लखनऊ : सैफई के मुलायम का यादवी कुनबा चाचा-भतीजा के सत्ता जंग में बुरी तरह जख्मी होकर जन मन से साफ हो जाएगा या बचेगा, यह आगामी लोकसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव बाद स्पष्ट होगा। लेकिन इसके लिए संकल्प करके उ.प्र. की सड़कों पर सर्वसुविधा सम्पन्न अति महंगी गाड़ी पर निकल चुके शिवपाल यादव कोशिश पूरी कर रहे हैं।
जोश इसलिए भी है कि इसके लिए पर्दे की आड़ से सत्ता का शह मिल रहा है। यही वजह है कि शिवपाल यादव राज्य की 80 की 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का हुंकार भरने के बाद अब अपने बड़े भाई मुलायम यादव के पुत्र अखिलेश यादव को इशारों-इशारों में कंस कहने लगे हैं। यह कहके वह उनकी राजनीति को नेस्तनाबूद करने की प्रतिबद्धता का संकेत करने लगे हैं। लेकिन समाजवाद के नाम पर जातिवाद और लूटवाद का वीभत्स दर्शन कराने वाला यह कुनबा आपस में जितना लड़ेगा उतना राज्य का भला होगा, यह कहना है पूर्व मंत्री सुरेन्द्र का।
सुरेन्द्र कहते हैं कि समय ने मुलायम सिंह यादव को बहुत मौका दिया था। कई बार मौका दिया था। लेकिन उन्होंने उसका उपयोग किस तरह से किया, यह सबके सामने है। राज्य को कुनबाई राजनीति की धुरी बना दिया। घोटाले इतने की उसकी जांच के तंत्र की कठपुतली बन गये। सीबीआई व ईडी के डर से केन्द्र में जिसकी सत्ता होती है उसके इशारे पर सब कुछ करने को मजबूर रहते हैं।
राम मनोहर लोहिया के सच्चे वारिस होने का दावा करने वाले मुलायम व उनके कुनबे का यह जातिवादी, सुविधावादी, अवसरवादी, धनवादी रूप देखकर बचे-खुचे लोहियावादी कलपते हैं। ऐसे लोग अब कहने लगे हैं कि यदुवंशी अपने में लड़कर ही खत्म होते हैं। मुलायम कुनबा की राजनीति का अंत भी अब आपस में लड़कर ही होगा।
इस बारे में एआईसीसी सदस्य अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि यदि बसपा, सपा, कांग्रेस, रालोद का गठबंधन हो गया तब तो उ.प्र. में भाजपा बनाम इस गठबंधन की लड़ाई ही होगी। तब शिवपाल वोट कटवा करार दिये जाएंगे। यदि बसपा, सपा, कांग्रेस, रालोद का गठबंधन नहीं हुआ, जिसके लिए केन्द्र व राज्य का सत्ता तंत्र पूरी तरह से लगा हुआ है, तो शिवपाल बसपा व सपा दोनों के ही वोट काटेंगे। इसका भरपूर लाभ भाजपा को मिलेगा।
देखना यह है कि सपा व बसपा के प्रमुख लोग सीबीआई व ईडी से डर रहे हैं या अपनी राजनीति खत्म होने की संभावना से। वैसे भी भाजपा प्रमुख अमित शाह ने कहा ही है कि भाजपा 2019 लोकसभा चुनाव जीतने के बाद 50 वर्ष तक राज करेगी।