शनि प्रदोष व्रत कथा : भगवान शनि की कथा का पाठ करने से दूर होगा शनिदोष

Seema Pal

शनि प्रदोष व्रत कथा : आज शनि प्रदोष व्रत है। इस दिन भगवान शनिदेव का व्रत और पूजन कर उनकी क्रूर दृष्टि के प्रकोप से छुटकारा मिलता है। भगवान शनि देव को तेल और तिल चढ़ाया जाता है। इससे भगवान प्रसन्न होते हैं। आज के दिन कुछ लोग प्रदोष व्रत करते हैं। जिसमें शाम की पूजा में शनिदेव की कथा का पाठ किया जाना अनिवार्य होता है।

शनिदोष के कारण कोई भी कार्य बनते-बनते बिगड़ जाता है। जिस पर शनिदेव की क्रूर दृष्टि पड़ती है वह मानसिक व शारीरिक रूप से कष्ट में रहत है। ऐसे में अगर आप व्रत नहीं कर सकते हैं और शनिदोष से भी बचना चाहते हैं तोे शनिदेव की इस कथा का पाठ संध्याकाल में करें। इससे शनिदोष का निवारण होता है।

शनि प्रदोष व्रत कथा

एक समय की बात है अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी निवास करती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था, जिस कारण वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन किया करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो नन्हे बालक दुखी अवस्था में मिलें, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी। वह सोचने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के पश्चात वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।

तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ”हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।” यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ”हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।” जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के पुण्य प्रताप से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से मिल गया। इससे खुश होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान प्रदान किया, जिससे ब्राह्मणी की गरीबी दूर हो गई है और वह खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगी।

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