शनि को न्याय का देवता भी कहा जाता है। शनिदेव का नाम लेते ही आम मानस में भ्रम या भय का भाव उत्पन्न हो जाता है। कहा तो यहां तक कहा जाता है कि अगर हम पर शनि की छाया भी पड़ गयी तो कहर आ जाएगा।
इन सब भ्रांतियों को श्री सिद्धपीठ शनि धाम के महंत व पुजारी नरेश चंद्र रुवाली ने विशेष बातचीत में दूर किया।महंत रुवाली कहते हैं कि शनि सबसे प्रिय और न्यायप्रिय ग्रह हैं। आप अपनी आदतों से खुद जान सकते हैं कि शनि की आप पर कितनी कृपा हो रही है। शनि ही हैं जो प्रकृति की व्यवस्था को संभालते हैं। यदि आपने गलत, अत्याचार, अनाचार, पाप किया है तो आपको उसका दंड जरूर मिलेगा। यदि इसे आप गलत कहते हैं, तो शनिदेव का क्या दोष ? महंत रुवाली कहते हैं कि शनि कभी किसी का बुरा नहीं करते। उनकी दृष्टि में इतना तेज है कि हम उनसे नजरें नहीं मिला सकते लेकिन यदि हम सही पथ पर चलते हैं तो शनि हमेशा हम पर कृपा बनाये रखते हैं।
शनि की क्रूर दृष्टि कर देगी बर्बाद
श्री रुवाली कहते हैं कि सूर्य के पुत्र शनि उन ग्रहों में से हैं, जिनकी क्रूर दृष्टि किसी को बर्बाद कर सकती है लेकिन उनकी अच्छी दृष्टि अगर किसी पर एक बार पड़ जाए तो उसके सारे काम बन जाते हैं और उसके घर कभी दरिद्रता नहीं आती। शनिदेव सूर्य से काफी दूरी पर हैं और यही कारण है कि शनि प्रकाशहीन हैं। भगवान शनि के प्रकाशहीन होने की वजह से कई लोग उन्हें निर्दयी, क्रोधी, भावहीन और उत्साहहीन भी मान लेते हैं लेकिन वो ये नहीं जानते कि शनि अगर किसी से प्रसन्न होते हैं तो उसे वैभव और धन से भर देते हैं। शास्त्रों के मुताबिक शनि का अप्रसन्न होने का अर्थ है मुसीबतों का मार्ग खुलना, लेकिन कैसे जानें कि शनि आपसे प्रसन्न हैं या अप्रसन्न? आपको जानकर हैरानी होगी कि रोजाना जीवन में आपकी कुछ आदतों से पता चलता है कि शनि भगवान आप पर प्रसन्न हैं।
शनि की कृपा के लिए नाखून को रोज करें साफ
उन्होंने कहा कि जो लोग रोज अपने नाखून काटते हैं और उन्हें साफ भी रखते हैं, शनि ऐसा करने वालों का हमेशा ख्याल रखते हैं। इसलिए अचानक अगर आप अपने नाखून काटने में आलस करने लगें या आपके नाखून गंदे रहने लगें तो समझें कि आपको शनि दशा सुधारने के लिए उपाय करने चाहिए।
गरीबों को देख पसीजता है दिल तो समझें शनि की है विशेष कृपा
अगर आपका दिल गरीबों, जरूरतमंदों को देखकर पसीज जाता है और हर पर्व-त्यौहार पर या गरीब जरूरतमंद की आप हमेशा मदद करते हैं तो समझें शनिदेव की आप पर विशेष कृपा है। ऐसे लोग पौष माह में गरीबों को काले चने, काले तिल उड़द दाल और काले कपड़े सच्चे मन से दान करते हैं, इसलिए शनिदेव भी उनका सदैव कल्याण करते हैं।
ज्येष्ठ माह में काले छाते का करें प्रयोग
