सीतापुर। कांग्रेस तथा सपा गठबंधन के बाद सीतापुर लोकसभा में एक अजीब सा माहौल बनने लगा है। सपा विरोधी छवि वाले को अगर कांग्रेस ने टिकट दे दिया तो क्या सपा के नेता उस उम्मीदवार का समर्थन कर पाएंगे। जिसका जबाब होगा शायद नहीं। ऐसे में सपा के विरोध का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है और अपनी हार की पटकथा खुद ही कांग्रेस लिख लेगी। राजनैतिक पंडितों की माने तो ऐसे में कांग्रेस आला कमान को किसी ऐसे को टिकट देना चाहिए जिसका सपा के अंदर कोई विरोध ना हो और पार्टी के नेता उसके साथ खुलकार मंच पर आ सके।
पहले यह बता दें कि सीतापुर लोकसभा सीट इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के खाता में चली गई है। इसलिए कांग्रेस के अंदर टिकट पाने वालों में बेचैनी बढ़ती जा रही है। कांग्रेस का पुराना बैकग्राउंड अच्छा होने तथा सपा के साथ गठबंधन हो जाने पर वोट बैंक बढ़ जाएगा जिस पर कांग्रेस को जीत में आशा की किरण नजर आ रही है। लेकिन सबसे बड़ी बात यहां पर यह आकर अटकती है कि अगर कांग्रेस ने किसी सपा विरोधी छवि वाले नेता को टिकट दे दिया तो कांग्रेस का नुकसान होने से कोई रोक नहीं सकता। उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो सीतापुर में कभी सपा में एक साथ रहने वाले दो पूर्व विधायक आज एक दूसरे के धुर विरोधी ही नहीं है बल्कि गुजर चुके विधानसभा तथा पालिका के चुनावों में उनके विरोध की असलियत सभी देख चुके है। वर्तमान में आज एक कांग्रेस का लीडर है तो दूसरा पुराना सपा का खिलाड़ी कई बार के विधायक और पालिकाध्यक्ष भी रहे है। जो कि आज एक दूसरे के धुर विरोधी है, जो जग जाहिर है और किसी से भी छिपा नहीं है।
ऐसे में कांग्रेस अगर कई दल बदलकर आने वाले पूर्व विधायक को टिकट दे देती है तो उसके लिए परेशानी बन सकती है। यहां पर बताते चलें कि वर्तमान में कांग्रेस जिस पूर्व विधायक को टिकट देना चारहती है वह पहले बसपा केे नेता हुआ करते थे। उसके बाद भाजपा से विधायक रहे। भाजपा से अलग होकर उन्होंने सपा ज्वाइन की। विधानसभा तथा पालिकाध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने को लेकर दोनों पूर्व विधायकों के बीच जमकर तकरार हुई जो पूरा जिला ही नहीं बल्कि प्रदेश जानता है। खुद कांग्रेस और सपा राजनैतिक दल और सोशल मीडिया इसकी आज भी गवाह है। अब अगर ऐसे में कांग्रेस उक्त पूर्व विधायक को टिकट दे देती है तो क्या वर्तमान सपा के नेता, पालिकाध्यक्ष और पूर्व विधायक उनका समर्थन कर पाएंगे। इसी तरह से और भी कई लोगों के उदाहरण है जिनका विरोध होना निश्चित है। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान को सीतापुर लोकसभा टिकट के लिए बेहद ही फूंक-फूंक कर कदम रखने होगा, अन्यथा जीत का पुराना बैकग्राउंड फिर से हार में तब्दील हो जाएगा क्योंकि यहां पर मुख्य वोट बैंक सपा का है ना कि कांग्रेस का। इसलिए चुनाव में कांग्रेस को गठबंधन की सपा के पार्टी नेताओं को अपने साथ लेकर चलना होगा अन्यथा कांग्रेस अपनी हार की पटकथा खुद ही लिख बैठेगी जो कि भाजपा के लिए वाकओवर साबित होगा
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वर्तमान में तेली वोट बैंक भाजपा की झोली में
जिले का अगर तेली वोट बैंक देखा जाए तो वह आज की तारीख में अधिकांश भाजपा के पास है। क्योंकि तेली बिरादरी यहां के नेताओं को नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी को देखता है इसलिए इस वोट बैंक से भी कोई विशेष फायदा मिलने वाला नहीं है। राजनैतिक पंडितों का मानना है कि अगर सीतापुर लोकसभा से किसर ब्राम्हण को टिकट दे दिया जाए तो इसका पूरा लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। क्योंकि पूर्व में छह बार कांग्रेस सीतापुर लोकसभा पर जीती है तो वह ब्राम्हण के दम पर ही जीती है। जिसका उदाहरण भी देख लीजिए। 1952 तथा 1957 में खुद पार्टी के आला कमान के घर की उमा नेहरू, 1971 में जगदीश चंद्र दीक्षित, 1980 से 1989 तक राजेंद्र कुमारी बाजपेई कांग्रेस की ब्राम्हण सांसद रहीं है।
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2014 तथा 2019 में लोकसभा के परिणाम
लोकसभा चुनाव 2014 तथा 2019 के परिणाम देखे जाएं तो सीतापुर लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) प्रत्याशी राजेश वर्मा ने 5,14,528 वोट पाकर जीते थे। गठबंधन से बसपा प्रत्याशी नकुल दुबे 4,13,695 मतों से दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस की कैसर जहां 96,018 मतों से तीसरे नंबर पर रहीं। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 के परिणामों पर नजर डाली जाए तो राजेश वर्मा (बीजेपी) 4,17,546 वोट पाकर जीते थे। वहीं दूसरे स्थान पर बसपा की कैसरजहां रहीं थी जिनको 3,66,519 वोट मिले थे जबकि तीसरे स्थान पर सपा के भरत त्रिपाठी रहे थे जिनको 1,56,170 वोट मिले थे।