महाकुम्भ : प्रयागराज में स्थित कई मंदिर न सिर्फ आध्यात्मिक साधना के केंद्र हैं, बल्कि ये लोगों को अच्छाई, नैतिकता और सत्कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी प्रदान करते हैं। यह स्थान आस्थाओं और विश्वासों के साथ-साथ जीवन के उच्चतम आदर्शों की ओर मार्गदर्शन करने का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इसी कड़ी में श्री आदिशंकर विमान मंडपम, जिसे शंकराचार्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक अद्वितीय स्थल है। यह मंदिर हिंदू धर्म की गहन आध्यात्मिक परंपराओं और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। यह स्थान आदि शंकराचार्य की शिक्षाओं और हिंदू धर्म की तीन प्रमुख धाराओं-शैव, वैष्णव, और शक्तिवाद-का प्रतीक है।
कांचिकामकोटि के शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने करवाया निर्माणमंदिर के प्रबंधक रमणी शास्त्री के अनुसार कांचिकामकोटि के 69वें पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने अपने गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती की इच्छापूर्ति के लिए श्री आदि शंकर विमान मंडपम् का निर्माण कराया। गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने वर्ष 1934 में प्रयाग में चातुर्मास किया था। उन दिनों वो दारागंज के आश्रम में रुके थे। प्रतिदिन पैदल संगम स्नान को आते थे।
उस दौरान बांध के पास उन्हें दो पीपल के वृक्षों के बीच खाली स्थान नजर आया। गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया और स्वयं के तपोबल से यह साबित किया कि इसी स्थान पर आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट के बीच संवाद हुआ था। बाद में यहीं पर कुमारिल भट्ट ने तुषाग्नि में आत्मदाह किया था। रमणी शास्त्री ने बताया कि इसी स्थान पर गुरु चंद्रशेखरेंद्र ने मंदिर बनाने की इच्छा व्यक्त की थी, जिसे शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती ने पूर्ण किया।
17 वर्ष लगे मंदिर निर्माण मेंश्री आदि शंकर विमान मंडपम् की नींव वर्ष 1969 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल बी. गोपाल रेड्डी ने रखी थी। तब इंजीनियर बी. सोमो सुंदरम् और सी. एस. रामचंद्र ने मंदिर का नक्शा तैयार किया था। मंदिर प्रबंधन के साथ उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम ने भी निर्माण में सहयोग दिया था। जिन 16 पिलर्स पर मंदिर टिका है, उनका निर्माण उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के तत्कालीन असिस्टेंट इंजीनियर कृष्ण मुरारी दुबे की देख-रेख में कराया गया था। 17 मार्च 1986 को मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। श्री आदि शंकर विमान मंडपम् में विग्रह और निर्माण में प्रयोग किए गए पत्थर दक्षिण भारत से लाए गए हैं। मंदिर द्रविड़ियन आर्किटेक्चर का नायाब उदाहरण है।
130 फीट ऊंचा है मंदिर130 फीट ऊंचे इस मंदिर में श्री आदि शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित की गई है। देवी कामाक्षी और 51 शक्तिपीठ के अलावा तिरुपति बालाजी और सहस्र योग लिंग के साथ 108 शिवलिंग मंदिर में स्थापित हैं। गणेश जी का मंदिर भी है। इसमें चार मंजिलें हैं, जिनमें प्रत्येक का अपना विशेष धार्मिक महत्व है। मन्दिर की पहली मंजिल पर आदि शंकराचार्य की मूर्तियां स्थापित हैं। दूसरी मंजिल देवी कामाक्षी और 51 शक्तिपीठों को समर्पित है।
तीसरी मंजिल वेंकटेश्वर (बालाजी) और 108 विष्णु-पीठों के लिए है। चौथी मंजिल पर सहस्र योग लिंग और 108 शिवलिंग विराजमान हैं। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं की छवियों और रामायण के भित्ति चित्रों की सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर के ऊपरी तलों से संगम का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है।
मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वमंदिर के प्रबंधक रमणी शास्त्री के अनुसार यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण है, जहां शिव मंत्र ‘ओम नमः शिवाय’ का नियमित जाप और भजन-कीर्तन होता है। महाशिवरात्रि, श्रावण सोमवार और कार्तिक पूर्णिमा जैसे त्योहार यहां विशेष उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।
महाकुंभ 2025 में विशेष भूमिकाआगामी प्रयागराज महाकुंभ 2025 में यह मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र बनेगा। महाकुंभ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के माध्यम से भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को जानने का अवसर मिलेगा। प्रयागराज सगम तट पर लेट हनुमान जी के पास श्री आदि शंकर विमान मंडपम स्थित है।