दो महिलाओं का अपहरण किया। तांत्रिक पूजा-पाठ की और बलि चढ़ा दी। शव के कई टुकड़े किए और गड्ढों में गाड़ दिया। एक की हत्या 26 सितम्बर और दूसरी की 6 जून को हुई। यह सब हुआ देश के सबसे साक्षर राज्य कहे जाने वाले केरल में। सबसे पढ़े-लिखे राज्य में बढ़ते अंधविश्वास के हालात इतने भयावह हैं कि इसके खिलाफ कानून की मांग उठने लगी है।
बिल बना लेकिन विधानसभा में पेश नहीं हुआ
3 साल पहले 2019 में बिल बना भी, लेकिन विधानसभा में पेश तक नहीं हुआ। इसमें काला जादू, मानव बलि रोकने के प्रावधान थे। सामाजिक कार्यकर्ता भी कानून की मांग कर रहे हैं।
केरल कानून सुधार आयोग के उपाध्यक्ष के शशिधरन नायर कहते हैं, तत्काल कानून बनाने की जरूरत है। इसी आयोग ने इस कानून का ड्राफ्ट बनाया और सरकार को सौंपा था। सरकार धार्मिक मामला मानकर इससे बचने की कोशिश कर रही है। सरकार को लगता है कि इस पर कानून बनाने से मामला धार्मिक तूल पकड़ लेगा। वास्तव में समस्या यह है कि सरकार इसकी परिभाषा ही नहीं तय कर पा रही कि किस धार्मिक गतिविधि और प्रक्रिया को अंधविश्वास माना जाए और किसे नहीं।
सरकार इस मुद्दे से बचना चाहती है
केरल के गृह विभाग ने इस बिल पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। सरकार भी इस बिल पर मौन साधे है। यहां तक कि केएलआरसी और लॉ विभाग की वेबसाइट्स पर इस बिल के बारे में कोई जानकारी तक अपडेट नहीं की गई। केरल शास्त्र साहित्य परिषद के अध्यक्ष बी रमेश कहते हैं, मामला संवेदनशील है। इसलिए सरकार इससे बचना चाहती है। वे कहते हैं, यह बिल भी वास्तविक समस्या का कोई समाधान नहीं बताता। सजा के प्रावधान के साथ जागरूकता की भी जरूरत है। लोग साक्षर हैं, उन्हें शिक्षित करने की जरूरत है।
जादू-टोने के खिलाफ बिल में 7 साल जेल का प्रावधान
केरल प्रिवेंशन ऑफ इरेडिकेशन ऑफ इनह्यूमन एविल प्रैक्टिस, टोना-टोटका और काला जादू बिल कर्नाटक और महाराष्ट्र की तर्ज पर तैयार किया गया है। इसमें 1 से 7 साल की जेल और 5 हजार से 50 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। इसमें उन परंपराओं के खिलाफ प्रावधान तय किए गए हैं, जिनमें किसी तरह की कोई शारीरिक हानि होती हो।
बीमार हाथी को ठीक करने के लिए दोस्त की बलि दे दी
केरल में आजादी के बाद से नरबलि के 8 मामले दर्ज किए गए। पिछले साल मां ने अपने ही बच्चे की बलि चढ़ा दी। 2004 में बच्चे के हाथ-पांव काट दिए। 1996 में दंपती ने बच्चे की चाह में 6 साल की बच्ची की बलि चढ़ा दी। 1983 में मां-बेटे ने शिक्षक की बलि देने की कोशिश की। 1973 में बच्चे की बलि दे दी गई। 1956 में गुरुवायुर में कृष्णन ने बीमार हाथी के लिए अपने दोस्त का गला रेत दिया। उसने कोर्ट में कहा, हाथी बड़ा जानवर है। इंसान छोटा। जब हाथी मर रहा हो तो इंसान के जिंदा रहने का कोई मतलब नहीं है। 1955 में किशोर की गला दबाकर हत्या कर दी।