संदीप पुंढीर/दैनिक भास्कर
हाथरस। जिले में ‘एक जिला एक उत्पाद’ में शामिल हाथरस की चुटकी भर हींग विदेशों तक खाने में अपना जायका बिखेरती है। यहां बनी हींग के लिए दूध (रेजीन) अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, कजाकिस्तान, ईराक आदि देशों से आयात होती है। जिसे खाने लायक हाथरस में बनाने का काम होता है। हाथरस में बनी हुई हींग जहां देश के कोने-कोने में जाती है, वहीं विदेशों में भी इसका तड़का लगता है।
जिले में हींग की करीब एक दर्जन से अधिक बड़ी फैक्ट्री हैं। इसके अलावा कुटीर उद्योग के रूप में भी इसे बनाने का काम होता है। इस कारोबार से करीब ढाई हजार मजदूर जुड़े हुए हैं। जिले में साल भर में हींग कारोबार का टर्नओवर 50 करोड़ से अधिक का बताया जाता है। कारोबारी बताते हैं कि अफगानिस्तान की स्थिति का प्रभाव हींग कारोबार करने वालों पर खासा पड़ा है। वहां से हींग का आयात हम लोग नहीं कर पा रहे हैं। इस वजह से हमें बहुत दिक्कतें आ रही हैं।
हींग की कीमतों में 10 से 15 फीसदी का उछाल आ चुका है, वही हाथरस में हींग का उद्योग कई सौ साल पुराना हैं। यहां वर्षों से हींग बनाने का कारोबार होता आ रहा है। पहले से हींग बनाने की तरीको में भी अब सुधांर आया है। हींग बनाने की प्रक्रिया कुछ इस तरह है कि हींग एक पेड़ की जड़ से अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान व ईरान से हींग का दूध आयात होता है और हाथरस में इसे कड़ी मेहनत के बाद हींग का रूप दिया जाता है।
हींग बनाने के लिये हींग के दूध को धूप में कई दिनों तक सुखाया जाता है और कई तरीके की चीजों का मिश्रण भी हींग की क्वालिटी बनाने के लिए किया जाता है। वहीं पूरी प्रक्रिया व पैकेजिंग के बाद हींग आम घरों तक पहुंचती है और खाने के जायके को बढ़ाती है।
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