सीतापुर : वीरानगी का ‘दंश’ झेल रही महोली चीनी मिल

सीतापुर। कभी चीनी के मोटे दाने के लिए महोली चीनी मिल का एशिया में डंका बजता था। लगातार घाटे का दंश झेल रही तत्कालीन सरकार ने विवश होकर 1998 में चीनी मिल को बंद करने का कठोर फैसला ले लिया। अचानक मिल बंद हो जाने से गन्ना किसानों की कमर टूट गयी, वहीं मिल में कार्यरत अधिकांश परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ पड़ा। भुखमरी का दंश झेल रहे परिवारों ने दूसरी जगह पलायन करना शुरू कर दिया।

1998 में बंद हुई चीनी मिल फिर नहीं हो सकी शुरू

1998 में चीनी मिल का चक्का जाम होने के बाद किसानों के साथ-साथ नगर का व्यापार भी प्रभावित होने लगा। तत्कालीन सरकार ने मिल में कार्यरत स्थायी कर्मचरियों को बीआरएस देकर इतिश्री कर लिया, वहीं कुछ कर्मचारी स्थानान्तरण लेकर अन्य जगहों पर शिफ्ट हो गए। मिल बंदी के कारण व्यापार में मंदी छा गई थी। परिवार का पालन पोषण के लिए लोगों को मजबूरन पलायन करना पड़ा। उस वक्त हालात ऐसे बने कुछ समय के लिए किसानों ने गन्ने की खेती करना बंद कर दिया।

दूसरे चीनी मिलों के भरोसे हैं क्षेत्रीय किसान

ढ़ाई दशक गुजर जाने बाद भी चीनी मिल समस्या का समाधान नही हो सका है। इस बीच नेताओं द्वारा चीनी मिल को पुनः शुरू किए जाने के खोखले वादे जरूर किए गए। दो दशक पूर्व लखीमपुर के गोला और सीतापुर में हरगांव चीनी मिल स्थापित थी। बावजूद इसके हरदोई के प्रतापनगर चैराहा व लखीमपुर खीरी के मैगलगंज, कस्ता आदि में भी महोली चीनी मिल के गन्ना क्रय केन्द्र स्थापित थे। पड़ोसी जिलों के बड़ी संख्या में किसान अपना गन्ना बेचने आते थे। मिल बंद होने के बाद कुछ वर्षों तक अधिकांश किसानों ने गन्ने की खेती कम कर दी थी। एक दशक पूर्व से जवाहरपुर और रामगढ चीनी मिल का संचालन शुरू हुआ। तब से किसानों का रूझान गन्ने की तरफ फिर हो गया।

क्या कहते हैं क्षेत्रीय किसान

किसान आरके सिंह 50 बीघे के जोतकार हैं। इनका कहना है कि महोली चीनी मिल में गन्ना आसानी से पहुंच जाता था। महोली मिल में किराया कटौती भी नही पड़ता था। अब 10 रुपये प्रति कविंटल कटौती होती है। मिल चलती थी तब खुशहाली थी। मिल बंद होने के न सिर्फ रोजगार खत्म हो गए, बल्कि नगर का व्यापार भी प्रभावित हुआ। मिल चालू हालत में होती तो महोली क्षेत्र रोजगार के मामले मे काफी विकसित होता और यहां के किसान व ग्रामीण भी खुशहाल होते। मिल बंद होने के बाद कुछ समय तक गन्ने का रकबा कम हुआ। प्राइवेट चीनी मिलों की शुरुआत होने के बाद गन्ने की खेती फिर से शुरू हो गयी।

फत्तेपुर के किसान मधुराम दीक्षित का कहना है। हम लोग गन्ना लेकर महोली मिल आते थे। उस समय रोजगार के नाम पर महोली चीनी मिल ही एकमात्र विकल्प था। मिल बंद होने के बाद रोजगार पर विराम लग गया। गन्ने क्रय करने की मारामारी शुरू हो गयी। किसान गन्ना छोड गेंहू व चैमासी फसल बोने लगे थे। जब से जवाहरपुर, अजबापुर सहित अन्य चीनी मिले चालू हुई, तब से किसानों ने पुनः गन्ने की फसल उगानी शुरू कर दी। महोली चीनी मिल बंद होने के बाद यहां रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया था, वहीं परिवार का पालन-पोषण के लिए लोग गैर प्रान्तों तक पलायन कर गए।

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