आज से छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है और यह पर्व 4 दिनों तक चलने वाला महापर्व है, इस महापर्व को बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत कई हिस्सों में इस त्यौहार को महत्वपूर्ण माना गया है, छठ पर्व पर विशेष रूप से भगवान सूर्य देवता की पूजा होती है, यह एक ऐसा पर्व है जिसमें डूबते हुए सूर्य और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, हिंदू धर्म में बहुत से प्रमुख त्योहार है और इन्हीं त्योहारों में से एक छठ व्रत को एक माना गया है, इस त्यौहार पर छठी मैया की पूजा की जाती है। ज्या
दातर उत्तर भारत की महिलाएं इस व्रत को करती है, इसके अलावा ऐसी कुछ स्त्रियां भी है जो किसी न किसी वजह से छठ का व्रत नहीं कर पाती है, अगर आप भी किसी कारणवश छठ का व्रत नहीं कर पा रही है तो आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, आज हम आपको ऐसे कुछ विशेष उपाय बताने वाले हैं जिनको अगर आप करती हैं तो इससे छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
सूर्य उपासना और छठी मैया की पूजा के लिए चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का इतिहास भी बहुत पुराना है. पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जिसमें मां षष्ठी संग सूर्यदेव की पूजा की बात रही गयी है, फिर चाहे वो त्रेतायुग में भगवान राम हों या फिर सूर्य के समान पुत्र कर्ण की माता कुंती. छठ पूजा को लेकर परंपरा में कई कहानियां प्रचलित हैं.
राम की सूर्यपूजा
कहते हैं सूर्य और षष्ठी मां की उपासना का ये पर्व त्रेता युग में शुरू हुआ था. भगवान राम जब लंका पर विजय प्राप्त कर रावण का वध करके अयोध्या लौटे तो उन्होंने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को सूर्यदेव की उपासना की और उनसे आशीर्वाद मांगा. जब खुद भगवा, सूर्यदेव की उपासना करें तो भला उनकी प्रजा कैसे पीछे रह सकती थी. राम को देखकर सबने षष्ठी का व्रत रखना और पूजा करना शुरू कर दिया. कहते हैं उसी दिन से भक्त षष्ठी यानी छठ का पर्व मनाते हैं.
राजा प्रियव्रत की कथा
छठ पूजा से जुड़ी एक और मान्यता है. एक बार एक राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रयेष्टि यज्ञ कराया. लेकिन उनकी संतान पैदा होते ही इस दुनिया को छोड़कर चली गई. संतान की मौत से दुखी प्रियव्रत आत्महत्या करने चले गए तो षष्ठी देवी ने प्रकट होकर उन्हें कहा कि अगर तुम मेरी पूजा करो तो तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी. राजा ने षष्ठी देवी की पूजा की जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. कहते हैं इसके बाद से ही छठ पूजा की जाती है.
कुंती-कर्ण कथा
कहते हैं कि कुंती जब कुंवारी थीं तब उन्होंने ऋषि दुर्वासा के वरदान का सत्य जानने के लिए सूर्य का आह्वान किया और पुत्र की इच्छा जताई. कुंवारी कुंती को सूर्य ने कर्ण जैसा पराक्रमी और दानवीर पुत्र दिया. एक मान्यता ये भी है कि कर्ण की तरह ही पराक्रमी पुत्र के लिए सूर्य की आराधना का नाम है छठ पर्व.
पूजा के दौरान इन बातो का रखे ध्यान
सबसे मुश्किल उपवास छठ पूजा का ही माना जाता है। ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि नियम इस व्रत के बेहद ही कड़े हैं। छठ पूजा के दौरान कुछ बातों का बहुत ध्यान रखना होता है। कई ऐसे काम होते हैं जो छठ पूजा के दौरान नहीं करने होते। चलिए जानते हैं इनके बारे में-
साफ-सफाई का भी छठ पूजा का बहुत महत्व होता है। जिस जगह पर छठ पूजा का प्रसाद बनता है उसे साफ सुथरा रखना चाहिए। गंदे हाथों से छठ पूजा का प्रसाद नहीं छूना होता और न ही बनाना होता है।
चांदी, स्टेनलेस स्टली,ग्लास या प्लास्टिक के बर्तन में सूर्य भगवान को अर्घ्य नहीं देते हैं।
जिस जगह पर खाना बनाया जाता है वहां पर छठ पूजा का प्रसाद नहीं बनता है। मिट्टी के चूल्हे पर ही छठ पूजा का प्रसाद बनाते हैं।
जो लोग छठ पूजा का व्रत रखते हैं वह बिस्तर पर नहीं होते हैं। फर्श पर चादर बिछाकर व्रत रखने वाली महिलाएं सोती हैं।
खाना नहीं खाना चाहिए प्रसाद बनाते समय। साफ-सुथरे कपड़े ही सबको प्रसाद बनाते समय और पूजा करते समय पहनने होते हैं।
पूजा के किसी भी सामान को बिना हाथ धोए नहीं छूना होता है। जब तक छठ का पर्व संपन्न नहीं हो जाता है तब तक छठ पूजा का प्रसाद बच्चों को जूठा नहीं करने देना चाहिए।
सात्विक भोजन ही छठ पूजा के समय खाना होता है। लहसुन-प्याज का सेवन नहीं करना होता। साथ ही घर पर भी इनको नहीं रखना चाहिए।
जो लोग छठ पूजा का व्रत रखते हैं उन्हें अपशब्द और अभद्र भाषा नहीं बोलनी चाहिए।
व्रती लोगों को सूर्य को अर्घ्य दिया बिना जल या भोजन नहीं ग्रहण करना होता।
घर पर मांसाहार लाना या खाना छठ व्रत के दौरान वर्जित होता है।