शारदीय नवरात्रि का पर्व 26 सितंबर से 4 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। इन 9 दिनों में देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। वैसे तो हमारे देश में देवी के अनेक मंदिर हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश पहाड़ों पर स्थित है। बहुत कम लोग इसका कारण जानते हैं कि मंदिर निर्माण के लिए हमारे विद्वान पूर्वजों ने पहाड़ों को ही क्यों चुना? इसके पीछे उनकी उन्नत वैज्ञानिक सोच थी। आगे जानिए इसके कारण…
पॉजिटिव एनर्जी का भंडार
पहाड़ी की आकृति को ठीक से देखा जाए तो ये पिरामिड की तरह नजर आते हैं। पिरामिड का अर्थ है, जिसके मध्य में अग्नि है वह वस्तु। अग्नि एक प्रकार की ऊर्जा ही है। अतः पिरामिड का सही अर्थ है- जिसके मध्य में अग्निमय ऊर्जा बहती है। यह भी साबित हो चुका है कि पहाड़ी स्थानों पर पॉजिटिव एनर्जी का स्तर ज्यादा होता है। जब लोग पहाड़ों पर दर्शन के लिए जाते हैं तो उस पॉजिटिव एनर्जी का असर उनके मनो-मस्तिष्क पर भी होता है।
साधना के लिए श्रेष्ठ स्थान है पहाड़
हमारे पूर्वज जानते थे कि भविष्य में मनुष्य अपनी सुविधा के लिए प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर देगा और जंगलो को काटकर वहां रहने लगेगा। लेकिन पहाड़ पर ऐसा करने मुश्किल रहेगा। इसलिए उन्होंने मंदिर के लिए पहाड़ों को चुना। यहां आकर भक्तजन अपनी साधना आसानी से कर सकते हैं, क्योंकि यहां एकांत होता है। साधना के लिए मन एकाग्रचित्त होना चाहिए। यह काम पहाड़ों पर ही संभव है।
प्राकृतिक सुंदरता भरपूर
पहाड़ों पर देवी मंदिर बनाने के पीछे एक कारण ये भी है कि यहां प्राकृतिक सौंदर्य अपने मूल रूप में होता है, जो जीवन में ताजगी लाता है। जब लोग पहाड़ों पर दर्शन के लिए आते हैं तो उन्हें प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिलता है, जो अन्य कहीं देखना संभव नहीं है। देव दर्शन के लिए जब लोग यहां आते हैं तो वे प्राकृतिक का अनुपम सौंदर्य बहुत नजदीक से देख पाते हैं।