पीलीभीत : लोक आस्था का केंद्र बने राम, समाप्त हुआ 497 वर्षों का वनवास

पीलीभीत। प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान देश उत्साह के साथ मार्मिक भी हुआ, आखिर हो भी तो क्यों नहीं, क्योंकि उनके कलयुग के राम ने तो 10 – 20 वर्षों का नहीं बल्कि 497 वर्षों का अज्ञातवास काटा है। इसके बावजूद प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही भगवान राम लोक आस्था का केंद्र बनकर उभरे हैं।

देश में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को हुई और राजनीतिक पार्टियों को छोड़ दें तो सभी जाति धर्म के लोग उत्साहित थे कि उनके प्रभु भगवान श्री राम एक बार फिर अयोध्या में विराट स्वरूप के साथ पुनर्स्थापित हो रहे हैं। जिस भारत को हजारों वर्षों तक रौंदा गया, कुचला गया और जातियों में बांटा गया हो, वह 22 जनवरी को एक साथ उत्सव मनाने के लिए खड़ा हो गया।

क्योंकि देश जान चुका है दुनिया में खोए हुए अभियान को वापस लाने के लिए, नए भारत की नई स्थापना के लिए, परंपरागत उत्सवों को बचाने के लिए, पुरानी संस्कृति को जीवन धारा में उतारने के लिए नए रूप में भगवान राम को लाना होगा। राम मर्यादा पुरुषोत्तम है, राम वैराग्य भी है, राम अनुराग हैं और राम मानव जीवन के आधार भी है। भगवान राम का नाम दुनिया में सबसे अधिक उच्चारण हो रहा है और युवाओं में यह शब्द एक क्रांति है।

देश हो या विदेश की धरती पर बसे भारतीय 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा और पुनर्स्थापना पर सब कुछ लुटा देना चाहते थे। माता सीता की धरती नेपाल राष्ट्र से मंगल गीतों की ध्वनि भारत ही नहीं दुनिया भर में सुगंधित हो रही है, यह वाकई में मार्मिक क्षण है, जब भगवान राम का कलयुग में 497 वर्षों का अज्ञातवास समाप्त हो रहा है। यह ऐसा क्षण है जिसमें मानो सैकड़ो बरसों की तपस्या फलित हो रही हो, यह उन कार सेवकों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि का दिन रहा जिन्होंने अयोध्या कांड में राजनीति का शिकार होकर अपने प्राणों को निछावर कर दिया।

ऐसा अन्याय जो शायद धरती पर किसी भी देश में नहीं हुआ होगा कि भगवान को अपना अस्तित्व साबित करने के लिए अदालत तक जाना पड़े, जिस मातृभूमि पर हजारों वर्ष पहले भगवान राम का भव्य मंदिर होना चाहिए था उसको 497 वर्षों का लंबा सफर तय करना पड़ा। भारत में भगवान राम के नाम पर राजनीति का लंबा दौर चला, राजनीतिक पार्टियों ने लोगों को धर्म में ही नहीं जातियों में भी बांटा, हजारों साल पुराने छूत-अछूत के इतिहास को संभाल कर रखा और लोगों को बांटते रहे।

शायद अब राम पर राजनीति नहीं होगी, राजनीतिक दलों को पता था कि राम तो सबके हैं और अगर उनको बाटेंगे नहीं तो निश्चित तौर पर राज नहीं कर पाएंगे। तकरीबन एक लंबी सदी तक राम मंदिर के मुद्दे पर देशभर में लोगों को धर्म के आधार पर, जाति के आधार पर, विभाजित किया गया जबकि राम सबके हैं और राम सब में हैं। 22 जनवरी से पहले देश के हर एक कोने से एक ही स्वर सुनाई दे रहा था और वह शब्द है भगवान राम के नाम का, वह शब्द है भारत की आस्था का, वह शब्द है मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान जय श्री राम का।

प्राण प्रतिष्ठा के बाद निश्चित तौर पर एक नए भारत का उदय हो रहा है जो दुनिया भर में एकता और अखंडता का प्रतीक बनकर उभरा है। देश भर के 28 राज्यों और 8 संघ राज्य अयोध्या में श्री राम आगमन का महोत्सव मनाया गया और नए सिरे से पूरे देश ने दीपावली मनाई। यह जीत है 140 करोड़ भारतीयों की जिनको सदियों से राजनीतिक पार्टियां धर्म और जातियों में विभाजित करती रहीं, श्रीराम महोत्सव देशभर में नई ऊर्जा का संचार कर रहा है, व्यापार जगत के लिए बड़ी उम्मीद हैं राम, अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर भारत एक नया अध्याय लिखा गया और इसका व्यापक असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा।

धार्मिक मान्यताओं से अलग हटकर दुनिया भर के टूरिज्म को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं राम, अयोध्या के इस भव्य रूप को देखने के लिए लाखों की तादात में लोग लाइव रहे हैं। देशभर से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अयोध्या भेजने के लिए हवाई यात्राएं शुरू की गई हैं। देश की अखंडता की बात करें तो अयोध्या में करीब 25 लाख से अधिक मुसलमान इस भव्य और नव्य अयोध्या को करीब से देख कर आनंदित हुए।

अयोध्या से श्रीलंका तक का भगवान लक्ष्मण के साथ पैदल सफर करने वाले भगवान श्री राम माता सीता के साथ 22 जनवरी को अयोध्या में स्थापित हुए, यह कोई मामूली पल नहीं था, यह 497 वर्षों की तपस्या और पुण्य प्रताप फलित होने जैसा एक भव्य संयोग है। भारत के अमृत काल में विकास की धारा बनकर भारतवर्ष के लोगों के दिलों में प्रवाहित हुए हैं राम।

भारतवर्ष की अंतरात्मा में बसने वाले भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा और पुनर्स्थापना के लिए सरकार को अपील करनी पड़ी कि 22 जनवरी को अयोध्या ना पहुंचे, अपने घरों में रहकर भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा का दीप महोत्सव बनाएं। यह काम कोई मामूली नहीं है जिसमें सारा देश सहभागी और सौभाग्यशाली बनकर समाहित हो गया। यह तो सिर्फ भगवान श्रीराम की कृपा से ही संभव है और कहना पड़ रहा है कि 22 जनवरी को भगवान श्री राम का 497 वर्षों का बनवास समाप्त हो गया है।

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