देवी के शक्तिपीठों को लेकर ग्रंथों में अलग-अलग बात कही गई है। कुछ ग्रंथों में 52 शक्तिपीठों के बारे में बताया गया है तो कुछ में इनकी संख्या108 बताई गई है। इन 108 शक्तिपीठों में से एक मंदिर मेघालय (Meghalaya) की राजधानी शिलांग (Shillong) से 62 किलोमीटर दूर नर्तियांग गांव (Nartiang Village) में स्थित है। इसे जयंतिया मंदिर (Jaintia Temple) के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। नवरात्रि के दिनों में यहां रोज विशेष पूजा की जाती है। दूर-दूर से लोग यहां दर्शन करने आते हैं।
ये है मंदिर का इतिहास
मान्यता है कि वर्तमान मंदिर लगभग 600 साल पुराना है। उस समय यहां जयंतिया साम्राज्य के शासक राजा धन मानिक का राज हुआ करता था। एक रात राजा को माता ने दर्शन देकर इस स्थान पर मंदिर निर्माण करने को कहा। राजा ने उस आदेश का पालन करते एक भव्य मंदिर बनवाया, जिसे आज जयंतेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां कालभैरव के रूप में कामदीश्वर महादेव के पूजा होती है।
नवरात्रि में मनाया जाता है खास उत्सव
नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में विशेष उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान केले के पेड़ को गेंदा आदि फूलों से सजाया जाता है और उसी की पूजा माँ दुर्गा के रूप में की जाती है। नवरात्रि के 6ठे दिन से 9 वें दिन तक चलने वाले इस उत्सव के समापन होने पर केले के पेड़ पर मयंगतांग नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। मान्यता है कि प्राचीन समय में यहां बलि देने की परंपरा था जो कालांतर में समाप्त हो गई।
क्षत्रिय मराठा हैं यहां के पुरोहित
नर्तियांग के इस शक्तिपीठ में पुरोहित की भूमिका पीढ़ियों से एक मराठा क्षत्रिय परिवार निभाता आ रहा है। ओनी देशमुख नाम के मौजूदा पुरोहित अपने परिवार की 30वीं पीढ़ी के है। उनके अनुसार, उनके पुरखों को महाराष्ट्र से यहां उस समय के जयंतिया साम्राज्य के राजा ने बुलवाया था। तभी से उनका परिवार इस मंदिर में राजपुरोहित के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
कैसे पहुंचें?
हवाई मार्ग- शिलाँग के केंद्र पुलिस बाज़ार से क़रीब 30 किमी दूर बारापानी में स्थित हवाई अड्डे के लिए प्रतिदिन कोलकाता से दो उड़ानें उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग- शिलाँग शहर तक कोई भी रेलवे लाइन नही है। यहाँ का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन गुवाहाटी है। गुवाहाटी से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग- सड़क मार्ग से शिलाँग जाने के लिए आपको गुवाहाटी होते हुए भी जाना पड़ेगा।