बागपत ने खो दिए भाईचारे का पैगाम देने वाले नवाब साहब।

महंदी हसन 
बागपत:-बागपत ने गुरुवार को एक ऐसे शख्सियत नवाब कोकब हमीद को खो दिया, जिसने राजनीतिक जीवन निर्वाह करने के बावजूद हमेशा से गंगा जमुनी तहजीब और भाईचारे का पैगाम दिया। यही वजह है कि वेस्ट यूपी के मुजफ्फनगर सहित कई जिले सांप्रदायिक दंगा होने के बावजूद बागपत में इसकी आंच नहीं आने दिया।
बुधवार देर सायं को कोकब हमीद ने लंबी बीमारी के चलते 66 वर्ष की अवस्था में अपने हवेली में अंतिम सांस ली, जिससे उनके चाहने वालों पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। हर आंखें नम हो गई। नवाब कोकब हमीद को राजनीति विरासत में मिली हुई थी। उनके दादा जमशेद अली खान को अंग्रेजों बागपत का नवाब का ओहदा दिया था, तबसे लेकर आज तक नवाब साहब के हवेली में राजनीतिक गतिविधियां चलती आ रही है।
यहां तक कि कोकब हमीद के पिता शौकत अली भी वर्ष 1966 से लेकर 69 तक कांग्रेस से बागपत के विधायक रहे थे। इससे पहले उन्हें बागपत का चेयरमैन भी बनाया था और बाद इस राजनीतिक विरासत को संभालने का काम अपनी 30 वर्ष की आयु में कोकब हमीद ने शुरू की थी। बचपन से ही सौम्य और मिलनसार व्यक्ति के रूप में विख्यात रहे कोकब हमीद अपने राजनीतिक जीवन में पांच बार विधायक बने। यहां तक कि चार बार कैबिनेट मंत्री रहकर यहां की ही नहीं बल्कि प्रदेश की जनता की सेवा भी की।
यही वजह है कि इस दौरान उन्होंने कभी भी बागपत में किसी तरह का कोई सांप्रदायिक विवाद नहीं होने दिया। बता दें कि पड़ोसी जनपद मुजफ्फनगर में वर्ष 2013 में सांप्रदायिक दंगा भी हुआ लेकिन इसकी आंच तक बागपत में नहीं आने दी। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि वह मुस्लिमों में ही नहीं बल्कि हर समाज के प्रिय और जननेता रहे हैं। हरेक त्यौहारों में एक-दूसरे के साथ रहे।
छोटी से लेकर बड़ी समस्याओं का खुद निदान करने की कोशिश की, जिस वजह से बागपत की जनता ने उन्हें पांच बार विधायक भी चुना। आज जब बुधवार साय को उनका लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया तो उनके चाहने वालों पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। हर आंखें नम हो गई।
कोकब हमीद के अंतिम दर्शन को उमड़ी हजारों की भीड़
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले 38 सालों से राजनीति में सक्रिय रहे नवाब कोकब हमीद गंभीर बीमारी के चलते बुधवार साय अंतिम सांस ली। देर सांय उनके जनाजे को बागपत हवेली में रखा गया, जहां पर हजारों लोग अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े। इनमें एक समुदाय के नहीं बल्कि हर समाज के लोगों के अलावा विशेष रूप से मुस्लिम महिलाएं अंतिम दर्शन करने के लिए पहुंची थी।
उधर रालोद से जयंत चौधरी व कांग्रेस भाजपा के अलावा अन्य राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी मौजूद रहे। सबके सब उनके इकलौते चिराग अहमद हमीद को सांत्वना देने में लगे हुए थे। बता दें कि कोकब हमीद का जन्म 23 मई 1953 को हुआ था। करीब 30 वर्ष की आयु में उन्हें पहली बार विधायक बने और जनता की खिदमत करने का मौका मिला।
उन्होंने इस खिदमत को बरकार रखा। कांग्रेस से राजनीति शुरू करने वाले कोकब हमीद ने जहां रालोद में अपना अधिकतर समय व्यतीत किया वहीं राजनीति उन्हें बसपा की भी सदस्यता ग्रहण करनी पड़ी। बाद में एक बार फिर रालोद में शामिल हो गये थे लेकिन पिछले काफी समय से बीमार होने की वजह से वह राजनीति में सक्रिय नहीं रहे ।
पुश्तैनी कब्रिस्तान मे किया गया सुपुर्देखाक
कोकब हमीद का जनाजा दोपहर के समय मेरठ रोड स्थित पुश्तैनी कब्रिस्तान में उन्हें सुपुर्देखाक किया गया।
एक नजर में : कोकब हमीद
कोकब हमीदजन्म 23 मई 1953
शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा दून स्कूल देहरादून
स्नातक: बीकॉम अलीगढ़ मुस्लिम विवि अलीगढ़
पत्नी: स्व. अनीस फात्मा
परिवार: एक पुत्र, चार पुत्रियां-अहमद हमीद, आयशा, राबिया, सादिया व मारियावर्तमान में सादिया सऊदी अरब में रह रही हैं।
राजनैतिक करियर-
वर्ष 1985 में 30 साल की उम्र में पहली बार कांग्रेस से विधायक बने।
1993 में कांग्रेस से विधायक
1996 में भारतीय क्रांति दल राष्ट्रीय लोकदल
2002 में राष्ट्रीय लोकदल
2007 में राष्ट्रीय लोकदल
चार बार रहे हैं उप्र सरकार में मंत्री
नवाब कोकब हमीद उत्तर प्रदेश सरकार में चार बार कैबिनेट मंत्री रहे हैं। पहली बार 1987 में नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रीत्व कार्यका में ऊर्जा मंत्री, 1998 कैबिनेट मंत्री, वर्ष 2002 में ग्रामीण अभियंत्रण मंत्री और वर्ष 2003 में पर्यटन मंत्री रहे हैं।

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