ज्येष्ठ माह में धूप से बचने के लिए काले छाते दान करने वालों पर शनिदेव की छत्र-छाया हमेशा बनी रहती है। जब आपकी यह आदत बदलने लगे तो समझें शनिदेव कुपित हो रहे हैं आपसे। कुत्तों की सेवा करने वालों से भगवान शनि हमेशा प्रसन्न होते हैं। कुत्तों को खाना देने वालों और उनको कभी ना सताने वालों के शनिदेव सभी कष्ट दूर करते हैं। इसलिए अगर आपको भी ऐसी आदतें हैं तो जीवन में शनि कोप से मिलने वाली मुश्किलों से हमेश बचे रहेंगे।
नेत्रहीन को दिखायें राह, न्याय के देवता होंगे खुश
किसी भी नेत्रहीन व्यक्ति को राह दिखाना, उनकी मदद करना शनि को खुश करने में सहायक सिद्ध होता है। जो लोग भी नेत्रहीन लोगों की अनदेखी नहीं करते, उनकी नि:स्वार्थ मदद करते हैं, शनिदेव उनसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं और उनकी सफलता-उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। शनिवार का उपवास रखकर अपने हिस्से का भोजन गरीबों को देने की आदत है तो समझें शनि की कृपा से अन्न के भंडार आपके लिए हमेशा खुले रहेंगे।
शनिधाम के बारे में
इसकी स्थापना के बारे में बताते हुए रुवाली कहते हैं कि सिद्धपीठ शनि धाम की स्थापना वर्ष 2०11 में हुई थीं। हरिद्बार निवासी यहां स्थापना काल से ही व्यवस्था संभाल रहे हैं। वह कहते हैं कि शनि सिग्नापुर के अलावा आपको कहीं भी शनि की ऐसी अनुभूति आपको कहीं नहीं होगी। कहते हैं कि यहां पर सिर्फ शनि ही नहीं बल्कि श्री सिद्धपीठ मां बंग्लामुखी, साईंबाबा, पशुपतिनाथ और बजरंग बली हनुमान जी मौजूद हैं। यहां पर श्रद्धालु सभी के दर्शन कर सकते हैं।
शनिदेव जन्म कथा
बक्शी का तालाब स्थित श्री सिद्धपीठ शनिधाम के महंत नरेश चंद्र रुवाली बताते हैं कि सूर्यदेवता का ब्याह दक्ष कन्या संज्ञा के साथ हुआ। वे सूर्य का तेज सह नहीं पाती थी। तब उन्होंने विचार किया कि तपस्या करके वे भी अपने तेज को बढ़ा लें या तपोबल से सूर्य की प्रचंडता को घटा दें। सूर्य के द्वारा संज्ञा ने तीन संतानों को जन्म दिया, वैवस्वत मनु, यमराज, और यमुना। संज्ञा बच्चों से भी बहुत प्यार करती थी। एक दिन संज्ञा ने सोचा कि सूर्य से अलग होकर वे अपने मायके जाकर घोर तपस्या करेंगी और यदि विरोध हुआ तो कही दूर एकान्त में जाकर अपना कर्म करेंगी। इसके लिए उन्होंने तपोबल से अपने ही जैसी दिखने वाली छाया को जन्म दिया, जिसका नाम ‘सुवर्णा’ रखा।
उसे अपने बच्चोँ की जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि आज से तुम नारी धर्म मेरे स्थान पर निभाओगी और बच्चों का पालन भी करोगी। कोई आपत्ति आ जाये तो मुझे बुला लेना, मगर एक बात याद रखना कि तुम छाया हो संज्ञा नहीं यह भेद कभी किसी को पता नहीं चलना चाहिए। इसके बाद वे अपने पीहर चली गयीं। जब पिता ने सुना कि सूर्य का ताप तेज सहन ना कर सकने के कारण वे पति से बिना कुछ कहे मायके आयी हैं तो वे बहुत नाराज हुए और वापस जाने को कहा। इस पर संज्ञा घोड़ी के रूप में घोर जंगल में तप करने लगीं। इधर सूर्य और छाया के मिलन से तीन बच्चों का जन्म हुआ मनु, शनिदेव और पुत्री भद्रा (तपती)। इस प्रकार सूर्य और छाया के दूसरे पुत्र के रूप में शनि देव का जन्म हुआ।