
बेटी
जन्मा एक पत्थर ने I
एक पत्थर का टुकड़ा II
मुर्झाया सबका मुखड़ा I
बस एक ही दुखड़ा II
गहरी टीस I
जमानेकीरीस II
हुआ कुछ ना दुआसेI
माँगा था बेटा खुदा सेII
पर आई लड़की कम्बखत I
फुट गई किस्मत II
समय ने ली करवट I
हटी दिल की सलवट II
पत्थर से बनी परी I
किलकारियों की लगी झड़ी II
पायल की झंकार I
हंसी की खनकार II
चहकता घर द्वार I
उसी की पुकार II
नन्हे नन्हे पावंI
प्यार की छावंII
नाजो का पलना I
बचपन का ढलना II
संभालना – फिसलना I
निभायादस्तुर II
किया खुद से दुर I
फिर जन्मा एक पत्थर ने II
एक पत्थर का टुकड़ा I
मुर्झाया हर मुखड़ा II
उमड़ा वाही दुखड़ा I
हायये कैसा व्यापार हुआ II
कैसा ये दुराचार हुआ I
ना जाने कितने पैगामदिए II
भर भर पैसे थाम दिये I
फिर भी, एक दिन II
डायन का इल्जाम हुआ I
परी का सपना खाक हुआ II
दिल का दुकड़ा राख हुआ I
एक एहसास हुआ II
लाड़ दिया, प्यार दिया I
पैसासिर से वार दिया II
ना शिक्षा दी, ना ज्ञान दिया I
कच्ची उम्र में ब्याह दिया II
हाय ये क्या किया I
दिल, दहला दिया II
विचार-विमर्श कियाI
खूब संघर्ष कियाII
नए पंख उगे I
सपने जगे II
उड़ान मिलीI
शान बढ़ी II
ना कष्ट सहा I
न पत्थर रहा II
जीवन ललक I
नई झलक II
मांगी अब बेटी खुदा मे I
उसकी सदा से II
जीवनसचांरI
सुखी संसार II
परियो सा प्यार I
बेटी से ही महकता घर द्वारII

सुश्री मृदुला घई,
अपर केन्द्रीय भविष्य निधि आयुक्त (मुख्यालय),
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,
श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय, भारत सरकार
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