प्रकाश पर्व पर वही कथा और कीर्तन की प्रबल रसधारा

भास्कर समाचार सेवा

आगरा। ऐतिहासिक स्थान श्री गुरु तेग बहादुर साहिब (हिन्द की चादर) गुरुद्वारा गुरु का ताल पर उन के प्रकाश पर्व पर कथा और कीर्तन प्रबल रस धारा वही। इस दौरान विशेष रूप पधारे भाई जगजीत सिंह (बबीहा) दिल्ली वालों ने कहा कि गुरु तेग बहादुर साहिब जी गुरु हरी कृष्ण साहिब जी के बाद सिक्खों के नौवें गुरु बने। पहले उनका नाम त्याग मल जी था। उन्होंने जंग के मैदान में हाथों में तेग पकड़ कर जो मिशाल कायम की तब गुरु हर गोविंद जी जिनके की यह पांचवे पुत्र थे उनका नाम बदल कर तेग बहादुर कर दिया। ये गुरु हर गोविंद साहिब जी के पांचवे पुत्र थे। अपने दूसरे शब्द में उन्होंने साधो गोविंद के गुन गावओ, मानस जन्म अमोलक पाएओ बिरथा काहे गवावओ का गायन करते हुए कहा की है इंसान मनुष्य योनि बड़ी मुश्किल से मिली है इसलिए प्रभू के गुण गायन कर संगत को भाव विभोर कर दिया। इससे पूर्व गुरुद्वारा गुरु के ताल के हजूरी रागी भाई हरजीत सिंह ने मेरी सेजाडिए आडंबर बनया मन अनहद भया प्रभ आवत सुनिया अर्ताथ मेरी सेज की ऐसे सजावट हो गई जब मेरे मन को पता लगा कि गुरु जी आ रहे तो उनको देखने के लिए उत्सुकता पैदा हो गई। इसी के साथ उन्होंने गुरु जी के आगमन पर्व की सबको बहुत बहुत बधाई दी। भाई जगतार सिंह हजूरी रागी गुरुद्वारा गुरु के ताल ने धुर की वाणी आई तिन सगली चिंत मिटाई, का गायन करते हुए कहा कि गुरु की वाणी उस परमात्मा के श्री मुख से आई है जिसके गायन से सारी चिंताएं दूर हो जाती है। इससे पूर्व कीर्तन दरबार की आरंभता सोदर रहीरास साहिब के पाठ से हुई, उसके उपरांत ज्ञानी केवल सिंह जी ने गुरु जी के इतिहास पर प्रकाश डाला। अंत में मौजूदा मुखी संत बाबा प्रीतम सिंह ने गुरु जस का गायन किया। दरबार में बाबा प्रीतम सिंह, उपेन्द्र सिंह लवली, समन्वयक बंटी ग्रोवर आदि उपस्थिति रहे।

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