जयपुर। आज सुबह सात बजे से राजस्थान के 199 सीटों पर मतदान जारी है, जहां मतदाता 1,863 उम्मीदवारों के किस्मत का फैसला कर रहे हैं। इस बात फिर सबकी नजर इस बात पर बनी हुई है कि राज बदलेगा या रिवाज बदलेगा।
राज बदलेगा या रिवाज
राज्य के 5.26 करोड़ से ज्यादा मतदाता आज राजस्थान के अलग-अलग पोलिंग बूथ पर अपने मताधिकार से राज या रिवाज बदलने के लिए इकट्ठा हो रहे है। दरअसल, प्रदेश में पिछले 30 साल में हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा रही है। इसके साथ ही, पिछले तीन चुनावों से एक परंपरा और बन गई है, वह 200 में से 199 सीटों पर मतदान होने की परंपरा है।
199 सीटों पर होगा मतदान
दरअसल, राजस्थान के करणपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी गुरमीत सिंह कुन्नर (75) का दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया और इसलिए इस सीट पर चुनाव स्थगित कर दिया गया है। अब 200 में से 199 सीट पर ही शनिवार को मतदान होगा।
इससे पहले 2013 में चूरू सीट से बसपा प्रत्याशी जगदीश मेघवाल का निधन हो गया था, जिसके कारण 199 सीटों पर चुनाव हुए थे। वहीं, चुनाव आयोग ने लगभग एक महीने बाद इस सीट पर चुनाव आयोजित किया था। इसके बाद पिछले विधानसभा चुनाव में रामगढ़ सीट पर बसपा प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह की मौत के कारण चुनाव टाल दिया गया था। मालूम हो कि भाजपा ने अपने सभी 200 विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है, लेकिन कांग्रेस ने 199 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। दरअसल, कांग्रेस ने एक सीट राष्ट्रीय लोकदल के लिए समझौते को लेकर छोड़ी है।
वसुंधरा और गहलोत 30 सालों से संभाल रहे सीएम गद्दी
1993 के बाद से लगातार कांग्रेस और भाजपा के बीच सरकार की अदला-बदली होने का रिवाज रहा है। दरअसल, 1993 में भैरोंसिंह शेखावत के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई थी। इसके बाद 1998 में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद, साल 2003 में कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उस चुनाव में कांग्रेस को मात्र 21 सीटें मिली थी। उस समय वसुंधरा राजे को भाजपा का सीएम चेहरा बनाया गया था।
फिर 2008 में चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को जीत मिली और गहलोत दूसरी बार सीएम बने। 2013 में वसुंधरा के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी और फिर 2018 में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनी और गहलोत तीसरी बार सीएम बने हुए हैं। इस तरह से पिछले तीस साल में बारी-बारी से गहलोत और वसुंधरा ही सीएम बनते रहे हैं।
निर्दलीय व छोटे दलों के प्रत्याशी बड़े पार्टियों पर भारी
राजस्थान के लगभग दो दर्जन विधानसभा सीटों पर निर्दलीय और छोटे दलों के प्रत्याशी कांग्रेस और भाजपा पर हावी नजर आ रहे हैं। इनमें चित्तौड़गढ़ सीट पर भाजपा के बागी चंद्रभान आक्या, डीडवाना में भाजपा के बागी यूनुस खान, शिव में भाजपा के बागी रविंद्र सिंह भाटी, खंडेला में भाजपा के बागी बंशीधर, बाड़मेर से भाजपा की बागी प्रियंका चौधरी, कोटपूतली में भाजपा के बागी मुकेश गोयल, सुमेरपुर में भाजपा के बागी मदन राठौड़, सांचौर में भाजपा के बागी जीवाराम चौधरी और सवाई माधोपुर में भाजपा की बागी आशा मीणा है।
कांग्रेस की बागी नेताओं की पकड़ मजबूत
इसके अलावा, बसेड़ी में कांग्रेस के बागी खिलाड़ी लाल बैरवा, राजगढ़ कांग्रेस के बागी जौहरी लाल मीणा, छबड़ा में कांग्रेस के बागी नरेश मीणा, सादुलशहर में कांग्रेस के बागी ओम बिश्नोई, पुष्कर में कांग्रेस के बागी गोपाल बाहेती, सिवाना में कांग्रेस के बागी सुनील परिहार, शाहपुरा में कांग्रेस के बागी आलोक बेनीवाल, लूणकरणसर में कांग्रेस के बागी विरेंद्र बेनीवाल, भरतपुर में बसपा प्रत्याशी गिरीश चौधरी, बहरोड़ में निर्दलीय बलजीत यादव, खींवसर में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के हनुमान बेनीवाल, केकड़ी में निर्दलीय बाबूलाल, मसूदा में ब्रह्मदेव कुमावत, बानसूर में रोहिताश्व कुमार नागौर सीट पर हबीबुर्रहमान कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं।
आप और जेजेपी का नहीं दिख रहा खास असर
बसपा, माकपा, आरएलपी और भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने 2018 में भी अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे थे, लेकिन इस बार पहली दफा आम आदमी पार्टी (आप) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। हालांकि, अब तक का माहौल देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों ही पार्टियों का कोई खास असर नहीं है। हालांकि, माकपा दांतारामगढ़ व भादरा में मजबूत नजर आ रही है।