लखनऊ, । उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में आजकल लाख टके का सवाल तैर रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा),बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठबन्धन होगा या नहीं। गली, चौराहों से लेकर चाय की दुकानों और सार्वजनिक स्थलों पर हर जगह गठबन्धन को लेकर चर्चा तेज है। राजनीति में थोड़ी भी दिलचस्पी रखने वाला हर शख्स यही जानने का इच्छुक है कि गठबन्धन होगा या नहीं।
उधर, इन अटकलों के बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ लखनऊ से चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर है। राजनाथ लखनऊ से मौजूदा सांसद हैं और 2019 में भी उनका इस सीट से चुनाव लड़ना तय है। वहीं राजब्बर बब्बर ने लखनऊ में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। पिछले कुछ दिनों से वह लखनऊ में ही डेरा डाले हुये हैं और जनसम्पर्क तेज कर दिया है। उनके नजदीकी रणनीति बनाने में लगे हुये हैं। राजबब्बर इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि वह एक लाख से अधिक वोट से हार गए थे, लेकिन चुनाव दिलचस्प था। वहीं जिस तरह से कांग्रेस के गठबन्धन में शामिल होने की अटकलें हैं, उससे अगर राजबब्बर लखनऊ से प्रत्याशी होते हैं, तो चुनाव रोचक हो सकता है।
हालांकि प्रस्तावित महागठबन्धन के दल भी इधर कुछ दिनों से इस पर चर्चा करने से कतराते हैं। वह कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि बसपा से गठबन्धन के मसले पर अब मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद बात होगी। उनका कहना है कि सपा और बसपा दोनों ने विधानसभा चुनाव पर ध्यान केन्द्रित कर रखा है, इसलिये अभी लोकसभा चुनाव के लिये गठबन्धन पर बात करने का सही समय नहीं है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मध्य प्रदेश के दौरे पर हैं
वहां उनकी कई जनसभाएं हैं। वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती के गठबन्धन को लेकर पुराने राजनीतिक इतिहास को देखते हुये कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि गठबन्धन अब शायद ही हो और होगा तो मायावती अपनी शर्तों पर करेंगी। वह कह भी चुकी हैं कि सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही गठबन्धन किया जाएगा। कांग्रेस और सपा पर दबाव बनाने के लिये बसपा अध्यक्ष छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी से समझौता भी कर चुकी हैं।
दूसरी ओर, गठबन्धन के पक्ष में तर्क देने वाले राजनीतिक विश्लेषक सूर्य कांत पाण्डेय हिन्दुस्थान समाचार से कहते हैं कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी यह मान कर चल रही है कि गठबन्धन होगा। इसीलिये भीम पार्टी के चन्द्रशेखर उर्फ रावण की रिहाई करवाई गयी। वहीं सपा में दो फाड़ हो चुका है। इससे बसपा और सपा के वोटबैंक में सेंध लग सकती है, जिसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। हालांकि भाजपा की पूरी कोशिश होगी कि गठबन्धन नहीं हो।