सुल्तानपुर । वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के करीब डेढ़ साल पहले से ही बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग की राह पर आगे बढ़ चली हैं। उन्होंने विश्वनाथ पाल को बसपा का प्रदेश प्रभारी बनाकर मायावती ने साफ संकेत दिया है कि आगामी चुनावों में बसपा अपने उस विनिंग फॉर्मूले पर काम करेगी, जिसके बूते पर वह चार बार यूपी की सत्ता पर काबिज हुई थीं ।
पार्टी को गर्त से उबारने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती भी अब बीजेपी की तरह गैर यादव ओबीसी पर फोकस करेंगी । राजनीतिक पंडितों की मानें तो चमार महासभा के बसपा विरोध के कारण लोकसभा चुनाव में हाथी के दौड़ पर चमार महासभा अंकुश लगाने के लिए खेतवाई कर रहा है । इस बात के संकेत भी चमार महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय राणा चमार ने दैनिक “भास्कर” के साथ हुई एक भेंटवार्ता में दे चुके हैं ।
लोकसभा चुनाव 2024 में ‘हाथी’ के दौड़ पर स्पीड ब्रेकर बनेगा चमार महासभा
80 के दशक में अस्तित्व में आई बहुजन समाज पार्टी इस वक्त अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। एक के बाद एक हुए चुनावों में पार्टी का जनाधार खिसकता जा रहा है। पार्टी लगातार हाशिये पर जा रही है। खासकर बीते एक दशक से बसपा के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह उठने लगे हैं। अब जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाकर वर्ष 2024 में लोकसभा के होने वाले चुनाव में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की तैयारियों में जुटी हुई हैं तो ऐसे में चमार महासभा बसपा की राह में स्पीड ब्रेकर बनकर ” हाथी ” की दौड़ धीमी कर सकता है और चुनावी सफलता उससे दूर कर सकता है ।
उत्तर प्रदेश में 45 फीसदी से अधिक ओबीसी आबादी है। 19 फीसदी के करीब मुस्लिम और करीब 21 फीसदी दलित हैं। अब मायावती इन्हीं तीन जातियों को केंद्र में रखकर बसपा के जीत की रणनीति बना रही हैं। इसीलिए उन्होंने अयोध्या के विश्वनाथ पाल को बहुजन समाज पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। गैर यादव ओबीसी को पाले में करने के लिए मायावती का यह बड़ा दांव माना जा रहा है। इससे पहले 1995 में भगवत पाल और 1997 में दशरथ पाल बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। तब परिस्थितियां अलग थीं। उस समय दलित वोटर बसपा के साथ थे और मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी के साथ था। लेकिन, अब सपा के अलावा मुख्य मुकाबला बीजेपी से है।”
यूपी में हैं 79 ओबीसी जातियां
उत्तर प्रदेश में कुल 79 ओबीसी जातियां है। कुल मतदाताओं में 45 फीसदी हिस्सेदारी अकेले ओबीसी वर्ग की है। इसमें इसमें 11 फीसदी यादव, 6 फीसदी कुशवाहा, मौर्य, शाक्य और सैनी, 4 फीसदी लोधी, 7 प्रतिशत कुर्मी, पटेल, 3 फीसदी पाल, 4 फीसदी निषाद मल्लाह, बिंद, कश्यप और केवट, 3 फीसदी चौरसिया और 4 फीसदी तेली, साहू और जायसवाल व 2 फीसदी गुर्जर हैं।
मजबूत हो सकती है बसपा
45 फीसदी वाले इस बड़े वोट बैंक पर समाजवादी पार्टी और बीजेपी दोनों अपना-अपना दावा करते हैं। अब बसपा ने भी इस पर फोकस कर लिया है। बसपा रणनीतिकारों की मानें तो पाल या अन्य पिछड़ा को अपने पाले में लाकर भाजपा के वोट बैंक में बड़ी आसानी से सेंधमारी की जा सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बसपा को दलितों व मुस्लिमों के अलावा अगर ओबीसी का साथ मिला तो आगामी चुनाव में बसपा फिर से मजबूत हो सकती है।
नतीजन, बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में बीजेपी और सपा के लिए मुसीबत बन सकती है।” बताया जाता है कि दलित वोट बैंक में अच्छी पैठ बना चुका चमार महासभा यदि बसपा का खुलकर विरोध नहीं किया तो लोकसभा चुनाव में बसपा मजबूती के साथ चुनावी मैदान में डटे रहकर विरोधियों के छक्के छुड़ा सकती है । लेकिन चमार महासभा के विरोध से बसपा के लिए सफलता दूर की कौड़ी साबित हो सकती है ।