी ने आंबेडकर जयंती पर जहां दलित दीपावली मनाए जाने का एलान किया तो अब उसने उनकी जयंती पर जिला स्तर तक आंबेडकर वाहिनी गठित किए जाने का निर्णय लिया है इस बावत सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहाकि आंबेडकर के विचारों को सक्रिय कर असमानता,अन्याय को दूर करने व सामाजिक न्याय के समतामूलक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हम उनकी जयंती पर जिला प्रदेश व देश के स्तर पर सपा की बाबा साहेब वाहिनी का गठन करने जा रहे है।

हालांकि सपा के इन दोनो आयोजनों से ठीक पहले केन्द्र सरकार ने १४ अप्रैल को ही आंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। राजनीतिक जानकारों की माने तो सपा और भाजपा की यह सारी एक्सरसाइज २०२२ के चुनावों के मद्देनज़र है। सपा और भाजपा के यह सब पैतरे इस समय बसपा के लिए दुश्वारी का सबब बने हुए है। अभी तक दलित वोट बैक पर बहुजन समाज पार्टी ही अपना एकाधिकार समझती थी लेकिन अब उसके वोट बैंक में सेंध लगाने की गरज से सपा और भाजपा में एक दूसरे को पछाड़कर आगे निकलने की होड़़ देखते बन रही है। भाजपा जहां इस समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल को दरकिनार कर बाबा साहब आंबेडकर का सच्चा अनुयायी साबित करने में लगी है तो समाजवादी पार्टी लोहिया को किनारे कर इस समय अपना सारा फोकस आंबेडकर पर किए हुए है।

दलित दीपावली मनाये जाने के निर्णय के बाद से अब समाजवादी पार्टी ने आंबेडकर जयंती के मौके पर संगठन स्तर पर आंबेडकर वाहिनी गठित किए जाने का निर्णय लिया है। जिस तरह एक-एक करके बसपा के कद्दावर नेता समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे है उसके बाद सपा को लगता है कि दलितों में अपनी पैठ बढ़ाने की गरज से आंबेडकर की नीतियों का व्यापक प्रचार प्रसार के साथ इस समाज के लोगों को जोडऩे के लिए जरूरी है कि दलित दीपावली जैसे आयोजनों के साथ आंबेडकर वाहिनी का गठन किया जाए।

हालांकि समाजवादी पार्टी में पहले से ही लोहिया वाहिनी काम कर रही है। सपा से जुड़े जानकारों की माने तो आंबेडकर वाहिनी के गठन से जहां बसपा से आए नेताओं के समायोजन में सहुलियत होगी वहीं इस मंच के जरिए बसपा को घेरने में उसकी मुहिम को बल मिलेगा। मायावती सरकार के कई कैबिनेट मंत्री रहे तथा विधानपरिषद के पूर्व सभापति कमलाकांत गौतम भी सपा में शामिल हो चुके है। २०१९ के लोकसभा चुनाव में जिस तरह बसपा ने लोकसभा में दस सीटे हासिल करने के बाद सपा से गठबंधन तोड़ा है उसके बाद से सपा से अपने को ठगा महसूस कर रही है।

हालांकि सपा के साथ यह धोखा पहली बार नहीं हुआ था इससे पहले उसने २०१७ के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था लेकिन गठबंधन के कोई संतोषजनक परिणाम सामने नहीं आए तो २०१९ के लोकसभा चुनाव में दोनो ने अलग-अलग चलने का फैसला किया। कांग्रेस से अलग होने के बाद सपा ने ढाई दशक बाद एक बार फिर बसपा से नजदीकिया बढ़ाई तो इसमें फायदे में बसपा ही रही जो शून्य से दस पर पहुंच गयी जबकि सपा पांच पर थी और पांच पर टिकी रही।

इन्हीं सब अनुभवों को ध्यान में रखते हुए सपा ने पिछड़ो के बाद अब दलितों को रिझाने के लिए आंबेडकर वाहिनी गठित किए जाने का फैसला किया है। २०१९ के लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह बसपा ने सपा गठबंधन तोड़ा है उसके बाद सपा के मुखिया अखिलेश यादव २०२२ के चुनाव में बसपा से अपना हिसाब चुकता करने के साथ अपनी पार्टी को भाजपा का सशक्त विकल्प साबित करने की गरज से दलितों को साथ जोडऩें की मुहिम में यह सब एक्सरसाइज कर रहे है। केन्द्र सरकार द्वारा आंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किए जाने से पूर्व भाजपा के अदना से आला नेता चुनाव और अन्य कई अवसरों पर दलितों के घर भोजन करने और उनके पांव पखारने जैसे आयोजनों में हिस्सा ले चुके है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रयागराज में कुं भ के आयोजन में हिस्सा लेने के बाद वहां के सफाई कर्मियों के पांव पखार चुके है। इन आयोजनों पर राजनीतिक दलों में सियासत होने के बाद साथ इसे मुद्दा बनाकर एक दूसरे को घेरनेमें कोई पीछे नहीं रहता है।

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