संन्यासी अखाड़े ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद स्वामी अविमुक्तेश्वर को ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया है। गुजरात की द्वारका-शारदा पीठ और उत्तराखंड की ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य का 11 सितंबर को उनके आश्रम में निधन हो गया था। इसके बाद स्वामी स्वरूपानंद की वसीयत के आधार पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निजी सचिव व शिष्य सुबोद्धानंद महाराज ने अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य घोषित किया था।
इस घोषणा को लेकर निरंजनी अखाड़े के सचिव और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने दावा किया है कि अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति नियमों के खिलाफ जाकर की गई है। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य की नियुक्ति की एक प्रक्रिया होती है जिसका पालन नहीं किया गया। उन्होंने बताया कि नए शंकराचार्य की नियुक्ति की रणनीति बनाने के लिए सभी सात अखाड़े जल्द ही बैठक करेंगे।
22 साल तक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य रहे स्वामी अविमुक्तेशवरानंद
15 अगस्त 1969 को जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का बचपन में नाम उमाशंकर पांडे था। कक्षा 6 तक की पढ़ाई गांव में करने के बाद घरवालों ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए बाहर भेज दिया। एक बार उनके पिता उन्हें गुजरात ले गए वहां वे काशी के संत रामचैतन्य से मिले। उन्होंने बेटे को वहीं छोड़ दिया। तब उमाशंकर की उम्र साठ साल थी। यहीं पर रहकर उमाशंकर पूजन पाठ और पढ़ाई करने लगे।
5 साल तक गुजरात में रहकर पढ़ाई करने के बाद उमाशंकर काशी पहुंचे। काशी में उनकी मुलाकात स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से हुई। इसके बाद उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। साल 2000 में उन्होंने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा ली और उनके शिष्य बन गए। फिर उमाशंकर पांडे से वह स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बन गए।
ज्ञानवापी परिसर में किया था 108 घंटे तक अनशन
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने 4 जून 2022 को ज्ञानवापी परिसर में पूजा का ऐलान किया था। पुलिस प्रशासन की तरफ से रोके जाने के बाद वे 108 घंटे तक अनशन पर रहे। उसके बाद जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के कहने पर उन्होंने अनशन खत्म किया था।
हार्ट अटैक से हुआ शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद का निधन
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन माइनर हार्ट अटैक आने के बाद हुआ। उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में 11 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 50 मिनट पर अंतिम सांस ली।
शंकराचार्य लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनका बेंगलुरु में इलाज चल रहा था। हाल ही में वे आश्रम लौटे थे। स्वामी शंकराचार्य आजादी की लड़ाई में जेल भी गए थे। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी।