नई दिल्ली. । ”बुआ” (मायावती)बनीं ”बबुआ”(अखिलेश ) की ढाल,अब देखना है कि बाद में दोनों को होगा मलाल या दोनों मिलकर उ.प्र. में लोक सभा चुनाव में करेंगे कमाल। इसके कारण अपनी करनी पर भाजपा को होगा मलाल। यह कहना है कि उ.प्र. के पूर्व मंत्री सुरेन्द्र का। सुरेन्द्र कहते हैं कि भाजपानीत केन्द्र सरकार और उसके हुक्मरानों का सीबीआई से समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव को डराने का दांव उल्टा पड़ गया। तथाकथित रणनीति तो यह थी कि जिस तरह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों के पहले बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती को डराकर, उनके भाई को आय से अधिक सम्पत्ति व अन्य कई मामलों में सीबीआई के मार्फत पूछताछ के लिए तीन दिन रोक कर, बसपा का कांग्रेस से गठबंधन नहीं करने दिया गया|उसी तरह से अखिलेश के मुख्यमंत्री रहने के दौरान खनन मामले में आईएएस महिला अफसर चंद्रकला सहित 11 लोगों के 14 स्थानों पर सीबीआई से छापा मरवाकर, अखिलेश यादव को डरा दिया जाएगा।
इस मामले में पूछताछ व गिरफ्तारी के डर से अखिलेश यादव भी उसी तरह से बसपा से गठबंधन नहीं करेंगे, जिस तरह से मायावती ने सीबीआई के डर से कांग्रेस से गठबंधन नहीं किया। लेकिन इस बार भाजपानीत केन्द्र सरकार का यह दांव उल्टा पड़ गया। इसकी वजह यह है कि अब लोकसभा चुनाव सिर पर है। महाराष्ट्र भाजपा के एक पदाधिकारी ने संकेत दे ही दिया है कि मार्च के पहले सप्ताह में लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाएगी। उसके पहले जनवरी के अंत में कुछ दिन के लिए बजट सत्र होगा। इस दौरान यदि केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी ने किसी मामले में अखिलेश यादव को सीबीआई के मार्फत गिरफ्तार कराया, तो उनकी गिरफ्तारी के विरोध में न केवल सपा कार्यकर्ता बल्कि बसपा कार्यकर्ता भी सड़क पर उतर आएंगे।
इसका समर्थन अन्य विपक्षी दलों के कार्यकर्ता भी करेंगे। सीबीआई ने बुआ व बबुआ दोनों को डराकर एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया। इनके पीछे अन्य राज्यों के विपक्षी दलों के नेता जिनके पीछे सीबीआई को लगाया गया है, वे भी एकजुट हो गए। इस तरह केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी का सीबीआई वाला दांव उल्टा पड़ गया है। इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय के वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी जिन्होंने आय से अधिक सम्पत्ति मामले में सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, उनके पुत्र अखिलेश यादव व अन्य के विरूद्ध 11 वर्ष पहले मुकदमा किया है और उस पर न्यायालय ने सीबीआई जांच का आदेश दिया है, का कहना है कि केन्द्र की भाजपानीत सरकार ने खनन मामले में तो अखिलेश यादव को केवल डराने के लिए और बसपा से गठबंधन नहीं करने देने के लिए सीबीआई का छापा आईएएस अफसर चन्द्रकला सहित 11 लोगों के 14 स्थानों पर डलवाया है। इसके लिए तर्क दिया जा रहा है कि न्यायालय के आदेश पर सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है| वह अखिलेश से भी पूछताछ कर सकती है, गिरफ्तार कर सकती है।
चतुर्वेदी का कहना है कि यदि न्यायालय के आदेश की दुहाई दी जा रही है, तो सर्वोच्च न्यायालय ने तो मुलायम सिंह यादव व अखिलेश यादव के आय से अधिक सम्पत्ति मामले में 11 वर्ष पहले ही सीबीआई जांच के आदेश दे रखा है। अभी तक सीबीआई ने उस मामले में क्या किया है। उसी का डर दिखाकर बिहार विधानसभा चुनाव के समय मुलायम सिंह यादव को महागठबंधन से अंतिम समय में अलग कराकर गठबंधन के नेताओं को झटका दिया गया था। इसलिए यह तर्क देना कि सीबीआई उच्च न्यायालय के आदेश ( 2016 में) पर जांच कर रही है और छापे मारी है, तो 2016 से अब तक, तीन साल से सीबीआई क्या कर रही थी? जब अखिलेश यादव दिल्ली में मायावती से मिले, उ.प्र. में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सपा-बसपा गठबंधन करके चुनाव लड़ने के लिए बातचीत करने गये थे| उसके दूसरे दिन चन्द्रकला सहित 11 लोगों के यहां छापा पड़ता है और सीबीआई व पार्टी विशेष के लोग बयान देते हैं कि अब अखिलेश यादव से इस मामले में पूछताछ होगी, उनकी गिरफ्तारी हो सकती है।
इससे साफ संकेत है कि अखिलेश पर बसपा से गठबंधन नहीं करने के लिए दबाव बनाने के लिए यह सब किया गया है। यदि इस मामले में सीबीआई व डीओपीटी तथा केन्द्र सरकार को सचमुच कुछ करना होता, भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाना होता तो वह दो वर्ष पहले ही यह काम कर सकती थी। इसके अलावा भी मायावती, मुलायम व अखिलेश यादव के विरूद्ध कई मामले न्यायालय के आदेश से सीबीआई के पास जांच के लिए पड़े हुए हैं।
उनके विरूद्ध खाद्यान्न घोटाले, जमीन आवंटन घोटाले जैसे मुद्दों पर सीबीआई, केन्द्र सरकार एक दशक से क्यों कुंडली मारे बैठी है? इससे आशंका होने लगी है कि केन्द्र सरकार की मंशा अपने तथाकथित औजार तोता (सीबीआई) के मार्फत सपा व बसपा नेताओं को डरा कर अपना राजनीतिक हित साधने की है। इस बारे में भाजपा सांसद लालसिंह बड़ोदिया का कहना है कि सीबीआई न्यायालय के आदेश से अपना काम कर रही है। इसमें भाजपा व केन्द्र सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए जो लोग भी इस तरह का आरोप लगा रहे हैं वह गलत है। जनता सबके बारे में जानती है कि कौन क्या है। इसका जवाब वह लोकसभा चुनाव में देगी।