कोल से सिटिंग विधायक जमीर उल्ला का टिकट कटा था
फिर भी निर्दलीय चुनाव लडकर हो गया था वोटो का बिखराव
राजीव शर्मा,
अलीगढ। समाजवादी पार्टी में हुए दो फाड से जिले की सियासत गरमा गई है। जिले में पूर्व जिलाध्यक्ष डा रक्षपाल ंिसंह के साथ एक खेमा भी जुडता जा रहा है। लोकसभा चुनाव में सपा ने बिना गठबंधन के चुनव लडा तो पार्टी को नुकसान उठाना पड सकता है।
विधानसभा चुनाव 2017 में कोल विधानसभा सीट से सपा ने सिटिंग विधायक हाजी जमीर उल्ला खान की टिकट काट दी थी। जमीर उल्ला का सीधा लिंक शिवपाल यादव से था। जमीर उल्ला निर्दलीय चुनाव लडे और करीब 12 हजार वोट पा गए। कांग्रेस और सपा का गठबंधन होने के बाद भी कांग्रेस ने पूर्व विधायक विवेक बंसल को प्रत्याशी बनाया। बंसल भी तीस हजार वोट पाने में सफल हो गए। सपा प्रत्याशी ने दूसरा स्थान प्राप्त किया लेकिन वोट के बिखराव से भाजपा प्रत्याशी अनिल पाराशर पचास हजार से अधिक मतों से जीत गये।
अब जमीर उल्ला बसपा में हैं और उनके खास लोगों ने शिवपाल यादव की बनाई गई समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा का दामन थामना शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी से शुरू से जुडे पूर्व जिलाध्यक्ष डा रक्षपाल सिंह ने मंडल की पहले ही कमान संभाल ली है और अब बाबा फरीद आजाद शामिल हो गए है। इन दोनों के शामिल होने से राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
गठबंधन पड सकता है भारी
अभी गठबंधन तय नहीं हुआ है। अगर सपा और कांग्रेस का गठबंधन विधानसभा चुनाव में हुआ तो वोट का बिखराव रूक सकता है। इससे अलीगढ संसदीय सीट पर भाजपा के लिये कांग्रेस और सपा का गठबंधन भारी भी पड सकता है। इस सीट पर मुस्लिम वोट अच्छा खासा है। हालांकि बसपा के साथ गठबंधन को लेकर अभी संशय बना हुआ है।