महाकुंभ 2025 का औपचारिक शुभारंभ होने के बाद मेला क्षेत्र में सबसे पहले जूना अखाड़े के संतों ने छावनी प्रवेश किया। अब संगम की रेती पर 45 दिन माघ के महीने में कड़ाके की ठंड में तप करने के लिए कुटिया बनाने का कार्य शुरू कर दिया है। चौदह वर्ष से अनोखी तपस्या करने वाले हठयोगी महन्त श्री राधेपुरी उर्ध्वबाहु जी पहुंचे है।
मध्य प्रदेश के आगर जनपद में स्थित आनन्द धाम आश्रम आमला के रहने वाले श्री पंच दस नाम जूना अखाड़ा के महन्त श्री राधेपुरी उर्ध्व बाहु जी महाराज ने बताय, “वर्ष 2011 से विश्व कल्याण एवं समाज कल्याण के लिए गुरू जी का आशीर्वाद से यह कठिन तप शुरू किया। मैं दाहिना हाथ उठाए हुए हूं। वह दाहिने हाथ से कोई कार्य नहीं करते हैं। इस समय हाथ के नाखून बड़े होकर सूख चुके है। हाथ में ब्लड का संचार इस समय बंद हो चुका है, जिससे हड्डियां भी अब सूखने लगी हैं।
हम संत तपस्या जन कल्याण के लिए करते हैं, विश्व में शांति रहे और विश्व में कोई आपदा न आने पाए, इसके लिए गुरु महाराज से यही कामना करते रहते हैं। इससे पूर्व में भी दूसरा अन्य हठयोग कर चुके हैं।
हठयोग सबसे कठिन तपस्या: रविन्द्र पुरी महाराज
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविन्द्र पुरी महाराज ने कोई ज्ञान मार्ग से ईश्वर को प्राप्त करता है, कोई भक्ति मार्ग और कोई हठयोग के माध्यम से तपस्या करते हैं। संतों के हठ योग के अलग—अलग आसन होते हैं। कोई खड़े रहते हैं, कोई हाथ ऊपर उठाए रहता है। उनका मानना है कि उनका उसी में आनंद है और उनकी श्रद्धा है, वह उसी रास्ते से ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं। एक संत शम्भू पुरी जी महाराज हैं, वह तीन वर्ष तक दोनों पैरों पर खड़े रहे और उनके दोनों पैर का बाद में ऑपरेशन कराना पड़ा, हालांकि पुन: स्वस्थ होने के बाद, वे पुन: उसी आसन पर अपनी तपस्या करने लगे। इसी तरह एक संत हैं जो चौदह वर्ष से एक हाथ को ऊपर उठाए हुए हैं और ईश्वर की प्रार्थना में लगे हुए हैं।