
एटा। सरस्वती विद्या मंदिर सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रांगण में मोहनदास करमचंद गांधी की 73 वीं पुण्यतिथि पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ कार्यक्रम के संयोजक मनोज सिकरवार एवं मुख्य वक्ता सुनीता उपाध्याय ने गांधी जी के चित्र पर पुष्प अर्पित करके किया। मनोज सिकरवार ने उनके जीवन का प्रारंभिक परिचय कराते हुए बताया कि मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था तथा उनकी मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई थी ।जिनकी पुण्य तिथि आज हम मना रहे हैं। इनको दुनिया में आम जनता “महात्मा गांधी” के नाम से जानती है। सुभाष चंद्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गांधीजी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें “राष्ट्रपिता” कहकर संबोधित करते हुए आजाद हिंद फौज के सैनिकों के लिए उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगी थी। तब से लोग उन्हें “राष्ट्रपिता” कहकर भी संबोधित करने लगे। वह मूल रुप से गुजराती थे। गुजरात में बापू शब्द पिता के लिए संबोधित किया जाता है इसलिए लोग उन्हें “बापू” कहकर भी संबोधित करते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्ष सुनीता उपाध्याय ने उनके कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा सबसे पहले गांधीजी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के “नागरिक अधिकारों ” के लिए संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना आरंभ किया। 1915 में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होने यहां के किसानों, श्रमिकों और नगरीय श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए एकजुट किया । 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जिम्मेदारी सम्हालने के बाद उन्होंने देश भर में दरिद्रता से मुक्ति दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार ,धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिए अस्पृश्यता के विरोध में अनेको कार्यक्रम चलाए। इन सभी में विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गए “नमक कर” के विरोध में 1930 में “नमक सत्याग्रह ” और इसके बाद 1942 में “अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन ” से विशेष ख्याति प्राप्त की । गांधीजी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी से इनका पालन करने के लिए अपील भी की।

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रमोद वर्मा ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि व्यक्ति का एक व्यक्तिगत चरित्र होता है और एक राष्ट्रीय चरित्र होता है। जब हम अपने लिए कार्य करते हैं तो वह व्यक्तिगत चरित्र होता है । राष्ट्र के हित में कार्य करते हैं तो वह राष्ट्रीय चरित्र होता है। महात्मा गांधी का व्यक्तिगत चरित्र अनुकरणीय है । वह सत्य और अहिंसा प्रेमी थै। वह सादा शाकाहारी भोजन करते थे और आत्म शुद्धि के लिए लंबे-लंबे उपवास भी रखते थे । किंतु उनका राष्ट्रीय चरित्र संदेहास्पद रहा। उन्होंने कहा था कि ” मेरे जीते जी भारत राष्ट्र का विभाजन नहीं हो सकता ” किंतु दुर्भाग्यवश उनके जीते जी ही भारत का विभाजन हो गया । क्योंकि अपने जीवन के अंतिम चरण में वह राष्ट्र विरोधी लोगों के हाथों की कठपुतली बन गए थे। दो संप्रदाय के बीच उत्पन्न मतभेद को वे समाप्त ना करा सकें, बल्कि उन्होंने तुष्टीकरण की नीति अपनाई। भारत का विभाजन भारत के इतिहास की सबसे दुखद घटना रही क्योंकि इसको आजाद कराने के लिए भारतीयों ने जाति, धर्म ,संप्रदाय के भेद भाव के बिना राष्ट्रवाद की भावना से ओत-प्रोत होकर राष्ट्रीय आंदोलन में अपना बलिदान तक दिया था। इस कारण नाथूराम गोडसे ने उनका वध कर दिया। नागेश अग्निहोत्री ने कहा महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों को जगाने का कार्य काफी सबलता से किया। लेकिन अधिकांश आंदोलन जब अपने चरम पर होते थे तभी वह उस आंदोलन को वापस ले लिया करते थे । उनके इस दोषपूर्ण व्यवहार के कारण गरम दल के नेता और उनके समर्थक उनके खिलाफ हो जाते थे। उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की विचारधारा के कारण देश को विभाजन झेलना पड़ा। जिसके परिणाम स्वरुप हिंदू- मुस्लिम मतभेद का दुष्परिणाम देश को अभी तक भुगतना पड़ रहा है। इस अवसर पर प्रेमचंद ,डॉ अरुण राजौरिया, आश्चर्य वार्ष्णेय ,संजीव मिश्रा ,यादवेश सिंह, कृष्णकांत पांडे, विवेक पांडे ,सुनीता जैन, कुसुम पांडे , रमन प्रताप सिंह, श्याम सुंदर शुक्ला, सत्य प्रकाश पाठक ,आलोक त्रिवेदी, सत्य शील मिश्रा, पुष्पेंद्र कुमार शर्मा, भवनाथ झा, सूबेदार सिंह शाक्य, अजय गौड़ ,राजेंद्र सिंह, डॉक्टर संजीव सिंह, पंकज मलिक, ममता उपाध्याय, डॉ योगेंद्र सिंह ,कृष्ण गोपाल अग्रवाल, डॉ राहुल शर्मा ,दयाशंकर पचौरी, विवेक दुबे, नागेश अग्निहोत्री ,जगपाल सिंह राठौर, विजय कुमार, केशव मिश्रा ,मुनेंद्र प्रताप सिंह आदि की उपस्थिति रही।