केरल के सुप्रसिद्ध सबरीमाला विवाद को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका को पांच न्यायाधीशों की पीठ ने बड़ी बेंच को रेफर कर दिया है। अब इसके बाद सात जजों की पीठ इस पर अपना फैसला सुनाएगी। पुनर्विचार याचिकाएं चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच जजों की बेंच में दायर की गई थी। चीफ जस्टिस, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस एएम खानविलकर ने केस बड़ी बेंच को भेजने का फैसला दिया। जस्टिस आर. एफ. नरीमन और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके खिलाफ फैसला दिया।
मंदिर में महिलाओं के प्रवेश वर्जित के पीछे की वजह
सबरीमाला मंदिर का इतिहास 800 साल का है। इसमें महिलाओं के प्रवेश पर विवाद भी दशकों पुराना है। वजह यह है कि भगवान अयप्पा नित्य ब्रह्मचारी माने जाते हैं, जिसकी वजह से उनके मंदिर में ऐसी महिलाओं का आना मना है, जो मां बन सकती हैं। ऐसी महिलाओं की उम्र 10 से 50 साल निर्धारित की गई है। माना गया कि इस उम्र की महिलाएं रजोकर्म की वजह से शुद्ध नहीं रह सकतीं और भगवान के पास बिना शुद्ध हुए नहीं आया जा सकता।
कहा से शुरू हुआ महिलाओं के रोक का सिलसिला
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं से जुड़ा पहला विवाद 1950 में सामने आया। इस साल सबरीमाला मंदिर में आग लग गई थी। आग बुझाने के बाद मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया और कुछ नियम भी लागू किए गए। सबसे बड़ा नियम था कि अब से महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकेंगी।
पहली जनहित याचिका 1990 में दाखिल की गई
वर्ष 1990 में एस. महेंद्रन नाम के व्यक्ति ने कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की। यह याचिका मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर थी। साल 1991 में कोर्ट ने याचिका पर फैसला सुनाया कि महिलाओं को सबरीमाला मंदिर नहीं जाने दिया जाएगा।
कन्नड़ अभिनेत्री के दावे से हुई शुरुआत
2006 में मंदिर के मुख्य पुजारी परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा था कि मंदिर में स्थापित अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं। वह इसलिए नाराज हैं क्योंकि मंदिर में किसी युवा महिला ने प्रवेश किया है। इसके बाद ही कन्नड़ एक्टर प्रभाकर की पत्नी जयमाला ने दावा किया था कि उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ और उनकी वजह से अयप्पा नाराज हुए। उन्होंने कहा था कि वह प्रायश्चित करना चाहती हैं। अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया था कि 1987 में अपने पति के साथ जब वह मंदिर में दर्शन करने गई थीं तो भीड़ की वजह से धक्का लगने के चलते वह गर्भगृह पहुंच गईं और भगवान अयप्पा के चरणों में गिर गईं। जयमाला का कहना था कि वहां पुजारी ने उन्हें फूल भी दिए थे।
सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई थी याचिका
जयमाला के दावे पर केरल में हंगामा होने के बाद मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने के इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान गया। 2006 में राज्य के यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की। इसके बावजूद अगले 10 साल तक महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश का मामला लटका रहा।
कोर्ट ने माना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
11 जुलाई,2016 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक का यह मामला संवैधानिक पीठ को भेजा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसा इसलिए क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है और इन अधिकारों के मुताबिक महिलाओं को प्रवेश से रोका नहीं जाना चाहिए। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया था और जुलाई,2018 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की थी।
महिलाओं के हक में आया फैसला
28 सितम्बर,2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी। कोर्ट ने साफ कहा कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का गुस्सा महिलाओं ने झेला
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जब 18 अक्टूबर,2018 को मंदिर के कपाट खुले तो तमाम महिलाएं भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए पहुंचीं। उस समय माहौल बेहद तनावभरा था क्योंकि मंदिर का बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद महिलाओं को प्रवेश देने के हक में नहीं था। मंदिर के रास्ते में हिंसा हुई, महिला पत्रकारों पर हमले किए गए, मीडिया की गाड़ियां तोड़ी गईं, पथराव-लाठीचार्ज हुआ और लोगों को गिरफ्तार भी किया गया।
नए साल पर दो महिलाओं ने किया था प्रवेश
वर्ष 2019 की 02 जनवरी को दो महिलाओं बिंदु और कनकदुर्गा ने दावा किया कि उन्होंने तड़के मंदिर में भगवान के दर्शन किए। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से कई महिला श्रद्धालु और महिला सामाजिक कार्यकर्ता मंदिर जाने की कोशिश कर चुकी थीं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इन दोनों महिलाओं के मंदिर में जाने के बाद ‘मंदिर की शुद्धि’ का हवाला देते हुए दरवाजे बंद कर दिए गए, जिन्हें दोपहर 12 बजे के आसपास दोबारा खोल दिया गया।
भगवान शिव और विष्णु की संतान हैं अयप्पा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी ( भगवान विष्णु का एक अवतार) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है।
अय्यप्पा स्वामी को माना जाता है ब्रह्मचारी
केरल में शैव और वैष्णवों में बढ़ते वैमनस्य के कारण एक मध्य मार्ग की स्थापना की गई थी, जिसमें अय्यप्पा स्वामी का सबरीमाला मंदिर बनाया गया था। इसमें सभी पंथ के लोग आ सकते हैं। ये मंदिर लगभग 800 साल पुराना माना जाता है। अयप्पा स्वामी को ब्रह्मचारी माना गया है, इसी वजह से मंदिर में उन महिलाओं का प्रवेश वर्जित था जो रजस्वला हो सकती थीं।
उल्लेखनीय है कि गत वर्ष 28 सितम्बर को केरल के सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा की अगुआई में फैसला सुनाते हुए सभी महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी। इस फैसले के बाद पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन हुआ और कहीं-कही हिंसा भड़की थी। सबरीमला में भगवान अयप्पन का मंदिर है। शबरी पर्वत पर घने वन हैं। इस मंदिर में आने के पहले भक्तों को 41 दिनों के कठिन व्रत का अनुष्ठान करना पड़ता है, जिसे 41 दिन का ‘मण्डलम्’ कहते हैं। यहां वर्ष में तीन बार जाया जा सकता है- विषु (अप्रैल के मघ्य में), मण्डलपूजा (मार्गशीर्ष में) और मलरविलक्कु (मकर संक्रांति में)।