सीतापुर। पौराणिक मान्यता है कि नैमिषारण्य तपोभूमि कलियुग के प्रभाव से रहित है, इसी कारण ब्रह्मा जी के निर्देश पर ऋषियों, मुनियों और देवों ने नैमिषारण्य भूमि को आध्यात्मिक क्रियाकलापों का आधार मानते हुए सहस्त्रों वर्षों तक इस भूमि पर यज्ञ, अनुष्ठान, धर्मचर्चा, ऋषि सत्र के माध्यम से सनातन धर्म के सर्व कल्याणकारी प्रकाश को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया और मानव जीवन की सार्थकता का मार्ग प्रशस्त किया। इस पावन तपोभूमि पर महर्षि वेदव्यास की प्रेरणा से सूत जी ने शौनकादि 88000 ऋषियों को 4 वेद 6 शास्त्र और 18 पुराण का बड़ा ही गूढ़ विवेचन कई ऋषि सत्रों में माध्यम से प्रस्तुत किया है। आज दैनिक भास्कर अपनी विशेष सीरीज ‘तीरथवर के राम’ के पांचवे भाग के माध्यम से अपने पाठकों को भगवान श्रीराम और सतयुग के प्रमुख धर्मस्थल नैमिषारण्य तीर्थ के अनकहे सनातन सम्बन्ध के बारे में परिचित कराएगा।
देवराज इंद्रदेव व प्रभु श्रीराम की दोषमुक्ति की साक्षी रही है ये परिक्रमा
नैमिषारण्य तीर्थ की 84 कोसीय परिक्रमा सर्वदोष नाशक है। जब देवराज इंद्र ने महर्षि दधीचि द्वारा दान की हुई अस्थियों से बने हुए अस्त्र वज्र से वृत्तासुर का वध किया है तब देवराज को नित्य हवन पूजन कार्य व अनुष्ठान में रत रहने वाले वृत्तासुर का वध करने से हत्या का दोष लगा है। तब देवराज इंद्र ने भगवान शिव की आराधना की है और भगवान शिव के निर्देश अनुसार नैमिषारण्य तीर्थ की 84 कोसीय परिक्रमा की है और हत्या के दोष से मुक्ति प्राप्त की है उसी प्रकार भगवान राम को भी रावण की हत्या के उपरांत ब्रह्म हत्या का दोष लगा है जिसके निवारण के लिए भगवान राम ने नैमिषारण्य तीर्थ की 84 कोस की परिक्रमा की है और ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति प्राप्त की है इसलिए परिक्रमार्थियों के दल को ‘रामादल’ भी कहते है।
भास्कर क्षेत्र ‘हत्या हरण तीर्थ’ है पापमोचक धर्मस्थल
नैमिषारण्य तीर्थ की 84 कोसीय परिक्रमा अंतर्गत तीसरे पड़ाव के रूप में विख्यात नगवां कोथावां अंतर्गत प्रभास या भास्कर क्षेत्र का वर्णन मिलता है। यहां एक प्राचीन विशाल कुंड बना हुआ है जिसमें स्नान करने से हत्या का दोष दूर होता है। शिव पुराण में इस तीर्थ की मर्यादा का वर्णन किया गया है और कहा गया है कि इस तीर्थ में स्नान करने से हत्या का दोष दूर होता है। स्कंद पुराण में वर्णन है कि भगवान राम धर्मारण्य में आए हैं और यहां आकर उन्होंने वशिष्ठ जी के आदेश अनुसार यज्ञ कार्य किया है और रावण वध से उत्पन्न ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाई है। यहां भाद्रपद मास में हर रविवार को बड़ा मेला लगता है और जिन्हें भी हत्या का पाप लगता है वे प्रायश्चित भाव से इस तीर्थ में स्नान कर हत्या के पाप से मुक्त होते हैं।
भक्ति और मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम माध्यम है तीर्थ की 84 कोसीय परिक्रमा
नैमिषारण्य तीर्थ की प्रसिद्ध 84 कोसीय परिक्रमा और मिश्रित तीर्थ का वर्णन महर्षि वेदव्यास ने वामन पुराण, महाभारत पुराण व शिव पुराण में किया हुआ है। मान्यता है कि नैमिषारण्य तीर्थ की इस 84 कोसीय परिक्रमा में सभी देव, तीर्थो, ऋषियों का वास है साथ ही ये परिक्रमा मनुष्य को 84 लाख योनियों के बंधन से मुक्ति प्रदान करने वाली है। यह परिक्रमा मनुष्य के कठिन दोष और घोर पापों को भी नष्ट करती है। इस पावन परिक्रमा के 11 पड़ाव एकादश की महिमा को दर्शाते हैं। एकादश संख्या भगवान विष्णु को परमप्रिय है वही एकादश रुद्रगण भी माने जाते हैं साथ ही इंद्रियों की संख्या भी एकादश ही कही जाती है।
महर्षि दधीचि ने प्रारम्भ की थी ये पावन धर्मयात्रा
मान्यता है कि सबसे पहले महर्षि दधीचि ने देवराज इंद्र की प्रार्थना पर वृत्तासुर के वध हेतु आवश्यक अस्त्रों के निर्माण के लिए अस्थिदान से पहले नैमिषारण्य तीर्थ की 84 कोस की परिक्रमा की है जिसमे देवराज इंद्र के आवाहन पर सभी तीर्थ, देव व ऋषिगण समाहित रहे है। एकमात्र तीर्थराज प्रयाग देवराज के अनुरोध पर नैमिषारण्य नहीं आए हैं जिसके चलते देवराज इंद्र ने पांच तीर्थों के जल से ‘पंच प्रयाग तीर्थ’ व सभी तीर्थों के जल से ‘मिश्रित तीर्थ’ का सृजन किया है।
ये है परिक्रमा के 11 पड़ाव
नैमिषारण्य की 84 कोसीय परिक्रमा में सीतापुर जनपद अन्तर्गत पड़ाव कोरोना, जरीगवां, नैमिषारण्य, देवगंवा, मडरूवा, कोल्हुआ बरेठी और मिश्रिख हैं वहीं 4 पड़ाव जिला हरदोई के अंतर्गत आते हैं, जो हरैया , नगवा कोथावां, गिरधरपुर उमरारी और साक्षी गोपालपुर हैं।