गोरखपुर। मुख्यमंत्री व गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ पांच दिवसीय गोरखपुर दौरे पर 16 अक्टूबर को गोरखपुर आएंगे। विजयादशी के पश्चात 20 अक्तूबर की सुबह लखनऊ के लिए प्रस्थान करेंगे।
मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ ने बताया कि 16 अक्टूबर की रात से ही अष्टमी प्रभावी होने के कारण मंदिर की परंपरा के अनुसार शक्ति मंदिर में इसी रात को महानिशा और हवन होगा। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 16 अक्टूबर की शाम गोरखपुर आएंगे। 17 को मंदिर में ही प्रवास करेंगे। 18 अक्टूबर को महानवमी के दिन 12 बजे से कन्या पूजन एवं कन्या भोज का अनुष्ठान पूर्ण करेंगे। 19 अक्टूबर को विजयादशमी पर सुबह 9ः25 बजे से गोरखनाथ मंदिर में श्रीनाथ जी की पूजा अर्चना करेंगे। इस दौरान नाथ संप्रदाय के साधु संत और श्रद्धालु गोरक्षपीठाधीश्वर का तिलक करेंगे। तीन बजे कार्यक्रम की समाप्ति के बाद चार बजे भव्य शोभायात्रा निकलेगी। शोभा यात्रा श्री मानसरोवर मंदिर जाएगी। यहां भगवान शिव व अन्य देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद वह मानसरोवर रामलीला मैदान में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का राज तिलक कर गोरखनाथ मंदिर लौट आएंगे। 20 अक्तूबर को मुख्यमंत्री लखनऊ के लिए प्रस्थान करेंगे।
विजयदशमी के दिन न्यायिक दण्डाधिकारी की भूमिका में होंगे योगी आदित्यनाथ
नाथ संप्रदाय की पीठ श्रीगोरखनाथ मंदिर में गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ विजयादशमी के दिन न्यायिक दण्डाधिकारी की भूमिका में दिखेंगे। विजयादशमी की देर रात होने वाली पात्र पूजा में नाथ संप्रदाय के संतो की अदालत लगेगी जिसमें गोरक्षपीठाधीश्वर नाथ संप्रदाय के संतो के मध्य के विवाद सुलझाएंगे। नाथ संप्रदाय में पात्र पूजन की परम्परा पौराणिक काल से अनवरत चली आ रही है। यह परम्परा आंतरिक अनुशासन बनाए रखने का एक अहम जरिया है। गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद भी पीठ के प्रति अपने उत्तरदायित्व को पूरी निष्ठा के साथ के साथ निवर्हन करते हैं। विजयादशमी के दिन श्री गुरु गोरखनाथ जी के साथ ही मंदिर में स्थापित सभी देवी देवताओं की विशिष्ठ पूजा योगी आदित्यनाथ करते हैं। गोरक्षपीठाधीश्वर का तिलक कर शोभायात्रा निकाली जाती है। संतों, ब्राह्मणों एवं निर्धन नारायण के साथ सहभोज का कार्यक्रम होता है।
पात्र देवता के रूप में प्रतिष्ठित होंगे योगी आदित्यनाथ
विजयादशमी के दिन ही श्री गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ पात्र देवता के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। नाथ संप्रदाय से जुड़े सभी साधु-संत और पुजारी मिल कर मुख्य मंदिर में उनकी पात्र पूजा कर दक्षिणा अर्पित करते हैं। इस पूजा में सिर्फ उन्हें ही प्रवेश मिलता है जिन्होंने नाथ संप्रदाय के किसी योगी से दीक्षा ग्रहण की हो। उन्हें यहां अपने संप्रदाय एवं दीक्षा देने वाले गुरु की घोषणा करनी होती है। तकरीबन तीन घंटे तक चलने वाले इस परम्परागत कार्यक्रम में शामिल होने के बाद ही मंदिर का महंत मंदिर परिसर से बाहर जाता है। मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी बताते हैं कि गोरक्षपीठाधीश्वर पात्र देवता दक्षिणा स्वीकार करते हैं लेकिन अगले दिन दक्षिणा साधुओं को प्रसाद स्वरूप लौटा दी जाती है।
शिकायतों का निपटारा करते हैं पात्र देवता
नाथ संप्रदाय के सभी संत जिनके खिलाफ कोई शिकायत रहती है, पात्र देवता के रूप में गोरक्षपीठाधीश्वर उनकी सुनवाई करते हैं। प्रतिष्ठा है कि पात्र देवता के समक्ष कोई झूठ नहीं बोलता है। यदि वह उनके समक्ष अपनी गलती स्वीकार कर लेता है, या फिर नाथ परम्परा के विरुद्ध किसी गतिविधि में संलिप्त मिलता है, उसके विरुद्ध पात्र देवता कार्रवाई का निर्णय लेते हैं। पात्र देवता सजा एवं माफी का निर्णय लेते हैं। इस प्रक्रिया को चिलम साफी की प्रक्रिया भी कहते हैं। हालांकि गोरक्षपीठ में हुक्का और ध्रुमपान की इजाजत नहीं है। दूसरे साधू संत भी गोरक्षपीठ में प्रवास के दौरान इस बात का ध्यान रखते हैं।