सीतापुर : चोरी से काटे गये थे लगभग डेढ़ दर्जन पेड़, बीस दिनों बाद भी नहीं लगा कोई सुराग

जहांगीराबाद-सीतापुर। लगभग तीन सप्ताह पहले बिसवां विकास खण्ड की ग्राम पंचायत गोधनी सरैंय्या में तालाब के किनारे लगे पेड़ों को अनाधिकृत रूप से चोरी से काटकर बेच लिए जाने का मामला प्रकाश में आया था। जिस पर मौके पर पहुंच कर मीडिया के लोगों ने पड़ताल की तो पता चला कि वास्तव में मौके पर लगभग डेढ़ दो दर्जन प्रतिबंधित और गैर प्रतिबंधित पेड़ों को काटकर बेच डाला गया है। इस बारे में जब ग्राम प्रधान से बात का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।

गुपचुप तरीके से यह भी पता चला कि जब इन पेड़ों को चोरी से प्रतिबंधित और गैर प्रतिबंधित पेड़ों के काटे जाने के सम्बन्ध में क्षेत्रीय लेखपाल व वन विभाग के अधिकारियों से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मुझे जानकारी नहीं है मैं अभी मौके पर पहुंच कर जांच करता हूं।

लेखपाल नीलेश कुमार यादव मौके पर पहुंचे तथा पाया कि वास्तव में लगभग डेढ़ दर्जन पेंड़ काटे गये हैं। पहले उन्होंने कहा कि काटे गये पेड़ तालाब की जगह में लगे थे लेकिन थोड़ी ही देर में पलटी मारी और कहा कि यह जगह तो नक्शे में तालाब नुमा गड़ही जैसी लगती है लेकिन यह कई लोगों के नाम गाटा संख्या 462 में बतौर संक्रमणीय भूमिधर दर्ज है। वन विभाग के क्षेत्रीय वन दरोगा प्रदुम्न तिवारी ने बताया कि मुझे जानकारी नहीं हुई है। मैं तुरन्त मामले को देखकर कार्यवाही करता हूं।मगर सूचना के बीस दिनों बाद आज भी जांच इन्हीं जिम्मेदार विभागों के बीच लटकी पड़ी हुई है। सभी अपना अपना पक्ष बचाने में लगे हुए हैं।

बताते चलें कि बिसवां की ग्राम पंचायत गोधनी सरैंय्या इन दिनों भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी हुई है। वहां के डरे सहमे ग्रामीणों ने बताया कि प्रधान ने लगभग दो दर्जन ग्राम पंचायत की जमीन में लगे पेड़ चोरी से काटकर बेच डाले हैं और पैसा हजम कर गये हैं। धीरे धीरे मामला मीडिया तक पहुंचा तो ग्राम प्रधान ने मीडिया से मिलना तो दूर चुप्पी ही साध ली। सूत्रों से पता चला है कि प्रधान ने पेड़ों की लकड़ी लगभग पैंतीस से चालीस हजार में ठेकेदार के हांथों बेच दिया है। क्षेत्रीय लेखपाल की भी भूमिका संदिग्ध लग रही है। वह लगातार अपने बयानों को बदल रहा है।

चोरी से अनाधिकृत रूप से पेड़ काटकर बेचे जाने की जांच पर जब लेखपाल मौके पर पहुंचा तो उसका कहना है कि मेरे पूछने पर किसी ग्रामीण ने कुछ नहीं बताया। ग्राम प्रधान से पूछने पर उन्होंने भी कुछ नहीं कहा।अब प्रश्न यह उठता है कि लेखपाल मौके पर गया और उसके बार बार पूछने के बाद उससे किसी ने कुछ नहीं बताया यह बात कुछ हास्यास्पद जरूर है। कहीं न कहीं दाल में कुछ काला जरूर है।

यही हाल है वन विभाग का। वन विभाग के क्षेत्रीय वन दरोगा प्रदुम्न तिवारी को बीस दिनों पहले जानकारी दी गई।वह आज तक जांच कर कार्रवाई करने की बात करते रहे और मामले को टालते रहे। संवाददाता को इधर उधर की बातों से भ्रमित करते रहे। इस सम्बन्ध में गत 28 सितम्बर को जब वन क्षेत्राधिकारी बिसवां अहमद कमाल सिद्दीकी से बात की गयी तो उन्होंने कहा कि मुझे इस प्रकरण की आजतक कोई जानकारी ही नहीं है। मैं अभी दिखवाता हूं। 30 सितम्बर को जब फिर बात की गयी तो उन्होंने बताया कि एक पत्र तहसीलदार के यहां से जिसमें लगभग एक दर्जन पेड़ों को काटे जाने का उल्लेख है। उसमें विभाग को उन पेड़ों का मूल्यांकन करने को कहा गया है।वह पत्र वन दरोगा के पास है। मैं एक आवश्यक बैठक में जा रहा हूं।

सवाल यह उठता है कि रिपोर्ट के आधार पर काफी समय पहले ही पेड़ काटकर जब लकड़ी बेच दी गई और वह पेड़ भी निजी जमीन में लगे थे तो पत्र में वर्णित उन सभी पेड़ों का वन विभाग द्वारा मूल्यांकन कराये जाने का क्या औचित्य? इतना ही नहीं लेखपाल द्वारा तहसीलदार को प्रेषित रिपोर्ट में जानबूझकर कई जगहों पर ओवर राइट कर पेड़ों की संख्या कम ज्यादा की गयी है। जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। लेखपाल और वन दरोगा के लगातार बदलते बयानों से लगता है कि दोनों विभागों द्वारा मामले को दबाने का भरसक प्रयास किया गया है।

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