डिमेंशिया-अल्जाइमर पर नई रिसर्च में निकला भूलने की बीमारी, जानिए क्या है हल

दुनियाभर के वैज्ञानिक डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी दिमागी बीमारियों का परमानेंट इलाज ढूंढने में लगे हैं। इसी बीच इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने इंसान में लक्षण आने से पहली ही इन रोगों का पता लगाने का तरीका ढूंढ निकाला है। स्टडी के मुताबिक, बीमारी होने के 9 साल पहले ही उसे डिटेक्ट किया जा सकता है।

जोखिम वाले मरीजों को फायदा होगा

नई स्टडी से उन लोगों को सबसे ज्यादा फायदा होगा, जिन्हें पहले से भूलने की बीमारी का खतरा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि फिलहाल डिमेंशिया और पार्किंसंस डिसीज का कम से कम एक लक्षण दिखाई देने पर ही रोग को डायग्नोस किया जाता है। जबकि दिमाग में हो रहे ये बदलाव कई सालों या दशकों पहली ही होने लगते हैं।

ऐसे हुई रिसर्च

स्टडी में शामिल वैज्ञानिकों ने 40 से 69 साल के 5 लाख प्रतिभागियों के बायोमेडिकल डेटा को एनालाइज किया। इसमें आनुवंशिक (जेनेटिक), लाइफस्टाइल और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी थी। डेटा में लोगों की याददाश्त, प्रॉब्लम-सॉल्विंग, प्रतिक्रिया देने का समय, चीजें पकड़ने की ताकत और वजन घटने-बढ़ने की जानकारी भी थी।

नतीजों में पाया गया कि जिन लोगों को अल्जाइमर था, स्वस्थ लोगों के मुकाबले उनकी प्रॉब्लम-सॉल्विंग स्किल, प्रतिक्रिया का समय, संख्या याद करने की क्षमता और जोड़ी मिलाने की क्षमता काफी खराब थी। जब इन लोगों की हिस्ट्री देखी गई, तब पता चला कि सालों पहले से इनकी दिमागी क्षमताएं कमजोर होती जा रही थीं।

समय से पहले मरीजों को बचाया जा सकेगा

रिसर्च में शामिल कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के जूनियर डॉक्टर नोल स्वादिवुधिपोंग कहते हैं- मरीज में भूलने की बीमारी का कोई ठोस लक्षण दिखने के सालों पहले ही उसमें हल्के लक्षण आने लगते हैं। अब इस स्टडी की मदद से 50 साल से ज्यादा के ऐसे लोगों की पहले ही जांच की जा सकेगी, जिनका ब्लड प्रेशर ज्यादा रहता है, जो एक्सरसाइज नहीं करते और जिन्हें दिमागी बीमारियों का जोखिम ज्यादा है।

5.5 करोड़ लोग डिमेंशिया के शिकार

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की मानें तो दुनिया में 5.5 करोड़ लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं। इनमें से 60% मरीज लो या मिडिल इनकम देशों में रहते हैं। भूलने की बीमारी के ज्यादातर मरीज बुजुर्ग ही होते हैं। WHO के मुताबिक, साल 2030 तक मरीजों की संख्या बढ़कर 7.8 करोड़ हो जाएगी। वहीं, साल 2050 तक यह आंकड़ा 13.9 करोड़ पर पहुंच जाएगा।

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